सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 39

Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 39

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मुसलमानो के साथ धोका

कुछ ही दिनों के बाद मुसलमान अबू बरा के साथ आ गये। क़बीला बनू आमिर ने उन की मेहमानी शुरू कर दी।

आमिर ने बनू सलीम को इत्तिला पहुंचा दी और मेहमानी का सामान भी भिजवा दिया।

एक दिन जग़ल, जकवान और अस्बा तीनों अबू बरा के पास पहुंचे और मुसलमानों की दावत कर के उन्हें उसी रात अपने खेमों पर आने के लिए कह आए।

मगरिब की नमाज़ पढ़ कर अबू बरा और आमिर ने मुसलमानों को बनू सलीम के खेमों पर आने के लिए कहा।

एक बड़े मैदान में बनू सलीम के खेमे लगे हुए थे। खेमे के सामने कम्बलों का फ़र्श बिछा हुआ था। इस फ़र्श पर नवजवान भी बैठे ग़पें कर रहे थे।

वे अबू बरा, आमिर और मुसलमानों आते हुए देख कर उठ खड़े हुए। जकवान ने बढ़ कर कहा –

बनू सलीम के लोग कितने खुशनसीब है के हैं कि उन के खेमों पर नज्द के सरदार अबू बरा आमिर मय अपने शरीफ़ मेहमानों के साथ तशरीफ़ लाये हैं। मैं अपने क़बीले की तरफ़ से आप तमाम लोगों का शुक्रिया अदा करता हूं।

अगर हमारे मेहमान पसन्द फ़रमाएं, तो आज हम अपनी औरतों से ऐसा गाना सुनवाएं, जो आज से पहले इन खोमों में किसी ने नहीं सुना, जगल ने कहा। 

मेहमानो ! आमिर ने कहां, हम तुम्हारी इज्जत बढ़ाने खेमों पर नहीं आए, बल्कि तुम्हारी मशहूर गाने वाली औरतों का गाना सुनने ही के लिए आए हैं।

जहे किस्मत, तश्रीफ़ रखिए, अस्बा ने कहा और सब से पहले गाना ही सुनिए, देखिए हमारी लड़कियों ने गाने में कितना कमाल हासिल कर लिया है।

अबू बरा, आमिर और तमाम मुसलमान फ़र्श पर बैठ गये। 

कबीला बनू सलीम के लोग रेत पर उन के सामने आ बैठे। 

जकवान उस जगह से जा चुका था।

थोड़ी देर में वह कुछ नवजवान खूबसूरत लड़कियों को ले कर आ गया।

लड़कियां आ कर एक तरफ़ बैठ गयीं और जग़ल के इशारा करने पर सब ने दफ़ बजाए और दिलकश आवाज में मिल कर गाना शुरू कर दिया।

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उन्हों ने एक नज्म शुरू की, जिस में हुबल, लात व उज्जा और नस्र की तारीफ़ थी (ये सभी बुतों के नाम हैं) ।

सब भले ही खुश हुए हों, लेकिन मुसलमान इसे बर्दाश्त नहीं कर सके। जब नज्म खत्म हो गयी, तो मुंजिर बिन अम्र (र.अ) ने कहा, ऐ अरबो ! ऐ बनू सलीम के होशमन्द बेटो ! अपने हाथों से बनाये हुए बुतों की तारीफ़ और पूजा करनी छोड़ दो, बल्कि उस खुदा की तारीफ़ बयान करो जिसने सबको पैदा किया, जो बड़ी क़ुदरत वाला है, जो हवाएं चलाता है, पानी बरसाता है, जो बड़ा मेहरबान और बड़ा रहम करने वाला है।

मेहमानो ! ठहरो, जकवान ने कहा, हम तुम्हारी बातें फिर किसी वक्त सुनेंगे।

अब औरतों ने फिर गाना शुरू किया। इस बार उन्हों ने जो नज्म गायी, उस में ‘हर्बुल फ़िजार’ का जिक्र था लड़ाई में लड़ने वाले बहादुरों की तारीफ़ थी।

थोड़ी देर बाद इशा का वक्त आ गया। मुंजीर बिन अम्र ने कहा – अब हमारी इबादत का वक्त आ गया है, हम को पानी दिया जाए, ताकि हम वुजू कर के नमाज पढ़ लें।

जग़ल ने अपने लोगों को इशारा किया। वे दौड़ कर पानी के मश्कीजे उठा लाये। मुसलमानों ने वुजूं करना शुरू किया।

आमिर ने जकवान को अलग ले जा कर कहा, मेरे भाई ! मुसलमानों को उसी वक्त क़त्ल कर डालो, जब वे नमाज पढ़ रहे हों।

मुनासिब है, जकवान ने कहा, लेकिन अबू बरा को क्या किया जाए ? 

