रसूलुल्लाह (ﷺ) जब किसी के घर के दरवाज़े पर आते, तो बिल्कुल सामने खड़े ना होते,
बल्क़ि दायीं तरफ या बायीं तरफ तशरीफ फ़रमा होते और “अस्सलामु अलैकुम” फ़रमाते।
दरवाज़े पर सलाम करने की सुन्नत

और देखे :
- जहन्नम के दरवाजे का फासला रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "जहन्नम के सात दरवाजे हैं. हर दो दरवाजों के दर्मियान का फासला एक सवार आदमी के सत्तर साल चलने के बराबर है।"
- माफ़ करने की सुन्नत हज़रत आयशा (र.अ) बयान करती हैं के “रसूलुल्लाह (ﷺ) ने अपनी जात के लिए कभी किसी से कोई बदला नहीं लिया।”
- सिफारिश पर बतौरे हदिया माल लेना एक गुनाह रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : “किसी ने अपने (मुसलमान) भाई की किसी चीज़ में सिफारिश की और सिफारिश करने पर सामने वाले ने उस को कोई चीज बतौरे हदिया पेश की और उस ने कुबूल कर ली, तो वह सूद के बहुत बड़े दरवाजे पर आ पहुँचा।”
- खाना खिलाया करो और सलाम को आम करो रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "रहमान (अल्लाह) की इबादत करो और खाना खिलाया करो और सलाम को आम करो (चाहे उस से जान पहचान हो या न हो) तुम जन्नत में सलामती के साथ दाखिल हो जाओगे।"
- मस्जिदे नबवी की तामीर हिजरत के बाद रसूलुल्लाह (ﷺ) ने सब से पहले एक मस्जिद की तामीर फ़रमाई, जिस को आज "मस्जिदे नब्वी" के नाम से जाना जाता है। उस के लिये वही जगह मुन्तखब की गई थी, जहाँ हुजूर (ﷺ) की ऊँटनी बैठी थी, यह जमीन बनू नज्जार के दो यतीम बच्चों की…
- सुन्नत पर अमल करना रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "जो मेरी उम्मत में बिगाड़ के वक्त मेरी सुन्नत को मजबूती से थामे रहेगा, उसके लिये एक शहीद का सवाब है।"
- जन्नत में दाखिल करने वाले आमाल रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : “अल्लाह तआला की इबादत करते रहो, खाना खिलाते रहो और सलाम फैलाते रहो, (इन आमाल की वजह से जन्नत में सलामती के साथ दाखिल हो जाओगे।”
- गुस्ल करने का सुन्नत तरीका रसूलुल्लाह (ﷺ) जब गुस्ले जनाबत फ़र्माते, तो सबसे पहले हाथ धोते, फिर सीधे हाथ से बाएँ हाथ पर पानी डालते, फिर इस्तिन्जे की जगह धोते, फिर जिस तरह नमाज के लिये वुजू किया जाता है उसी तरह वुजू करते, फिर पानी लेकर अपनी उंगलियों के जरिये सर के बालों की…
- सज्दा करने का सुन्नत का तरीका रसूलुल्लाह (ﷺ) जब सज्दा फरमाते तो अपनी नाक और पेशानी को जमीन पर रखते और अपने बाजुओं को पहलू से अलग रखते और अपनी हथेलियों को कांधे के बराबर रखते।
- औरतों का चंद बातों पर अमल करना रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया : "अगर औरत पाँच वक़्त की नमाज पढ़े और रमजान के रोजे रखे और अपनी शर्मगाह की हिफाज़त करे और अपने शौहर की फरमाबरदारी करे (तो कयामत के दिन) उससे कहा जाएगा: तुम जन्नत के जिस दरवाजे से चाहो जन्नत में दाखिल हो जाओ।"
- कसरत से इस्तिग़फार करने की सुन्नत हज़रत अबू हुरैरा (र.अ) फर्माते हैं के मैं ने रसूलुल्लाह (ﷺ) को फर्माते हुए सुना के: "ख़ुदा की कसम ! मैं दिन में सत्तर से जियादा मर्तबा अल्लाह तआला से तौबा व इस्तिगफार करता हूँ।" 📕 बुख़ारी: ६३०७
- इशा के बाद जल्दी सोने की सुन्नत रसूलुल्लाह (ﷺ) इशा से पहले नहीं सोते थे और इशा के बाद नहीं जागते थे (बल्के सो जाते थे)
- एक सुन्नत : इस्तिन्जे के बाद वुजू करना हजरत आयशा (र.अ) फर्माती हैं के रसूलुल्लाह (ﷺ) जब बैतुलखला से निकलते तो वुजू फरमाते।
- हुजूर (ﷺ) गारे हिरा में नुबुव्वत मिलने का वक़्त जितना करीब होता गया, उतना ही रसूलुल्लाह (ﷺ) तन्हाई को जियादा ही पसन्द करने लगे। सबसे अलग हो कर अकेले रहने से आप को बड़ा सुकून मिलता था। आप अकसर खाने पीने का सामान ले कर कई कई दिन तक मक्का से दूर जाकर "हिरा" नामी…
- किला फतह होना जंगे खैबर के दिन चन्द आदमी रसूलुल्लाह (ﷺ) के पास आ कर भूक की शिकायत करने लगे और रसूलुल्लाह (ﷺ) से सवाल करने लगे, लेकिन हुजूर (ﷺ) के पास कोई चीज़ न थी, तो आप ने अल्लाह तआला से दुआ की : या अल्लाह ! तू इन की हालत से…
- दुनियावी ख्वाहिशों को पूरा करने का अंजाम रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया : "जो शख्स दुनिया में अपनी ख्वाहिशों को पूरा करता है, वह आखिरत में अपनी ख्वाहिशात के पूरा करने से महरूम होता है।" नोट: अपनी तमाम चाहतों को इसी में पूरी करने की कोशिश नहीं करनी चाहिये वरना आखिरत में महरूम हो जाएगा।
- काफिर का मरऊब हो जाना हज़रत जाबिर (र.अ) फर्माते हैं के हम रसूलुल्लाह (ﷺ) के साथ एक ग़ज़वे में जा रहे थे, रास्ते में एक जगह पड़ाव डाला, तो लोग इधर उधर दो दो, तीन तीन की जमात बना कर दरख्तों के नीचे आराम करने लगे, रसूलुल्लाह (ﷺ) भी एक दरख्त के नीचे आराम फरमाने…
- बीवियों को सलाम करना हज़रत उम्मे सलमा (र.अ) बयान करती हैं के आप (ﷺ) रोजाना सुबह के वक्त बीवियों के पास तशरीफ ले जाया करते थे और उन को खुद सलाम किया करते थे।
- मौत को कसरत से याद करने की फ़ज़ीलत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : "दिलों में भी ज़ंग लगता है, जैसे के लोहे में जब पानी लग जाता है" तो पूछा गया (दिलों का ज़ंग) कैसे दूर होगा? रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया "मौत को खूब याद करने और क़ुरआन पाक की तिलावत से।" 📕 बैहेकी फी शोअबिलईमान: १९५८,अन इब्ने…
- ग़लत हदीस बयान करने की सज़ा रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया : "मेरी हदीस को बयान करने में एहतियात करो और वही बयान करो जिस का तुम्हें यक़ीनी इल्म हो, जो शख्स जान बूझ कर मेरी तरफ से कोई गलत बात बयान करे, वह अपना ठिकाना जहन्नम में बना ले।"