99 क़ीमती बातें | कुरआन व हदीस की रौशनी में
अल्लाह की याद से अपने दिल को ताज़ा दम रखा कीजिए।
इस लिए के खुदा की याद क़ुलूब के लिए इत्मिनान का जरिया है।
अल्लाह की ज़ात आली पर मुकम्मल भरोसा कीजिये।
इस लिए के अल्लाह त’अला तवक़्क़ल करने वालों को मेहबूब रखता हैं।
सब्र और नमाज़ के ज़रिये मदद तलब किया कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह की (मदद) साबेरीन के साथ है।
अपनी ज़िन्दगी के तमाम शोबों में सुन्नत-ऐ-रसूल का एहतेमाम कीजिये।
इसलिये के उस्वाए रसूल (स.) ही में कामियाबी है।
सच्चों की सोहबत इख्तियार किया कीजिये।
इसलिये के सच्चों की सोहबत आदमी को तक़वा के मर्तबे कमाल तक पहुंचा देती है।
हक़ को बातिल के साथ गुटमत करके पेश करने से बचा कीजिये।
इसलिये के इस अमल पर अल्लाह की सख्त डांट है।
अहले इल्म और बे-इल्म के दरमियान इम्तियाज़ क़ायम कीजिये।
इसलिये के अहले इल्म और बे इल्म कभी भी बराबर नहीं हो सकते।
नेको कारी का हुक्म देने के साथ इस पर अमल भी किया कीजिये।
इसलिये के लोगों को हुक्म देकर खुद इस पर अमल से गाफिल रेहना यहूदियों की सिफ़त है।
सुबह व शाम सदके व ख़ैरात का एहतेमाम कीजिये।
इसलिये के ये अहले ईमान की एहम सिफ़त है।
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की तमाम ने’मतों की शुक्रगुज़ारी में रहा कीजिये।
इसलिये के नेमतों पर शुकर गुज़ारी इज़ाफ़े का सबब है।
इसराफ़ (फ़िज़ूलखर्ची) से बचने की मुकम्मल कोशिश कीजिये।
इसलिये के इसराफ़ करने वालों को अल्लाह पसंद नहीं करता।
फितना साज़ी से बचने की मुकम्मल कोशिश कीजिये।
वो इसलिये के फितना (का गुनाह) क़त्ल से भी बढ़ कर है।
अपनी पसंदीदा चीज़ को अल्लाह की रज़ा के लिए दिया कीजिये।
इसलिये के पसंदीदा चीज़ को देकर ही कामिल नेकी का अजर पा सकते हो।
रिश्वत लेने और देने के गुनाह से बचा कीजिये।
इसलिये के रिश्वत लेने वाला और देने वाला दोनों जहन्नुमी हैं।
हज़रत नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम पर बकसरत दरूद पढ़ने का एहतेमाम कीजिये।
इसलिए कि आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम पर एक दफा दरूद पढ़ने से अल्लाह की 10 रेहमतें उतरती हैं।
अपने ख़ालिक़ से हुस्न-ऐ-जन रखा कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह के फैसले बन्दे के गुमांन के मुताबिक़ होते हैं।
अल्लाह तआला से माँगने की सिफ़त को न भुला कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह से माँगना ही तमाम इबादतों का खुलासा है।
क़ुरआन मजीद सीखने और सीखाने का एहतेमाम कीजिये।
इसलिये के सब से बेहतर शख्स वो है जो कुरआन मजीद सीखे और सिखाए।
नमाज़ में सफों के दरुस्त रखने का एहतेमाम कीजिये।
इसलिये के सफों का दरुस्त न होना आपसी इख़्तेलाफ़ का सबब है।
नेक काम करें या इसकी तरफ़ रहनुमाई की कोशिश कीजिये।
इसलिये के नेक काम की रहबरी भी इसको अंजाम देने की तरह है।