अंदेशा न करो, आमिर ने कहा, जग़ल से कहो कि वह उसे बातों में लगा कर उन खेमों की तरफ़ ले जाए, जो सामने वाले खजूरों के साए लगे हुए हैं।

जकवान बढ़ा, उसने गाने वाली औरतों को रुख्सत किया और जग़ल को अलग ले जा कर कहा – तुम अबू बरा को सामने वाले खेमों की तरफ़ ले जाओ। हम मुसलमानों को उसी वक्त क़त्ल करना चाहते हैं, जब वे नमाज पढ़ रहे हों।

ज़कवान ने अपने साथियों से कहा, तुम्हारी आबदार तलवारें कहां है? 

सब ने अपने-अपने दामनों के नीचे से तलवारें निकाल ली। साफ़ व शफ़्फ़ाफ़ तलवारें चांदनी में निकल कर बिजली की तरह चमकने लगीं।

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जकवान ने समझाते हुए कहा, जब ये लोग सज्दे में जाएं, तुम फ़ौरन उन पर टूट पड़ो और एक लम्हा बर्बाद किये बगैर सब को कत्ल कर डालो।

सब ने धीरे से कहा, ऐसा ही होगा, हमारे सरदार !

यह कह कर वे बढ़े और मुसलमानों के क़रीब तीन तरफ़ जा खड़े हुए। 


सज्दे में ही शहीद कर दिया

जब मुसलमान सज्दे में गये, सब ने अचानक उन पर हमला कर दिया और तमाम मुसलमानों को शहीद कर दिया।

सिर्फ़ उम्र बिन उमैया (र.अ) किसी तरह बच गये। वे उठ कर खड़े हो गये और निहत्थे ही एक अरब से लिपट गये।

उन्होंने उस अरब का गला इस जोर से दबाया कि उस की आंखें उबल आयीं और मुर्दा हो कर धड़ाम से जमीन पर आ रहा। कई आदमी अम्र की तरफ़ झपटे।

आमिर ने कहा, इसे क़त्ल न करो, बल्कि गिरफ़्तार कर लो।

अम्र किसी तरह बच कर वहां से भाग निकले।

थोड़ी देर बाद अबू बरा उस जगह आये। उन्हों ने बनू सलीम को मुसलमानों की लाशें उठा उठा कर ले जाते देख कर पूछा – दगाबाज कमीनो ! क्या तुम ने हिमायत तोड़ दी और मुसलमानों को क़त्ल कर डाला।

जकवान बोला, या सय्यदी! अफ़सोस न कीजिए, ये लोग हम को हमारे दीन से हटा कर बेदीन बनाये आये थे, उनका क़त्ल करना ही बेहतर और जरूरी था।

तुम ने बहुत बुरा किया, अबू बरा ने कहा, मुझे, मेरे खानदान को, मेरे क़बीले को बट्टा लगा दिया। तारीख में मेरा नाम बुरे लफ्जों में लिखा जाएगा और तमाम अरबों में मैं बदनाम हो जाऊंगा।

अबू बरा को इस का बड़ा सदमा था, उस के चेहरे से रंज व गम के निशान जाहिर हो रहे थे।

उसने कहा, जग़ल तुम नहीं, मेरे भतीजे आमिर ने मेरी अमान को तोड़ा, मुझे दुनिया की नज़रों में जलील किया। मैं इस सदमे को अब बर-दाश्त न कर सकूंगा और मर जाऊंगा, लेकिन एक बात कहे देता हूं, कान खोल कर सुन लो, जिस मजहब के आज तुम खिलाफ़ हो रहे हो, जिन लोगों को आज तुम मौत के घाट उतार रहे हो, वह मजहब सारे अरब ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया में छा जाएगा। तुम सब और तुम्हारा क़बीला सभी इस्लाम की गोद में होंगे। अरब से तो बुतपरस्ती का जनाजा ही निकल जाएगा।

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जगल ने बात काट कर कहा, इत्मीनान रखिए, ऐसा हरगिज न होने पायेगा।

