कुरैश ने जब यह देखा के सहाबा-ए-किराम हबशा जा कर सुकून व इत्मीनान के साथ जिंदगी गुजार रहे हैं, तो उन्होंने मशविरा कर के अम्र बिन आस और अब्दुल्लाह बिन अबी रबीआ को बहुत सारे तोहफे देकर बादशाह हबशा के पास भेजा। वहाँ का बादशाह ईसाई था। इन दोनों ने वहाँ जाकर तोहफे पेश किये और कहा के हमारे यहाँ से कुछ लोग अपने आबाई मजहब को छोड़ कर एक नया दीन इख्तियार कर के आपके मुल्क में भाग कर आ गए हैं. इस लिये उन को हमारे पास वापस कर दीजिए। बादशाह ने मुसलमानों को बुला कर हक़ीक़ते हाल दरयाफ्त की। मुसलमानों की तरफ से हज़रत जाफर आगे बढ़े और कहा : “ऐ बादशाह ! हम लोग जहालत व गुमराही में मुब्तला थे। बुतों की पूजा करते. मुरदार खाते थे और हम में से ताकतवर कमजोर पर जुल्म करता था। हम इसी हाल में थे के अल्लाह तआला ने हम पर फजल फ़र्मा कर एक रसूल भेजा, जिन की सच्चाई, अमानतदारी और पाकदामनी को हम पहले ही से जानते थे। उन्होंने हमें एक अल्लाह की इबादत करने, नमाज़, रोज़ा और जकात अदा करने और पड़ोसियों व रिश्तेदारों के साथ अच्छा सुलूक करने का हुक्म दिया और जुल्म व सितम,खूरेजी और दूसरी बुरी बातों से रोका। हम उन बातों पर ईमान ले आए। इसपर हमारी कौम नाराज हो गई और हमें तकलीफें पहुंचाने लगी। तो फिर हम आपके मुल्क में आ गए हैं। फिर हजरत जाफर ने सूरह मरयम की चंद आयतें पढ़ कर सुनाई। बादशाह पर इस का इतना असर पड़ा के आँख से आँसू जारी हो गए हत्ता के दाढ़ी तर हो गई और बादशाह ने कुफ्फारे कुरैश को यह कह कर दरबार से निकलवा दिया के मैं इन लोगों को हरगिज़ तुम्हारे हवाले नहीं करूँगा। सुभान अल्लाह
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- नजाशी के दरबार में कुफ्फारे मक्का की आखरी कोशिश जब कूफ्फारे कूरैश बादशाह नजाशी के दरबार से अपनी कोशिश में नाकाम हो कर निकले, तो अम्र बिन आस ने कहा के मैं कल बादशाह के सामने ऐसी बात कहूँगा, जिसकी वजह से वह मुसलमानों को बिलकुल ख़त्म कर डालेगा। अगले रोज अम्र बिन आस ने नजाशी के पास आकर…
- मुसलमानों की हिजरते हबशा जब कुफ्फार व मुशरिकीन ने मुसलमानों को बेहद सताना शुरू किया, तो रसूलुल्लाह (ﷺ) ने सहाबा-ए-किराम को इजाजत दे दी के जो चाहे अपनी जान और ईमान की हिफाजत के लिये मुल्के हबशा चला जाए। वहाँ का बादशाह किसी पर जुल्म नहीं करता, वह एक अच्छा मुल्क है। उस के…
- गज्व-ए-ख़न्दक में सहाबा की कुरबानी ग़ज़्व-ए-खन्दक में मारिकीन ने दस हजार का लश्कर ले कर मदीने का मुहासरा कर दोनों तरफ से तीर अन्दाज़ी और संगबारी का तबादला होते हुए दो हफ्ते गुजर गए, तो कुरैश ने तमाम फौज को जमा कर के हमला करने का मन्सूबा बनाया, इत्तेफाक से एक मकाम पर खन्दक़ की…
- मुसलमानों पर कुफ्फार का जुल्म व सितम कुफ्फार व मुशरिकीन मुसलमानों पर बहुत ज्यादा जुल्म व सितम ढाते थे और दीने हक कबूल करने की वजह से उन के साथ इन्तेहाई बे रहमाना सुलूक करते थे। चुनान्चे उमय्या बिन खल्फ अपने गुलाम हज़रत बिलाल हबशी (र.अ) को तपती हुई रेत पर कभी पीठ के बल लिटा कर…
- नबी (ﷺ) को शहीद करने की नाकाम साजिश कुरैश को जब मालूम हुआ के मोहम्मद (ﷺ) भी हिजरत करने वाले हैं, तो उन को बड़ी फिक्र हुई के अगर मोहम्मद (ﷺ) भी मदीना चले गए, तो इस्लाम जड़ पकड़ जाएगा और फिर वह अपने साथियों के साथ मिल कर हम से बदला लेंगे और हमें हलाक कर देंगे।…
- ग़ज़वा-ए-उहुद में मुसलमानों की आज़माइश ग़ज़वा-ए-उहुद में मुसलमानों ने बड़ी बहादुरी से मुशरिकीने मक्का का मुकाबला किया, जिस में पहले फतह हुई, मगर बाद में एक चूक की वजह से नाकामी का सामना करना पड़ा। जंग शुरू होने से पहले रसूलुल्लाह (ﷺ) ने पचास तीरअन्दाजों की एक जमात को पहाड़ की घाटी पर जहाँ से…
- हज के मौसम में इस्लाम की दावत देना जब रसूलुल्लाह (ﷺ) ने देखा के कुफ्फारे कुरैश इस्लाम कबूल करने के बजाए बराबर दुश्मनी पर तुले हुए हैं। तो हुजूर (ﷺ) हज के मौसम के इंतज़ार में रहने लगे और जब हज का मौसम आ जाता और लोग मुख्तलिफ इलाकों से मक्का आते, तो ऐसे मौके पर रसूलुल्लाह (ﷺ)…
