Contents
- 1. इस्लामी तारीख
- ग़ज़वा-ए-उहुद में मुसलमानों की आज़माइश
- 2. अल्लाह की कुदरत
- नाक – कुदरते इलाही की निशानी
- 3. एक फर्ज के बारे में
- शौहर पर बीवी के खर्चे की जिम्मेदारी
- 4. एक सुन्नत के बारे में
- सवारी पर सवार होने के बाद की दुआ
- 5. एक अहेम अमल की फजीलत
- अल्लाह के लिये मुहब्बत का बदला
- 6. एक गुनाह के बारे में
- पड़ोसी को तकलीफ देने का गुनाह
- 7. दुनिया के बारे में
- दुनिया की रगबत का खौफ
- 8. आख़िरत के बारे में
- जन्नत वालों का इनाम व इकराम
- 9. तिब्बे नबवी से इलाज
- मोतदिल गिज़ा का इस्तेमाल
- 10. क़ुरान की नसीहत
- इंसान को उस के माँ बाप के बारे में ताकीद
15 Jumada-al-Awwal | Sirf Panch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
ग़ज़वा-ए-उहुद में मुसलमानों की आज़माइश
ग़ज़वा-ए-उहुद में मुसलमानों ने बड़ी बहादुरी से मुशरिकीने मक्का का मुकाबला किया, जिस में पहले फतह हुई, मगर बाद में एक चूक की वजह से नाकामी का सामना करना पड़ा।
जंग शुरू होने से पहले रसूलुल्लाह (ﷺ) ने पचास तीरअन्दाजों की एक जमात को पहाड़ की घाटी पर जहाँ से दुश्मनों के हमले का खतरा था, मुकर्रर कर दिया और यह ताकीद फरमाई के “जंग में फतह हो या शिकश्त” तुम अपनी जगह से हरगिज न हटना।
जब मुसलमानों को शुरू में फतह हुई, तो काफिरों को भागता हुआ देख कर यह लोग भी अपनी जगह से यह समझ कर हट गए के अब जंग खत्म हो चुकी, क्यों न हम भी माले गनीमत जमा करने में अपने भाइयों की मदद करें।
उन के अमीर हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुबैर (र.अ) ने बार बार रोकने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने फतह की खुशी में बात न सुनी और पहाड़ से नीचे उतर आए।
हजरत ख़ालिद बिन वलीद (र.अ) जो उस वक्त मुसलमान नहीं हुए थे और कुफ्फार की तरफ से लड़ रहे थे, जब उस जगह को खाली देखा, तो पीछे से हमला कर दिया।
इधर मुसलमान बेफिक्र थे, बिल आख़िर भागते हुए मुशरिकीन पलट कर मुसलमानों पर टूट पड़े, अचानक हमला होने की वजह से कुफ्फार के बीच में आ गए, जिस की वजह से ७० मुसलमान शहीद हुए, आप (ﷺ) का सर मुबारक जख्मी और एक मुबारक दाँत भी शहीद हो गया।
2. अल्लाह की कुदरत
नाक – कुदरते इलाही की निशानी
अल्लाह तआला ने इंसान के चेहरे पर नाक बनाई जिस से चेहरे की रौनक बढ़ जाती है और चेहरा खूबसूरत व खुशनुमा मालूम होता है।
फिर उस में अल्लाह ने दो नथने बनाए उनमें कुव्वते हास्सा और शाम्मा (महसूस करने और सूंघने की ताकत) रख दी जिससे नाक खाने पीने की चीजों की बू सूंघ कर फौरन कैफियत का पता लगा देती है।
यही नाक ताजा हवा को भी सूंघती है, जो दिल की गिजा है जिस से अन्दरून की हरारत बरकरार रहती है।
गौर तो करो, यह सारा निजाम किसने बनाया है ?