अबू बरा को जोश आ गया।

ऐसा ही होगा, इस्लाम की खासियत यह है कि उसे जितना दबाओगे, वह उतना ही उभरेगा।

अबू बरा वहां से ग़म में डूबा हुआ चला गया।

जकवान और अस्बा ने मुसलमान शहीदों की लाशें मैदान में फिकवा दी। 


दरिंदगी की इन्तिहा

सलाक़ा के दो बेटे उहद में हज़रत आसिम (र.अ) के हाथों मारे गये थे। उस ने आसिम (र.अ) से बदला लेने के लिए अक्ल व कारा के सात आदमियों को मदीना मुनव्वरा रवाना किया था।

यह वफ्द धोखा देकर दस मुसलमान को साथ लाया। उस में एक आसिम भी थे।

रजीअ नामी जगह पर हुजैल के दो सौ नवजवानों ने हमला कर के आठ मुसलमानों को शहीद कर दिया। दो मुसलमान खुबैब और जैद गिरफ्तार हो गये।

सलाक़ा खुबैब और जैद को लेकर मक्का में दाखिल हो गयी।

मक्के वालों को इस्लाम और मुसलमान से सख्त नफ़रत थी, इसलिए उन्हों ने गिरफ़्तार करने वालों को मुआवजा देकर दोनों क़ैदियों को हारिस बिन आमिर के घर में क़ैद कर दिया और हारिस को हिदायत कर दी कि . वह उन्हें भूखा-प्यासा रखे, उस वक्त तक खाने के लिए कुछ न दे, जब तक कि वे इस्लाम से फिर न जाएं।

चुनांचे हारिस ने सख्ती से इस पर अमल किया।

खाना और पानी बन्द होने से खुबैब और जैद (र.अ) को सख्त तक्लीफ़ हुई, पर खुदा के नेक बन्दों और इस्लाम के इन जांनिसारों ने निहायत सब्र व शुक्र से इस मुसीबत का मुक़ाबला किया।

कई दिन इसी तरह भूखे-प्यासे पड़े रहे।

एक दिन हारिस और सफ़वान बिन उमया हजरत खुबैब और हजरत जैद के पास आए। देखा तो इन दोनों की हालत बयान करने के काबिल न थी। कमजोरी बढी थी और सूख कर हड्डियों का ढांचा बन गये थे, आखें अन्दर को धंस गयी थीं, चेहरे पीले और सुस्त हो गये थे। भूख और प्यास ने उन्हें मौत से क़रीब कर दिया था।

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हारिस ने इन दोनों को मुखातब करते हुए कहा –

मुसलमानो ! हम दोनों कुरैश के भेजे हुए तुम्हारे पास आए हैं। अगर तुम दोनों इस्लाम छोड़ दो, और अपने बाप-दादा के मजहब में दाखिल हो जाओ, तो जिस चीज की तुम ख्वाहिश करों, तुम्हें मिल जाए।

लेकिन अगर हम इस्लाम न छोड़ें तो ? हजरत खुबैब ने पूछा !

तो एक-एक दाना और एक-एक बूंद पानी के लिए तरस कर मरो, हारिस ने जवाब दिया।

हमें इसी तरह मरना मंजूर है, जैद ने खुश हो कर कहा।

हिमाकत न करो, हारिस ने फिर समझाया। माल व दौलत व दुनिया ठुकराओ नहीं।

अगर तुम ने यह समझ रखा है कि हम लालच में मुसलमान हुए हैं, तो यह तुम्हारी भूल है, हजरत खुबैब बोले, हम तो खूब सोच-समझ कर अपनी आखिरत बनाने के लिए मुसलमान हुए हैं और आखिरी सांस तक इस्लाम पर क़ायम रहेंगे।

खुबैब ! खूब सोच लो, सफ़वान ने कहा, आखिर ऐसे मजहब, रसूल और खुदा को अपनाने से क्या फयदा, जो तुम्हारी मदद न करे। 

ख़ुदा मुसलमानों की आज़माइश करता है, खुबैब ने फ़रमाया, हमें चाहिए कि हम इस आजमाइश में खरे उतरें।

गोया तुम मौत को जिन्दगी पर तर्जीह देते हो, हारिस ने बिगड़ कर कहा।

हां, हम शिर्के और कुफ्र की जिन्दगी के मुक़ाबले में मौत को तर्जीह देते हैं, हज़रत खुबैब ने कहा।

