- इस्लामी तारीख: हजरत जमीला बिन्ते सअद बिन रबी (र.अ.)
- हुजूर का मुअजिजा: हुजूर (ﷺ) की दुआ का असर
- एक फर्ज के बारे में: इल्म हासिल करना जरूरी है
- एक सुन्नत के बारे में: हर तरह की परेशानी से छुटकारा
- एक अहेम अमल की फजीलत: शहादत की मौत मांगना
- एक गुनाह के बारे में: हलाल को हराम समझना गुनाह है
- दुनिया के बारे में : नेअमत देने में अल्लाह का कानून
- आख़िरत के बारे में: कयामत किन लोगों पर आएगी
- तिब्बे नबवी से इलाज: बुखार का इलाज
- नबी की नसीहत: जब तुम्हारे पास किसी दीनदार शख्स के निकाह का पैगाम आएँ
1. इस्लामी तारीख:
हजरत जमीला बिन्ते सअद बिन रबी (र.अ.)
. हजरत सअद और उन के वालिद हजरत रबीअ ऐसे दो अन्सारी सहाबी है, जो हुजूर (ﷺ) की हिफाजत करते हुए शहीद हो गए, उस वक्त हज़रत सअद की बेटी जमीला बिन्ते सअद पैदा नहीं हुई थीं, सअद के इन्तेकाल के बाद उन की बीवी ने आकर शिकायत की के सअद के भाई ने मीरास का माल ले लिया और सअद की दोनों बेटियों को और मुझे कुछ भी नहीं दिया, उस पर अल्लाह तआला ने मीरास (विरासत) की तकसीम के बारे में आयात नाजिल फ़रमाई। जिन में अल्लाह तआला ने बीबियों और बेटियों को भी माले विरासत का हकदार बताया है।
. इस्लाम से कब्ल किसी मज़हब या समाज में औरतों को मीरास में हिस्सा देने का रिवाज नहीं था। जमीला बिन्ते सअद की वालिदा इल्मल फराइज के नुजूल का सबब बनी, ऐसे दीनदार माँ बाप की बेटी हज़रत जमीला भी बहुत सारी खूबियों की मालिक थी, आप आलिमा, फकीहा और कुरआन की हाफिज़ा थीं, इल्मुल फराइज से खूब वाकिफ थीं, अपने घर में बच्चों को कुरआन पढ़ाती और साथ ही आयात का शाने नुजूल बताती थीं, तलबा उन से आकर इस्तिफ़ादा करते, ऐसी आलिमा फाजिला सहाबिया की औलाद भी इल्म से मामूर थीं, हजरत खारजा बिन जैद इन के बेटे है, जो मदीना मुनव्वरा के सात बड़े फुकहा में से थे।
2. हुजूर का मुअजिजा:
हुजूर (ﷺ) की दुआ का असर
हज़रत अबू लैला फ़र्माते हैं के हजरत अली (र.अ.) ठंडी में गर्मी के कपड़े पहनते थे और गर्मी में ठंडी के।
मैंने एक दिन उनसे पूछा, तो हजरत अली (र.अ.) ने फ़रमाया: “खैबर के दिन मेरी आँखे दर्द कर रही थीं, ऐसे वक्त में रसूलुल्लाह (ﷺ) ने मुझे बुला भेजा, तो मैं ने कहा : हुजूर मेरी आँखें दर्द कर रही हैं, उस वक्त हुजूर (ﷺ) ने मेरी आँखों में अपना थूक मुबारक लगाया और दआ की “या अल्लाह! तू अली से गर्मी और सर्दी को दूर कर दे, चुनान्चे उस दिन से मुझे गर्मी और सर्दी का एहसास नहीं हुआ।” [इब्ने माजा. १३७]
3. एक फर्ज के बारे में:
इल्म हासिल करना जरूरी है
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया : “इल्म हासिल करना हर मुसलमान पर फ़र्ज है।” [इब्ने माजा : २२४]
4. एक सुन्नत के बारे में:
हर तरह की परेशानी से छुटकारा
रसूलुल्लाह (ﷺ) को जब कोई बेचैनी व तक्लीफ पेश आती, तो आप यह दुआ पढ़ते,
“La ilaha illallahul-Azimul-Halim. La ilaha illallahu Rabbul-‘Arshil-‘Azim. La ilaha illallahu Rabbus-samawati, wa Rabbul-ardi, wa Rabbul-‘Arshil- Karim.”
5. एक अहेम अमल की फजीलत:
शहादत की मौत मांगना
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : “जो शख्स सच्ची तलब के साथ अल्लाह तआला से शहादत की मौत मांगता है, तो अल्लाह तआला उसे शहीदों के दर्जे तक पहुंचा देता है, चाहे वह अपने बिस्तर ही पर मरा हो।”
6. एक गुनाह के बारे में:
हलाल को हराम समझना गुनाह है
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है : “ऐ ईमान वालो! अल्लाह ने तुम्हारे लिए जो पाक व लजीज चीजें हलाल की हैं, उन को अपने ऊपर हराम न किया करो और (शरई) हुदूद से आगे मत बढ़ो, बेशक अल्लाह तआला हद से आगे बढ़ने वालों को पसंद नहीं करता।” [सूर-ए-माइदा: ८७]
7. दुनिया के बारे में :
नेअमत देने में अल्लाह का कानून
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :
“अल्लाह जब किसी कौम को कोई नेअमत अता करता है, तो उस नेअमत को उस वक्त तक नहीं बदलता, जब तक वह लोग खूद अपनी हालत को न बदलें, यकीनन अल्लाह तआला बड़ा सुनने वाला और जानने वाला है।”
8. आख़िरत के बारे में:
कयामत किन लोगों पर आएगी
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : “कयामत सिर्फ बदतरीन लोगों पर ही आएगी।” [मुस्लिम: ७४०२, इब्ने मसऊद]
खुलासा: जब तक इस दुनिया में एक शख्स भी अल्लाह का नाम लेने वाला जिंदा रहेगा, उस वक्त तक दुनिया का निजाम चलता रहेगा, लेकिन जब अल्लाह का नाम लेने वाला कोई न रहेगा और सिर्फ बदतरीन और बुरे लोग ही रह जाएंगे, तो उस वक्त कयामत कायम की जाएगी।
9. तिब्बे नबवी से इलाज:
बुखार का इलाज
हज़रत इब्ने अब्बास र.अ. फर्माते हैं के रसूलुल्लाह (ﷺ) ने सहाब-ए-किराम को बुखार और दुसरी तमाम बीमारियों से नजात के लिए यह दुआ बताई:
“Bismillahil-Kabir; a’udhu billahil-‘Azimi min sharri kulli ‘irqin na’arin, wa min sharri harrin-nar”
तर्जमा: मैं अल्लाह के नाम से शुरु करता हुँ जो बहुत बड़ा है, मैं उस अल्लाह तआला की पनाह मांगता हुँ जो बहुत अज़मत वाला है, हर जोश मारने वाली रग की बुराई से और आग की गर्मी की बुराई से। [तिर्मिजी : २०७५]
10. नबी की नसीहत:
जब तुम्हारे पास किसी दीनदार शख्स के निकाह का पैगाम आएँ
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया: “जब तुम्हारे यहां कोई ऐसा शख्स निकाह का पैगाम दे, जिसके दीनदारी व अख्लाक से तूम मुतमइन हो, तो उस से निकाह कर दिया करो और अगर तुम ने ऐसा नहीं किया तो जमीन में जबरदस्त फ़ितना व फसाद फैल जाएगा।”
[तिर्मिजी:१०८४, अन अबी हुरैरह]
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