धोका धड़ी से अपने आप को बचाया कीजिये।
इसलिये के जो धोका दे वो हम (मुसलमानो) में से नहीं है।
अमानत में खियानत करने से बचा कीजिये।
इसलिये के अमानत में खियानत करना ये मोमिन की अलामत नहीं है।
इल्मे दीन को रज़ा-ऐ-इलाही के लिए खालिस किया कीजिये।
इसलिये के दिगर फ़ासिद नियतों (इज़्ज़त, शोहरत, रियाकारी) से हासिल करना जहन्नुम में दाखिल होने का सबब है।
वज़ू को मुकम्मल सुन्नतों के एहतेमाम के साथ किया कीजिये।
इसलिये के वो वज़ू जो कामिल सुन्नतों के साथ होगा वो अगले पिछले गुनाहों के मिटाने का जरिया होगा।
वालिद की दुआएं हमेशा लिया कीजिये।
इसलिये के वालिद की दुआ औलाद के हक़ में कबूल होती है।
अहले ईमान पर लान तान करने से बचा कीजिये।
इसलिये के मोमीनों पर लानत करना इनको क़तल करने के मानिंद है।
खुद को सलाम करने में आगे रखा कीजिये।
इसलिये के सलाम में पहल करने वाला तकब्बुर से बरी होगा।
लायानी (फ़ुज़ूल, बेकार) चीज़ों से बचने की कोशिश कीजिये।
इसलिये के मुसलमान की खूबी ये है के वो लयानी चीज़ों से बचता है।
दूसरों से सिर्फ अल्लाह ही के लिए मोहब्बत किया कीजिये।
इसलिए कि वो सब से अफज़ल काम है।
तकब्बुर जैसे हलाक करने वाले मर्ज़ से बचा कीजिये।
इसलिये के जिस शख्स के दिल में जर्रा बराबर तकब्बुर होगा वो जन्नत में न जायेगा।
ला इलाहा इल्लल लाहु के विर्द का एहतेमाम कीजिये।
इसलिये के ला इलाहा इल्लल लाहु ईमान की आला शाख है।
दूसरों के लिए नफ़ा बनने की कोशिश कीजिये।
इसलिये के बेहतरीन शख्स वो है जो दूसरों को नफा पहुंचाये।
ज़ालिम बनने या मज़लूम होने से बचने की दुआ कीजिये।
इसलिये के हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन दोनों चीज़ों से पनाह मांगी है।
गुमराह होने या गुमराह कुन शै से बचने की दुआ कीजिये।
इसलिये के हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन दोनों बातों से पनाह मांगी है
मख्लूक़ की इताअत में ख़ालिक़ की नाफरमानी से बचा कीजिये।
इसलिये के मख्लूक़ की इताअत में ख़ालिक़ की नाफरमानी जायज़ नहीं।
गुनाहों से तौबा व अस्तग़फ़ार का एहतेमाम कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह तौबा करने वालों को पसंद करता हैं।
नर्म मिजाजी को अपना शेवा बनाया कीजिये।
इसलिये के जो नर्म मिजाजी से महरूम रहा वो सारी भलाई से महरूम रहा।
उलमा-ऐ-दींन की ताजीम व तवकीर किया कीजिये।
इसलिये के जो उलमा की क़दर न करे वो उम्मत-ऐ-मुस्लिमा में से नहीं।
छोटों के साथ शफ़क़त का मुआमला कीजिये।
इसलिये के जो छोटों पर शफ़क़त न करे वो उम्मत-ऐ-मुस्लिमा में से नहीं।
बड़ों की भरपूर ताज़ीम किया कीजिये।
इसलिये के जो बड़ों की ताज़ीम न करे वो उम्मत-ऐ-मुस्लिमा में से नहीं।
अपनी औलाद की दीनी तरबीयत की फ़िक्र कीजिये।
इसलिये के वालिद की तरफ से इस की औलाद के लिए दीनी तरबीयत से बढ़ कर कोई तोहफा नहीं।
अपने मुसलमान भाई से तीन दिन से ज़्यादा क़ता-ऐ-ता’लुक न कीजिये।