अच्छा, तो तुम अपनी मौत का इन्तिज़ार करो, कल तुम्हारी जिंदगियां खत्म कर दी जाएंगी, हारिस ने गुस्से और झुंझलाहट में कहा। 

हजरत खुबैब खामोश हो गये ।

हारिस और सफ़वान दोनों चले गये।


हारिस का बच्चा

अभी हारिस और सफ़वान को मजलूम कैदियों के पास से गये हुए थोड़ी ही देर हुई थी कि हारिस का बच्चा छुरी हाथ में लिए खेलता हुआ वहां आ गया और खुबैब के पास आ कर खड़ा हो गया।

हजरत खुबैब ने उसे प्यार व मुहब्बत से बुलाया। बच्चा फट से उन के पास आ गया।

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उन्हों ने उस से छुरी ले कर अलग रख दी और उसे अपने गोद में बिठा कर उस से बातें करने लगे।

बच्चा छोटी उम्र का था। अभी बोलना सीखा था, उस ने कहा – चचा ! तुम जंजीरें पहने क्यों बैठे हो ?

हम को तुम्हारे अब्बा ने क़ैद कर रखा है, हजरत खुबैब ने कहा।

क्यों ? बच्चे ने कहा।

इसलिए कि हम मुसलमान हैं, अल्लाह की इबादत करते हैं, खुबैब ने कहा।

अल्लाह कहां है ? बच्चे ने पूछा।

वह हर जगह है, वहां आसमान पर रहता है, खुबैब ने बताया। 

मुझे आसमान पर ले चलो, बच्चे ने कहा। 

बेटा तुम आसमान पर नहीं जा सकते।

बच्चा कुछ कहना चाहता था कि कीसी औरत के चीख मारने की आवाज़ आयी।

खुबैब, जैद और बच्चे ने एक साथ नज़रें उठा कर देखा। हारिस की बीवी यानी बच्चे की मां सामने खड़ी गम से कांप और रो रही थी।

बच्चे ने कहा, मेरी अम्मीजान रो रही हैं।

औरत कांपते और रोते हुए उन की तरफ़ बढ़ी। उस ने आजिजी के साथ कहा – ऐ खुदा रसीद, मुसलमानो ! मेरा एक ही बच्चा है, उसे मार कर मेरी ज़िन्दगी कड़वी न कर देना।

मोहतरम खातून ! खुबैब (र.अ) ने कहा, आप किसी क़िस्म का रंज न करें। अगर हम खूब जानते हैं कि तुम दुश्मन हो, हमें भूखा-प्यासा रख कर मारना चाहते हो, लेकिन यह भी याद रखो कि हम मुसलमान हैं। हमारे दिल में रहम व मुरव्वत का जज्बा है। हम तुम्हारे कलेजे के इस टुकड़े को मार कर तुम्हारे दिल को सदमा न पहुंचायेंगे। हमारे दुश्मन तुम्हारी क़ौम के बड़े आदमी है। यह बच्चा मासूम है। कोई मुसलमान किसी बच्चे का क़त्ल नहीं करता।

नेक दिल मुसलमानो ! औरत ने कहा, मेरे बच्चे को मुझे वापस दे दो, मैं उम्र भर तुम्हारी शुक्र गुजार रहूंगी।

औरत को यकीन न था कि मुसलमान उस बच्चे को छोड़ेंगे। यह तो सिर्फ़ धोके की तसल्ली है, जो लोग कई दिन से भूखे-प्यासे हैं, जिन्हें क़त्ल कर दिये जाने की धमकी दी जा चुकी है, वे दुश्मन के बच्चे को क्यों छोड़ने लगे।

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औरत अब भी दहाड़े मार-मार कर रो रही थी।

वह जरा फ़ासले पर आ कर दो जानू बैठ गयी। उस ने दुपट्टे का आंचल फैला कर कहा –

मुसलमानो ! अपने नबी के तुफ़ैल ! मेरा बच्चा वापस दे दो। आह ! अगर तुमने उसे मार डाला, तो मैं बेमौत मर जाऊंगी।

यह अम्मी जान ! भला क्यों रो रही हैं ! बच्चे ने हजरत खुबैब की तरफ़ देखते हुए कहा।

तुम्हारी अम्मी को खतरा है कि कहीं हम तुम को मार न डालें ! हजरत खुब ने बताया ।

तुम मुझे क्यों मार डालोगे ? बच्चे ने पूछा।

मेरे बच्चे ! तेरा बाप और तेरी क़ौम इन मुसलमानो की दुश्मन हैं, औरत  बोल पड़ी, क्या अजब है कि ये बदले के जोश में तुम्हें क़त्ल कर डाले! तू इन के पास से चला आ। 

