- इस्लामी तारीख: हज़रत हस्सान बिन साबित (र.अ.)
- अल्लाह की कुदरत: समुन्दर के पानी का खारा होना
- एक फर्ज के बारे में: अमानत का वापस करना
- एक सुन्नत के बारे में: मस्जिद की सफ़ाई करना सुन्नत है
- एक अहेम अमल की फजीलत: नमाजे इशराक की फजीलत
- एक गुनाह के बारे में: वालिदैन की नाराजगी का वबाल
- दुनिया के बारे में : दुनिया के पीछे भागने का वबाल
- आख़िरत के बारे में: जहन्नम का जोश व खरोश
- तिब्बे नबवी से इलाज: मुअव्वजतैन से बीमारी का इलाज
- कुरआन की नसीहत: यतीम के माल के बारे में
1. इस्लामी तारीख: हजरत हस्सान बिन साबित (र.अ.)
. हजरत हस्सान बिन साबित (र.अ.) को शायरे रसूलुल्लाह का लकब हासिल है, अल्लाह के नबी (ﷺ) ने अपनी जिंदगी में हजरत हस्सान के अलावा किसी सहाबी को मिम्बर पर नहीं बिठाया, जब कुफ्फ़ार व मुशरिकीन हुजूर (ﷺ) के खिलाफ़ अशआर पढ़ते थे, तो हुजूर (ﷺ) ने हजरत हस्सान बिन साबित को मौका दिया के वह मिम्बर पर खड़े हों और आप की तारीफ़ बयान फरमाए।
. हज़रत हस्सान अन्सारी के बारे में कहा जाता है के जाहिलियत के ज़माने में वह अहले मदीना के शायर थे, फ़िर हुजूर (ﷺ) के जमान-ए-नुबुव्वत में वह शायरुन नबी बने, फ़िर तमाम आलमे इस्लाम के मुक़द्दस शायर बन गए।
. हजरत हस्सान बिन साबित (र.अ.) अपने बुढ़ापे की वजह से हुजूर (ﷺ) के साथ किसी गज़वह में शरीक नहीं हो सके, लेकिन उन्होंने दुश्मनों का अपनी ज़बान यानी शेर से मुकाबला किया, कहा जाता है के अरब में सब से बेहतरीन शोअरा अहले यसरिब (यानी मदीने वाले) हैं और अहले मदीना में सबसे ज़ियादा अच्छे शायर हस्सान बिन साबित थे।
. हजरत हस्सान (र.अ.) ने एक सौ बीस साल की उम्र पाई, साठ साल जाहिलियत में गुजरे और साठ साल इस्लाम में गुजरे।
2. अल्लाह की कुदरत: समुन्दर के पानी का खारा होना
. यह दुनिया एक हिस्सा जमीन और तीन हिस्सा समुन्दर है और इस में अल्लाह की बेहिसाब मखलूक हैं जिनमें न जाने कितने रोजाना पैदा होते और मरते हैं और दुनिया भर की गंदगी समुन्दर में डाली जाती है लेकिन अल्लाह तआला ने समुन्दर के पानी को खारा बनाया, यह खारापन समुन्दर की हर किस्म की गंदगी को खत्म कर देता है, अगर ऐसा न होता तो इन गंदगियों की वजह से समुन्दर का पूरा पानी खराब और बदबूदार हो जाता, जिसकी वजह से पानी और जमीन दोनो जगहों में रहने वाली मखलूक का बहुत बड़ा नुक्सान होता।
. यह अल्लाह तआला की कुदरत है के उस ने समंदर को खारा बनाया।
3. एक फर्ज के बारे में: अमानत का वापस करना
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है : “अल्लाह तआला तुम को हुक्म देता है के जिनकी अमानतें हैं उन को लौटा दो।” [सूर-ए-निसा: ५८]
फायदा: अगर किसी ने किसी शख्स के पास कोई चीज़ अमानत के तौर पर रखी हो, तो मुतालबे के वक्त उस का अदा करना जरूरी है।
4. एक सुन्नत के बारे में: मस्जिद की सफ़ाई करना सुन्नत है
रसूलुल्लाह (ﷺ) खजूर की शाखों से मस्जिद का गर्द व गुबार साफ़ फ़र्माते थे। [मुसन्नफे इब्ने अबी शबा : १/४३५]
5. एक अहेम अमल की फजीलत: नमाजे इशराक की फजीलत
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया : अल्लाह तआला फर्माता है के “ऐ इब्ने आदम! तू दिन के शुरु हिस्से में मेरे लिए चार रकातें पढ़ लिया कर (यानी इशराक की नमाज़) तो मैं दिन भर के तेरे सारे काम बना दूंगा।” [तिरमिजी: १७५, अन अबी दर्दा व अबीज़रा]
6. एक गुनाह के बारे में: वालिदैन की नाराजगी का वबाल
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : “ऐसे शख्स की नमाज़ कबूल नहीं की जाती, जिस के वालिदैन उस पर बरहक नाराज हों।” [कन्जुल उम्भाल : ४५५१५, अन अबी हुरैरह]
वजाहत: अगर किसी शख्स के वालिदैन बगैर किसी शरई उज्र के नाराज़ रहते हों, तो वह शख्स इस वईद में दाखिल नहीं है।
7. दुनिया के बारे में : दुनिया के पीछे भागने का वबाल
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : “जो शख्स दुनिया के पीछे पड़ जाए, उस का अल्लाह तआला से कोई तअल्लुक नहीं और जो (दुनियावी मक्सद के लिए) अपने आप को खुशी से जलील करे, उस का हम से कोई तअल्लुक नहीं।” [अल मुअजमुल औसत तिबरानी : ४७८. अन अबीज़र]
8. आख़िरत के बारे में: जहन्नम का जोश व खरोश
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है : “जब जहन्नम (कयामत के झुटलाने वालों) को दूर से देखेगी, तो वह लोग (दूर ही से) उस का जोश व खरोश सुनेंगे और जब वह दोजख की किसी तंग जगह में हाथ पाँव जकड़ कर डाल दिए जाएंगे, तो वहां मौत ही मौत पुकारेंगे।” (जैसा के मुसीबत में लोग मौत की तमन्ना करते हैं) [सूरह-ए-फुरकानः १२-१३]
9. तिब्बे नबवी से इलाज: मुअव्वजतैन से बीमारी का इलाज
हजरत आयशा सिद्दीका (र.अ) फरमाती हैं के रसूलुल्लाह (ﷺ) जब बीमार होते, तो मुअव्वजतैन (सूरह फलक) और (सूरह नास) पढ़ कर अपने ऊपर दम कर लिया करते थे। [मुस्लिम ५७१५]
10. कुरआन की नसीहत: यतीम के माल के बारे में
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है: “यतीम के माल के करीब भी मत जाओ, मगर ऐसे तरीके से जो शरई तौर पर दुरुस्त हो, यहाँ तक के वह अपनी जवानी की मंज़िल को पहुँच जाए; और नाप तौल इन्साफ़ से पूरा करो और हम किसी शख्स को उस की ताकत से ज़ियादा अमल करने का हुक्म नहीं देते।” [सूर-ए-अन्आम: १५२]
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