इसलिये के तीन दिन से ज़्यादा क़ता-ऐ-ता’लुक करने वाला जहन्नुमी है।
अपने आप को पाक दामन रखा कीजिये।
इसलिये के मर्दों की पाक दामनी खुद उन की औरतों की पाक दामनी का जरिया है।
चाहे दीनी काम हो या दुनियावी इस से पहले नमाज़ का एहतेमाम कीजिये।
इसलिये के हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम किसी भी अमर के पेश आने पर सबसे अव्वल नमाज़ पढ़ते थे।
फ़र्ज़ नमाज़ें बा जमात अदा कीजिये।
इसलिये के बाअज़मत नमाज़ इंफरादि नमाज़ से 27 दर्ज़े फ़ज़ीलत रखती है
तिजारत (व्यापार), सचाई और अमानतदारी के साथ किया कीजिये।
इसलिये के सचाई व अमानतदारी के साथ तिजारत करने वाला सिद्धिक़ीन और शुहदा के साथ होगा।
अपने भाइयों की (जायज़) ज़रूरतों को पूरा करने की कोशिश कीजिये।
इसलिये के जो अपने भाई की ज़रुरत पूरा करेगा अल्लाह इसकी जायज़ ज़रूरतों को पूरा करेगा।
आपस में हदीया देने का मामूल रखा कीजिये।
इसलिये के हदीया आपस में मोहब्बत बढ़ाने के साथ दुश्मनी को दूर करता है।
हसद जैसे हलाक करने वाले मर्ज़ से बचा कीजिये।
इसलिये के हसद ये दीन को बरबाद कर देता है।
एहसान जताने की मज़मूम सिफ़त से बचा कीजिये।
इसलिये के एहसान जताने वाला जन्नत में दाख़िल न होगा।
फुकरा (गरीब) से मोहब्बत और इनके साथ हमनशिनी इख़्तियार कीजिये।
इसलिये के हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन से मोहब्बत और हमनशिनी की तरग़ीब दी है।
अरबों से दिल से मोहब्बत किया कीजिये।
इसलिये के हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसकी तरग़ीब दी है।
मुअजनीन की बत्तमीज़ी करने से बचा कीजिये।
इसलिये के मुअजनीन क़यामत के दिन ज़्यादा लम्बी गर्दन वाले होंगे।
नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को सच्चा रसूल माना कीजिये।
इसलिए कि वो भी हलावत ईमान के हुसूल का वसीला है।
क़त्ल ऐ मोमिनीन के जुर्म-ऐ-अज़ीम से बचा कीजिये।
इसलिये के क़त्ल ऐ मोमिनी अल्लाह के नज़दीक सारे दुनिया के ख़तम हो जाने से बढ़कर है।
बीमारों से दुआ की दरखवास्त किया कीजिये।
इसलिये के बीमारों की दुआ फरिश्तों की तरह क़ुबूल होती है।
किसी भी काम से पहले इंशा अल्लाह कहा कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह की मशीयत के बग़ैर कोई काम नहीं होता।
अच्छी बातों का हुक्म और बुरी बातों से रोका कीजिये।
इसलिये के ये उम्मत-ऐ-मुस्लिमा की इम्तियाज़ी खुसूसियत है।
अल्लाह के घरों को आबाद किया कीजिये।
इसलिये के मसाजिद को आबाद करना अहले ईमान की ज़िम्मेदारी है।
अज़ान व अक़ामत के दरमियान दुआ का मामूल बनाया कीजिये।
इसलिये के अज़ान व अक़ामत के दरमियान की जाने वाली दुआ क़ुबूल होती है।
हुस्न-ऐ-खात्मे के लिए दुआ किया कीजिये।
इसलिये के (ज़िन्दगी) के तमाम आमाल का ऐतबार (उम्दह) खात्मा पर है।
पोशीदा तौर पर सदक़ा देने की कोशिश कीजिये।
इसलिये के पोशीदा सदक़ा करना अल्लाह के गुस्से को ठंडा करता है।
