. हज़रत सौदा बिन्ते जमआ (र०) कुरैश के मशहूर कबीले “आमिर बिनलुवइ” से तअल्लुक रखती थी। उन का पहला निकाह हजरत सकरान बिन अम्र (र०) से हुआ। वह नुबुव्वत के शुरू ज़माने में ही मुसलमान हो गई थीं। और अपने शौहर के साथ हब्शा की दूसरी हिजरत फ़रमाई। उन से अब्दुर्रहमान नामी एक लड़का पैदा हुआ। फिर कई साल बाद मक्का लौटीं तो उन के शौहर का इन्तेकाल हो गया। हुजूर (ﷺ) ने हजरत ख़दीजा (र०) की वफ़ात के बाद सन १० नब्वी में हज़रत सौदा (र०) से निकाह फ़रमाया। लेकिन उन से कोई औलाद नहीं हुई। वह सखावत व फ़य्याजी में मुमताज मकाम रखती थीं।
. हज़रत उमर (र०) ने उन के पास दिरहमों से भरी एक थैली भेजी, तो उम्मुल मोमिनीन हजरत सौदा (र०) ने उसी वक्त सब को तकसीम कर दिया। इताअत व फ़र्माबरदारी का यह हाल था के हज्जतुलवदा के मौके पर रसूलुल्लाह (ﷺ) ने अपनी तमाम बीवियों को मुखातब कर के फर्माया : “तुम मेरे बाद घर में बैठे रहना।” चुनान्चे वह इस हुक्म पर शिद्दत से अमल करती हुई फ़र्माती थीं के मैं हज व उमरा कर चुकी हूँ, अब अल्लाह और उसके रसूल के हुक्म के मुताबिक घर में बैठी रहूँगी।
. उनसे कुछ अहादीस भी मैरवी हैं। उन्होंने हज़रत उमर (र०) के दौरे खिलाफ़त में जिलहिज्जा सन २३हिजरी में मदीना मुनव्वरा में वफ़ात पाई।
. अगर हमें कुछ खाना होता है, तो उसको हम अपने हाथों के जरिए उठाते हैं, उंगलियों के छूने से एहसास हो जाता है के खाना गर्म है या ठंडा, फिर लुक्मा मुँह की तरफ़ ले जाते वक्त आँखें देख लेती है के खाने में कुछ खराबी है या नहीं और आगे आता है, तो नाक से सूंघ लेता है के खाने में बदबू तो नहीं आ रही और फिर जैसे ही वह मुँह में रखता है तो ज़बान उस का जाएका बता देती है, और उस के ठंडे और गर्म और अच्छे बुरे होने का एहसास करा देती है, इतनी हिफ़ाज़त से गुजर कर एक साफ़ लुक्मा हमारे पेट में जाता है, अल्लाह तआला ने अपनी कुदरत से लुक्मे की हिफ़ाज़त के लिए किस तरह इन्तेज़ाम फर्माया है।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया:
“दीन बगैर नमाज़ के नहीं है नमाज़ दीन के लिए ऐसी है जैसा आदमी के बदन के लिए सर होता है।”
हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर (र०) बयान फ़र्माते हैं के,
“मैंने रसूलुल्लाह (ﷺ) के साथ ईशा की फर्ज नमाज़ के बाद दो रकात (सुन्नत) पढ़ी है।”
फायदा: इशा की नमाज के बाद वित्र से पहले दो रकात पढ़ना सुन्नते मोअक्कदा है।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“जब कोई शख्स किसी चीज़ को सदके में निकाल देता है, तो सत्तर शैतानों के जबड़े टूट जाते हैं।”
[मुस्तदरक: १५२९ अन बुरैदा (र०)]
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया:
“नमाज़ का छोड़ना आदमी को कुफ्र से मिला देता है।”
[मुस्लिम : २४६, अन जाबिर (र०)]
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“अनकरीब दुनिया की दौलत तुम पर खोल दी जाएगी, यहाँ तक के तुम अपने घरों को इस तरह आरास्ता करोगे जैसे काबा शरीफ़ को आरास्ता किया जाता है।”
[तिबरानी कबीर : ४०३५, अन अबी जुहैफ़ा(र०)]
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:
“तुम्हारी खजूरों में बेहतरीन खजूर बरनी है और वह ऐसी दवा है जिस में कोई नुकसान नहीं।”
[मुस्तदरक : ८२४३, अन मजीदह (ﷺ)]
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:
“ऐ इमान वालो ! तुम्हारे बाप और भाई अगर ईमान के मुकाबले में कुफ्र पसंद करते हों, तो तुम उनको अपना दोस्त न बनाओ और तुम में से जो शख्स उनसे दोस्ती करेगा, तो वही जुल्म करने वाले होंगे।”