बेशक उसी अल्लाह ने बनाया है जो जर्रे जर्रे का अकेला मालिक है।
3. एक फर्ज के बारे में
शौहर पर बीवी के खर्चे की जिम्मेदारी
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :
“तुम पर वाजिब है के तुम औरतों के लिए कायदे के मुवाफिक खाने और कपड़े का इंतजाम करो।”
वजाहत: शौहर पर वाजिब है के वह बीवी के लिये अपनी हैसियत के मुताबिक रोटी और कपड़े का इंतजाम करे।
4. एक सुन्नत के बारे में
सवारी पर सवार होने के बाद की दुआ
रसूलुल्लाह (ﷺ) जब सफ़र के इरादे से निकलते और सवारी पर बैठ जाते तो तीन मर्तबा तक्बीर: (अल्लाहु अकबर) फ़र्माते और यह दुआ पढ़तेः
“Allahu akbar, Allahu akbar, Allahu akbar,
subhanal-lathee sakhkhara lana hatha wama kunna lahu muqrineen,
wa-inna ila rabbina lamunqaliboon”
📕 तिर्मिज़ी : ३४४७, अन इब्ने उमर (ऱ.अ)
5. एक अहेम अमल की फजीलत
अल्लाह के लिये मुहब्बत का बदला
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया:
अल्लाह तआला क़यामत के दिन फरमाएगा।
“मेरी अजमत की वजह से आपस में मुहब्बत करने वाले लोग आज कहाँ हैं ?
मैं आज उन को अपने साए में जगह दूँगा जब के मेरे साए के अलावा कोई साया न होगा।”
6. एक गुनाह के बारे में
पड़ोसी को तकलीफ देने का गुनाह
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :
“जिसने अपने पड़ोसी को तकलीफ दी, उस ने मुझे तकलीफ दी
और जिस ने मुझे तकलीफ दी उस ने अल्लाह को तकलीफ दी
और जिसने अपने पड़ोसी से झगड़ा किया, उसने मुझ से झगड़ा किया
और जिसने मुझ से झगड़ा किया तो उसने अल्लाह से झगड़ा किया।”
7. दुनिया के बारे में
दुनिया की रगबत का खौफ
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :
“मैं तुम से पहले जाने वाला हूँ और मैं तुम पर गवाह हूँ, तुमसे मिलने की जगह हौज़ होगी और अब मैं यहाँ खड़े हो कर उसे देख रहा हूँ, मुझे इस बात का अन्देशा नहीं के तुम मेरे बाद शिर्क करोगे, मगर इस बात का डर है के तुम कहीं दुनिया में रगबत न करने लगो।”
8. आख़िरत के बारे में
जन्नत वालों का इनाम व इकराम
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:
“(जन्नती लोग) जन्नत में सलाम के अलावा कोई बेकार व बेहूदा बात नहीं सुनेंगे और जन्नत में सुबह व शाम उनको खाना (वगैरह) मिलेगा। यही वह जन्नत है, जिसका मालिक हम अपने बन्दों में से उस शख्स को बनाएँगे, जो अल्लाह से डरने वाला होगा।”
9. तिब्बे नबवी से इलाज
मोतदिल गिज़ा का इस्तेमाल
रसूलुल्लाह (ﷺ) खजूर के साथ खीरे खाते थे।
फायदा : मुहद्विसी ने किराम फ़र्माते हैं के खजूर चूँकि गर्म होती है इस लिये आप (ﷺ) उस के साथ ठंडी चीज खीरा (ककड़ी) इस्तेमाल फर्माते थे ताके दोनों मिलकर मोतदिल हो जाएं।
10. क़ुरान की नसीहत
इंसान को उस के माँ बाप के बारे में ताकीद
अल्लाह तआला कुरआन में फरमाता है:
“हमने इन्सान को उस के माँ बाप के बारे में ताकीद की हे के –
माँ-बाप के साथ अच्छा बर्ताव करे, (क्योंकि) उस की माँ ने तकलीफ पर तकलीफ उठा कर उस को पेट मैं रखा और दो साल में उस का दूध छुड़ाया है, ऐ इन्सान ! तू मेरा और अपने माँ-बाप का हक मान (इस लिये के) तुम सब को मेरी ही तरफ लौट कर आना है।”
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