खातून ! हजरत खुबैब ने कहा, मत डरो।

फिर बच्चे से कहा –

प्यारे बच्चे ! अपनी अम्मी जान के पास चले जाओ। देखो वह बहुत परेशान हैं।

क्यों चला जाऊं ? बच्चे ने कहा, अम्मी जान ! तुम रोओ मत, मैं आ जाऊंगा। आप किसी क़िस्म का गम न करें।

मेरे बच्चे ! मेरे पास आ जा, औरत ने कहा खुबैब ने बच्चे को खड़ा कर के छुरी उठायी।

औरत का कलेजा दहल गया। मारे ग़म के उस के आंसू सूख गये। वह समझ गयी कि अब छुरी उस के मासूम बच्चे के हलक़ पर चलने वाली है। उस पर तो मौत की सी गशी आने लगी।

खुबैव ने छुरी बच्चे के हाथ में दे कर कहा, प्यारे बच्चे ! जाओ, अपनी अम्मी जान के पास चले जाओ।

बच्चा चला। उस की मां ने लपक कर बच्चे को सीने से लगा लिया। शुक्र अदा करने जैसे अन्दाज में उस ने हजरत खुबैब को देखा और बोली –

मजलूम मुसलमानो ! तुम्हारा शुक्रिया, हजार-हजार शुक्रिया। कोई कौम दुश्मन के बच्चे पर इतना रहम व करम नहीं करती, जितना कि तुम ने किया। तुम्हारे नबी ने जहां खुदापरस्ती और परहेज़गारी की तालीम दी है, मालूम होता है, वहीं मेहर व मुरव्वत की तालीम भी दी है। 

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औरत बच्चे को सीने से लगाये वापस चली गयी।

अभी वह पूरा सेहन से भी न कर पायी थीं कि सफ़वान, हारिस, अबू- सुफ़ियान, इक्रिमा और कई दूसरे कुरैशी सरदार आ गये और जैद और खूबैब के पास जा कर खड़े हो गये।

आज मैं ने तुम्हारी क़ीमत क़ुरेश के सरदारों को दे कर तुम्हें खरीद लिया है, सफ़वान ने कहा, मेरा बाप उबैदा बद्र की लड़ाई में मारा गया था, इसलिए मैं अपने बाप के खून के बदले में तुम दोनों को कत्ल करूंगा।

एक मुसलमान की ख्वाहिश शहादत से ज्यादा और किसी चीज की नहीं हो सकती। में खुदा का शुक्रगुजार हूं कि आज रंज व आलम की दुनिया छोड़ कर अबदी आराम व राहत की जगह पहुंच जाऊं, हजरत जैद ने कहा। 

तुम बच सकते हो, अगर इस्लाम छोड़ दो, हारिस ने कहा। 

इस्लाम जिंदगी की आखिरी सांस तक न छोडूंगा, हजरत जैद ने फ़रमाया।

नस्तास ! सफ़वान ने कहा, इस जंजीर को खोलकर इसे हरम की हदों से बाहर ले चलो।

नस्तास सफ़वान का जर खरीद गुलाम था। वह बढ़ कर जंजीर खोलने लगा ।

खुबैब (र.अ) को आंखों में आंसू भर आये, उन्हों ने फ़रमाया –

जैद ! मैं तो समझता था, तुम से पहले मैं शहीद किया जाऊंगा, लेकिन मेरा ख्याल गलत है। बेदर्द, जालिम, वहशी और ना खुदातरस काफ़िर मुझे पहले नहीं, बल्कि तुम को मौत के घाट उतरना चाहते हैं।

प्यारे भाई ! खुदा की कसम ! हजरत जैद ने मुस्करा कर कहा, तुम से ज्यादा मैं खुदा से मिलने का आरजूमंद हूं।

नस्तास ने जैद की जंजीर खोल ली थी। वह उठ कर खड़े हो गये थे।

खुबैब भी उठे और उन्हों ने फ़रमाया –

मेरे खुशनसीब भाई ! मुल्के अदम के आखिरी मुसाफ़िर ! आखिरी मर्तबा गले मिल लो। मैं भी तुम्हारे पोछे-पीछे आऊंगा।