परहेज़गारी, मखलूख से बेनियाज़ी, गुमनामी (जैसी उम्दाह) सिफ़ात को इख्तियार किया कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह इन सिफ़ात के हामिल बन्दे को पसंद फ़रमाता हैं।
नमाज़ मिस्वाक कर के पढ़ने की कोशिश कीजिये।
इसलिये के मिस्वाक कर के पढ़ी जाने वाली नमाज़ बग़ैर मिस्वाक के अदा की जाने वाली 70 रकअतें पढने से अफ़ज़ल है।
हर अच्छी बात को तीन दफा कहने का एहतेमाम कीजिये।
इसलिये के हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम इसका एहतेमाम फरमाते थे, ताके मुख़ातिबींन (सुनने वाले) बात को अच्छी तरह समझ जाएँ।
कूत्मान-ऐ-इल्म के जुर्म से बचा कीजिये।
इसलिये के बा रोज़-े क़यामत कूत्माने-इल्म करने वाले के मुँह में आग लगा दी जाएगी।
गुनाह होते ही फौरी तौबा कर लिया कीजिये।
इसलिये के बेहतरीन शख्स वही है जो गुनाह के साथ ही तौबा कर लें।
अल्लाह के क़ादिर-ऐ-मुतलक़ होने का यक़ीन कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह हर चीज़ पर क़ुदरत रखता हैं।
दूसरों पर रहम व करम का रवैया बर्ता कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह उस शख्स पर रहम नहीं करता जो लोगों पर रहम न करें।
ज़ुल्म करने से खुद को दूर रखा कीजिये।
इसलिये के ज़ुल्म रोज़-ऐ-क़यामत अंधेरों की सूरत में होगा।
अमाल-ऐ-सालेहा मुख़्तसर ही हो मगर पाबन्दी से किया कीजिये।
इसलिए कि अल्लाह के यहाँ पसंदीदा अमल वही है जो पाबन्दी से किया जाये अगरचे मिक़्दार में थोड़ा ही क्यों न हो।
अपने अख़लाक़ को उम्दाह रखा कीजिये।
इसलिये के मोमिन अच्छे अख्लाक की वजह से रोज़ा रखने वाले और रात भर इबादत गुज़ार के मुकाम को पा लेता है।
हर सुनी हुई बात का ज़िक्र करने से बचा कीजिये।
इसलिये के आदमी के झूठा होने के लिए यही काफ़ी है के वो हर सुनी हुई बात को नक़ल कर दें।
पड़ोसियों को तकलीफ देने से बच्चा कीजिये।
इसलिये के पड़ोसियों को तकलीफ देने वाला जन्नत में दाख़िल न होगा।
अपने गुस्से पर काबू रखा कीजिये।
इसलिये के पहलवान वो है जो गुस्से के वक़्त नफ़्स पर काबू पा ले।
अपनी खुवाहिशात को शरीयत के ताबेय बनाया कीजिये।
इसलिये के क़ामिल-ऐ-ईमान के लिए ये अमल जरूरी है।
गुनाह-ऐ-ग़ीबत से बचने का भरपूर एहतेमाम किया कीजिये।
इसलिये के ग़ीबत (का गुनाह) बदकारी से भी बढ़कर है।
जुबां और शर्मगाह को मासियत के दलदल से बचाया कीजिये।
इसलिये के इन दोनों की हिफाज़त पर जन्नत की बशारत है।
अल्लाह के (99) नाम याद करने का एहतेमाम किया कीजिये।
इसलिये के जो इन को अच्छी तरह याद कर लें वो जन्नत में दाखिल होगा।
नोट:
वाज़ेह रहे के मज़कूरा तमाम बातें कुरान व हदीस की रौशनी में है अलबत्ता हूबहू आयात व अहादीस का तर्जुमा नहीं बल्कि सिर्फ मफ़हूम दर्ज है। अहल-ऐ-इल्म हज़रात किसी किस्म की कमी महसूस करें तो ज़रूर हमारी इस्लाह फरमाये।
अल्लाह त’अला हम तमाम को इन बातों पर सिद्क़ दिल से अमल की तौफीक अता फरमाए। अमीन या रब्ब-उल-आलमीन।