- बनी हाशिम का बायकाट और तीन साल की कैद कुफ्फारे मक्का के जुल्म व सितम और रोकथाम के बावजूद इस्लाम तेजी से बढ़ता रहा, यह देख कर कुफ्फारे मक्का ने तदबीर सोची के मुहम्मद (ﷺ) और उन के खानदान का बायकाट किया जाए, लिहाज़ा सब ने आपस में मशवरा कर के एक अहद नामा लिखा और उसे खान-ए-काबा पर…
- ग़ारे सौर से हुजूर (ﷺ) की रवानगी रसूलुल्लाह (ﷺ) हिजरत के दौरान गारे सौर में जुमा, सनीचर और इतवार तीन दिन रहे, फिर जब मक्का में शोर व हंगामे में कमी हुई तो मदीना के लिये निकलने का इरादा फ़रमाया, अब्दुल्लाह बिन अरीक़त को रास्ते की रहनुमाई में बहुत महारत थी, उन्हें हज़रत अबू बक्र (र.अ.) ने…
- सिरत : उम्मुल मोमिनीन हज़रत खदीजा (र.अ) . हजरत खदीजा बिन्ते खुवैलिद (र.अ) बड़ी बा कमाल और नेक सीरत खातून थीं, उनका तअल्लुक कुरैश के मुअज्जज खानदान से था, वह खुद भी बाअसर और कामयाब तिजारत की मालिक थीं। उनकी पहली शादी अबूहाला से हुई जिन से दो लड़के पैदा हुए उन के इन्तेकाल के बाद दूसरी शादी…
- क़यामत के दिन इन्सान के आज़ा की गवाही कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है: "जिस दिन अल्लाह के दुश्मन (यानी कुफ्फार) दोज़ख की तरफ जमा (करने के मौकफ में) लाएंगे, फिर वह रोके जाएँगे (ताके बाकी आजाएँ) यहाँ तक के जब वह उसके करीब आजाएँगे तो उनके कान, उनकी आँखें और उनकी खाल, उनके खिलाफ उन के किये…
- कुफ्फार का हुजूर (ﷺ) को तकलीफें पहुंचाना जैसा के हर दौर के लोगों ने अपने जमाने के नबी का इनकार किया और उनके साथ बुरा सुलूक किया, ऐसे ही बल्के इससे मी ज़ियादा बुरा सुलूक नबीए करीम (ﷺ) के साथ कुफ्फारे मक्का ने किया, चुनान्चे हुजूर (ﷺ) का इर्शाद है : "तमाम नबियों में, मैं सब से…
- रसूलुल्लाह (ﷺ) की चचा अबू तालिब से गुफ्तगू जब रसूलुल्लाह (ﷺ) लोगों की नाराजगी की परवा किये बगैर बराबर बुत परस्ती से रोकते रहे लोगों को सच्चे दीन की दावत देते रहे, तो कुरैश के सरदारों ने आप (ﷺ) के चचा अबू तालिब से शिकायत की, के तुम्हारा भतीजा हमारे माबूदों को बुरा भला कहता है, हमारे बाप…
- मदीना के कबाइल से हुजूर (ﷺ) का मुआहदा मदीना तय्यिबा में मुख्तलिफ नस्ल व मज़हब के लोग रहते थे, कुफ्फार व मुश्रिकीन के साथ यहुद भी एक लम्बे जमाने से आबाद थे। रसूलुल्लाह (ﷺ) ने मदीना पहुँचने के बाद हिजरत के पहले ही साल मुसलमानों और यहूदियों के दर्मियान बाहमी तअल्लुकात ख़ुशगवार रखने के लिये एक बैनल अक्रवामी…
- गजवा-ऐ-बद्र मुसलमानों को सफह-ए-हस्ती से मिटाने के लिये मुश्रिकीने मक्का एक हज़ार का फौजी लश्कर लेकर मक्का से निकले, सब के सब हथियारों से लैस थे, जब हुजूर (ﷺ) को इत्तेला मिली, तो आप (ﷺ) उन के मुकाबले के लिये अपने जाँनिसार सहाबा को ले कर मदीना से निकले, जिन की…
- मक्का में बुत परस्ती की इब्तेदा कुरैश का क़बीला हज़रत इब्राहीम (अ.स) के दीन पर बराबर क़ायम रहा और एक खुदा की इबादत ही करता रहा, यहाँ तक के हुज़ूर (ﷺ) से तीन सौ साल पहले अम्र बिन लुई खुजाई का दौर आया। अम्र मक्का का बड़ा दौलतमन्द शख्स था, उस के पास बीस हज़ार उँट…
- मुहाजिर और अंसार में भाईचारा मक्का के मुसलमान जब कुफ्फार व मुशरिकीन की तकलीफों से परेशान हो कर सिर्फ अल्लाह, उसके रसूल और दीने इस्लाम की हिफाजत के लिये अपना माल व दौलत, साज व सामान और महबूब वतन को छोड़ कर मदीना मुनव्वरा हिजरत कर गए। उस मौके पर रसूलल्लाह (ﷺ) ने उन मुसलमानों…
- हुजूर (ﷺ) की हिजरत रसूलअल्लाह (ﷺ) को जब अल्लाह ताला के हुक्म से हिजरत की इजाजत मिली, तो उसकी इत्तेला हजरत अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) को दे दी, और जब हिजरत का वक्त आया, तो रात के वक्त घर से निकले और काबा पर अलविदाई नज़र डालकर फ़र्माया : तू मुझे तमाम दुनिया से…