दोनों गले मिल कर चले।

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जैद ! तुम सैयदुशशुहदा हजरत हमजा (र.अ) से मिलोगे, तो उन से मेरा सलाम कह देना, खुबैब ने कहा।

जरूर कहूंगा, अच्छा भाई ! सलाम ! जैद ने कहा।

खुबैब ने सलाम का जवाब दिया। नस्तास जंजीर पकड़ कर चला। कुरैशी सरदार उन के पीछे चले।

अगरचे खुबैब ने बहुत सब्र से काम लिया, लेकिन फिर भी उन की आंखों में आंसू छलक आए।

जब जैद दूर निकल गये, तो खुबैब ने आंसू पोंछे और कहा –

ऐ ख़ुदा ! जैद को फ़िर्दों से बरीं में जगह देना और ऐ खुदा ! मुझे भी अपने हबीब के सदक़े में जन्नत में भेज देना।

जैद जब हारिस के घर से निकले, तो उन्होंने सैकड़ों को रास्ते के सिरों पर खड़े देखा। वह समझ गये कि मक्का के लोग उन के क़त्ल का तमाशा देखने के लिए उमड़ आये हैं।

नस्तास जंजीर पकड़े – पकड़े आगे जा रहा था। जैद जंजीरों में जकड़े हुए पीछे आ रहे थे।

उन के पीछे कुरेश के सरदार और उन के पीछे जनता के लोग हुबल की जय के नारे लगाते जा रहे थे। इन लगातर नारों को सुन-सुन कर लोग बेतहाशा भाग भाग कर आ रहे थे और उस मज्मे में शामिल होते जाते थे। 

हरम की हदों से बाहर आते-आते हज़ारों का मज्मा हो गया!

हरम से बाहर एक बड़ा मैदान था। इस मैदान में कुफ़्फ़ार के लोग गोल दायरे की शक्ल में खड़े हो गये और बीच में जैद को खड़ा किया गया। अबू सफ़ियान बढ़ कर जैद के पास पहुंचा। उसने कहा –

जैद ! तुम्हारा आखिरी वक्त आ पहुंचा। थोड़ी देर में नस्तास की तलवार तुम्हारा काम तमाम कर देगी। क्या यह बात अच्छी न थी कि इस वक्त तुम अपने मकान पर अपने घर वालों में आराम से बैठे होते और तुम्हारे बजाय मुहम्मद को तलवार के घाट उतारते। (नौज़बिल्लाह)

हम पर और हमारे इस आराम पर लानत है कि हम अपने घर में आराम से बैठें और हुजूर (ﷺ) को कांटा भी चुभे, हजरत जैद ने जवाब दिया। खुदा की क़सम ! कोई मुसलमान इस बात को हरगिज बरदाश्त नहीं कर सकता। हुजूर (ﷺ) के पसीना आने से पहले बेहतर है कि हमारा खून बह जाए।

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हुबल की क़सम ! अबू सुफ़ियान ने कहा, मैं ने आज तक किसी ऐसे दोस्त को नहीं देखा है, जैसे मुहम्मद (ﷺ) के दोस्त हैं, इतने फ़िदाकार और जां निसार कि ऐसे दोस्त पूरी दुनिया में भी न मिलेंगे।

सूरज अगर पूरब के बजाए पश्चिम से निकलने लगे, तब भी यह नामुम्किन है कि मैं इस्लाम से अपने हाथ खींच लूं, जैद ने कहा।

अब सफ़वान ने नस्तास की तरफ़ इशारा किया। नस्तास ने तलवार उठायी।

जैद रजि० ने सर झुका कर कलिमा तैयिबा पढ़ा।

तलवार उन की गरदन पर पड़ी, सर कट कर गिरा और साथ ही लाश भी गिरी।

हज़रत ज़ैद शहीद हो गये। मुशरिकों ने उन की शहादत पर पर जोर-जोर से ‘हुबल की जय’ के नारे बुलन्द किये।

जब जैद शहीद हो गये, तो अबू सुफ़ियान ने कहा, क्यों न खुबैब को आज ही सूली दे दी जाए?

