सिर्फ पांच मिनिट का मदरसा क़ुरआन व सुन्नत की रौशनी में
१. इस्लामी तारीख
इस्लाम में पहला हज
हज इस्लाम के पांच अरकान में से एक रुक्न है जो सन ९ हिजरी में फर्ज किया गया। लिहाजा इस फरीजे की अदायगी के लिए इसी साल रसूलुल्लाह (ﷺ) ने हज़रत अबू बक्र सिद्दिक (र.अ) को अमीरे हज बनाया और मुसलमानों को हज कराने की जिम्मेदारी सुपुर्द की।
हज़रत अबू बक्र सिद्दिक (र.अ) के साथ मदीना से तीन सौ आदमियों का काफिला हज के लिए रवाना हुआ। इसके बाद रसूलुल्लाह (ﷺ) के हुक्म से हज़रत अली (र.अ) भी रवाना हुए और कुर्बानी के रोज जब सब लोग मिना में जमा थे, ऐलान फरमाया : “जन्नत में कोई काफिर दाखिल नहीं होगा और इस साल के बाद कोई मुशरिक हज नही कर सकता और कोई शख्स (जाहिली रस्म के मुताबिक) नंगा हो कर तवाफ नहीं कर सकता।”
इस्लाम में यह पहला फर्ज हज था जिसके अमीर हज़रत अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) और खतीब हज़रत अली (र.अ) थे।
२. अल्लाह की कुदरत
कोसे कज़ह (Rainbow)
अल्लाह की कुदरत
बारिश के मौसम में जब हल्की धूप में बारिश होती है तो आसमान पर एक जानिब से दूसरी जानिब सात रंगों वाली क़ौसे कज़ह (कमान) ज़ाहिर होती है।
कमान के यह मुख्तलिफ रंग आसमान के हुस्न व खूबसूरती में इज़ाफ़ा कर देते हैं, जिसको देख कर इन्सान सोचने पर मजबूर हो जाता है के आखिर आसमान की इस बुलन्दी पर किसी पेन्टिंग के बगैर चन्द मिनटों में इतनी बड़ी, खूबसूरत और हसीन क़ौसे क़ज़ह किसने बनाई।
बेशक यह अल्लाह ही की ज़ात है जो अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ कुदरत का इज़हार फरमाती है।
३. हुजूर (ﷺ) का मुअजिजा
पहाड़ का हिलना | हुजूर (ﷺ) का मुअजिजा
“रसूलुल्लाह (ﷺ) एक मर्तबा उहुद पहाड़ पर चढ़े, आप के साथ हज़रत अबू बक्र (र.अ), हज़रत उमर (र.अ) और हज़रत उस्मान (र.अ) भी थे, वह पहाड़ हिलने लगा रसूलुल्लाह (ﷺ) ने पहाड़ पर अपना पाँव मार कर फर्माया:
उहुद ठहर जा तुझ पर एक नबी, एक सिद्दीक और दो शहीद हैं। (तो वह ठहर गया)”
४. एक फ़र्ज़ अमल के बारे में
कयामत के दिन सब से पहले नमाज़ का हिसाब होगा
नमाज़ की सेहत पर रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :
“कयामत के दिन सब से पहले नमाज़ का हिसाब होगा, अगर नमाज़ अच्छी हुई तो बाकी आमाल भी अच्छे होंगे और अगर नमाज़ खराब हुई तो बाकी आमाल भी खराब होंगे।”
“क़यामत में सब से पहले नमाज़ का हिसाब लिया जाएगा, अगर वह अच्छी और पूरी निकल आई तो बाकी आमाल भी पूरे उतरेंगे और अगर वह खराब हो गई, तो बाक़ी आमाल भी खराब निकलेंगे।”
5. एक सुन्नत अमल के बारे में
खुशी के वक्त सज्द-ए-शुक्र अदा करना
अबी बकरह रज़ि० से रिवायत है के:
रसूलुल्लाह (ﷺ) को जब खुशी का मौक़ा आता या कोई खुशखबरी सुनाई जाती,
तो आप (ﷺ) सज्दा ए-शुक्र अदा करते।
6. एक अहेम अमल की फजीलत
सुन्नत पर अमल करने पर शहीद का सवाब
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“जो मेरी उम्मत में बिगाड़ के वक्त मेरी सुन्नत को मजबूती से थामे रहेगा, उसके लिये एक शहीद का सवाब है।”
7. एक गुनाह के बारे में
सूद खाने का अजाब
रसूलुल्लाह (ﷺ) फ़रमाते हैं के :
“मेराज की शब मेरा गुजर चंद ऐसे लोगों पर हुआ जिन के पेट धड़ों के मानिन्द बड़े बड़े थे, जिस में सांप थे, जो पेट के बाहर से नजर आते थे, मैं ने हज़रत जिब्रईल से पूछा: यह कौन लोग हैं? तो फ़रमाया: यह सूद खाने वाले हैं।”
8. दुनिया के बारे में
दुनिया की जाहिरी हालत धोका है
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“यह लोग सिर्फ दुनियावी ज़िंदगी की ज़ाहिरी हालत को जानते हैं और यह आख़िरत से बिल्कुल ग़ाफिल हैं।” (यानी इन्सान सिर्फ दुनिया की चीजों को जानते और उसी को हासिल करने की फिक्र में लगे रहते हैं, उन्हें पता ही नहीं है के इस के बाद दूसरी जिंदगी आने वाली है और वह हमेशा हमेशा की जिंदगी है, लिहाजा दुनिया में लगने के बजाए आखिरत की तय्यारी में मशगूल रहना चाहिये।)”
9. आख़िरत के बारे में
बुरे लोगों का अंजाम
कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है :
“जो शख्स झुटलाने वाले गुमराहों में से होगा, तो खौलते हुए गरम पानी से उसकी मेहमानवाजी होगी और उसे दोजख में दाखिल किया जाएगा।”
10. तिब्बे नबवी से इलाज
जिस्म के दर्द का इलाज
हजरत उस्मान बिन अबिल आस (र.अ) ने रसूलुल्लाह (ﷺ) की खिदमत में हाजिर हो कर अपने जिस्म के दर्द को बताया तो रसूलल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : जहां दर्द होता हो वहां हाथ रख कर तीन बार “बिस्मिल्लाह” और सात मर्तबा यह दुआ पढ़ो:
( أَعُوذُ بِاللَّهِ وَقُدْرَتِهِ مِنْ شَرِّ مَا أَجِدُ وَأُحَاذِرُ )
“A’udhu Billahi Wa Qudratihi Min Sharri Ma Ajidu Wa Uhadhiru”
तर्जमा: मैं अल्लाह और उस की कुदरत की पनाह चाहता हुँ उस तकलीफ़ से जो मुझे पहुँची है और जिस से मैं डरता हुँ। चुनान्चे उन सहाबी ने जब यह कलिमात कहे तो उन का दर्द खत्म हो गया फिर वह सहाबी अपने घर वालों और दूसरे जरुरतमंदों को हमेशा इन कलिमात की तलकीन करते रहते थे।
11. क़ुरआन व सुन्नत की नसीहत
जन्नत में दाखिल करने वाले आमाल
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“अल्लाह तआला की इबादत करते रहो, खाना खिलाते रहो और सलाम फैलाते रहो, (इन आमाल की वजह से जन्नत में सलामती के साथ दाखिल हो जाओगे।”