लोगों को इबरत दिलाने के लिए इस से बेहतर और कौन सा मौक़ा हो सकता है ? इक्रिमा बोला।

अबू सुफ़ियान ने अपने गुलामों को सूली खड़ा करने का हुक्म दे दिया। 

गुलामों ने लम्बे-लम्बे तीन शहतीर ला कर खड़े कर दिए और उन के सिरे खजूर की ‘मजबूत रस्सियों से बांध दिए।

जब इस तरह से सूली तैयार हो गयी, तो अबू सुफ़ियान ने हजर बिन अबी वहाब को हजरत खुबैब को लाने का हुक्म दिया।

वह कुछ लोगों को साथ ले कर चला और थोड़ी देर में हजरत खुबैब को ले आया।

अबू सुफ़ियान ने हजरत खुबैब (र.अ) से कहा –

खुबैब ! तुम्हारे लिए सूली खड़ी कर दी गयी है, तुम्हारे साथी की लाश जमीन पर पड़ी है। अब तुम्हारा नम्बर है। अगर तुम अभी इस्लाम छोड़ दो और हुबल की पनाह में आ जाओ, तो तुम्हारे लिए वह चीज मुहैया कर दी जाएगी, जिसे तुम चाहोगे।

तुम या तुम्हारे खुदा मुझे अबदी जिंदगी दे सकते हो? हजरत खुजैब ने कहा।

यह नामुम्किन है, अबू सुफ़ियान ने कहा, मौत और जिंदगी किसी दूसरी ताक़त के क़ब्ज़े में है।

फिर तुम उस को क्यों नहीं पूजते ? खुगैब रजि० ने कहा।

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आखिर तू मुसलमान है, अबू सुफ़ियान ने कहा, और मुसलमान कभी इस्लाम से नहीं फिरता, इसलिए इन बातों में क्यों वक़्त वर्बाद किया जाए।

बेशक मुसलमान कभी किसी लालच या डर से इस्लाम नहीं छोड़ सकता, हजरत खुबैब (र.अ) ने कहा, जब मैं ने इस्लाम अपनाया था तो मुझे अफ़सोस हुआ था कि मैं सबसे पहले मुसलमान क्यों न हुआ ?

अब मुसलमान होने का मजा चखना, अबू सुफ़ियान ने बिगड़ कर कहा हजर! इसे सूली पर चढ़ा दो और पन्द्रह नेजाबाजों से कहो कि अपने नेजों से इस के बदन छेद डालें।

अबू सुफियान ! हजरत खुबैब ने कहा, क्या तू आखिरी वक्त मुझे नमाज की इजाजत देगा ?

कुछ हर्ज़ नहीं अबू सुफ़ियान ने कहा, जब तक कि हमारे नेजे बाज आएं, तू नमाज पढ़ ले।

अच्छा, जरा सा पानी मुझे वूजू करने के लिए मंगा दो, खुबैब ने कहा। 

अबू सुफ़ियान ने अपने एक गुलाम को इशारा किया। वह पानी लाया।

हजरत खुबैब ने वुजू किया और नमाज पढ़ने खड़े हो गये। उन्हों ने दो रकात नमाज पढ़ी थी कि पन्द्रह नेजेबाज नेजा ताने हुए आ गये।

जब वह नमाज पढ़ चुके तो अबू सुफ़ियान ने हजर को इशारा किया। उसने खुबैब के हाथ खजूर की मजबूत रस्सी में बांध कर उन्हें सूली पर लटकाया।

इक्रिमा ने नेजाबाजों को इशारा किया।

वे नेजा तान-तान कर बढ़े और उन्होंने हजरत खुबैब (र.अ) निशाना लगाकर छेदना शुरू किया। (इन्ना लिल्लाहि इन्ना ईलैही राजिऊन) 

हज़रत खुबैब (र.अ) के जिस्म पर नेजा मारे जा रहे थे। उन्हें तक्लीफ़ हो रही थी, लेकिन उन के मुंह से उफ़ तक का इजहार न होता था, कचूकों की तकलीफ़ को होठों से दबा कर बरदाश्त कर रहे थे।

यह कुछ कम बहादुरी और जुर्रत की बात न थी।

उन के जिस्म पर इतनी नेजेबाजी की गयी कि आखिरकार उन की रूह जिस्म से निकल गयी और जिस्म का ढांचा लटका रह गया।

जालिम वहशियों और नाखुदापरस्त जालिमों ने इस तरह एक मुसलमान को तड़पा-तड़पा कर उस की जान ले ली।

To be continued …

इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा …
आप हज़रात से इल्तेजा है इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे और अपनी राय भी दे … 

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