“क्या मैं तुम्हें बेहतरीन सदक़ा न बताऊं? तेरी वह लड़की जो लौट कर तेरे ही पास आ गई हो और उसके लिये तेरे सिवा कोई कमाने वाला न हो(तो ऐसी लड़की पर जो भी खर्च किया जाएगा वह बेहतरीन सदक़ा है।)”
अस्र की नमाज़ की फज़ीलत एक मर्तबा रसूलुल्लाह (ﷺ) ने अस्र की नमाज़ पढ़ाई और फिर लोगों की तरफ मुतवज्जेह हो कर फ़रमाया - "यह नमाज़ तुमसे पहले वाले लोगों पर भी फ़र्ज़ की गई थी, मगर उन्होंने इस को ज़ाय कर दिया, लिहाज़ा सुनो! जो इसको पाबन्दी से पढ़ता रहेगा उसको दोहरा सवाब मिलेगा।" 📕 मुस्लिमः१९२७
मौत को कसरत से याद करने की फ़ज़ीलत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : "दिलों में भी ज़ंग लगता है, जैसे के लोहे में जब पानी लग जाता है" तो पूछा गया (दिलों का ज़ंग) कैसे दूर होगा? रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया "मौत को खूब याद करने और क़ुरआन पाक की तिलावत से।" 📕 बैहेकी फी शोअबिलईमान: १९५८,अन इब्ने उमर रज़ि०
अरफ़ा के दिन रोजा रखने की फ़ज़ीलत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : “अरफ़ा के दिन का रोजा रखना एक साल अगले एक साल पिछले गुनाहों को माफ़ करा देता है।” 📕 सही इब्ने खुजैमाः३०३४
अज़ान देने की फ़ज़ीलत रसुलल्लाह (ﷺ) ने फर्माया: "जिस शख्स ने बारा साल तक अजान दी, उस के लिये जन्नत वाजिब हो गई और हर रोज अजान के बदले उसके लिये साठ नेकियाँ लिखी जाएँगी और हर तक्बीर पर तीस नेकियाँ मिलेंगी।" 📕 इब्ने माजा : ७२८
हलाल कमाई से मस्जिद बनाने की फजीलत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया: "जिस ने हलाल कमाई से अल्लाह की इबादत के लिये घर बनाया, तो अल्लाह तआला उस के लिये जन्नत में कीमती मोती और याकूत का शानदार घर बनाएगा।" 📕 मोअजमुल औसत : ५२१६, अन अबी हुरैरह (र.अ)
सुभानअल्लाह और ला इलाहा इलल्लाह की फ़ज़ीलत | तस्बीह, तहलील और तक्दिस ✦ मफ़हूम-ऐ-हदिस ✦ युसरा रजीअल्लाहु अन्हा फरमाती है के, नबी-ऐ-करीम (ﷺ) ने हम से फ़रमाया: "तुम लोग तस्बीह (सुभानअल्लाह) , तहलील (ला इलाहा इलल्लाह) और तक्दिस (सुभानल मलिकिल कुद्दुस या सुबहू कुद्दुस, रब्बना व ल मलाईकतु वा रुहु ) पढ़ते रहा करो।" और इनको उंगलियों के पोरों (Finger Tips) पर शुमार करो। इस लिए की क़यामत के दिन इस (उंगलियों) से सवाल किया जायेगा और वो बोलेगी, फिर गाफिल न हो जाना क्यूंकि इस से तुम असबाब-ऐ-रहमत भूल जाओगे।" 📕 जामिया तिरमिज़ी , 1506-हसन Subhan'Allah aur La ilaha illallah Ki Fazilat - Tasbeeh, Tahleel aur Taqdis Padhte Raha karo.
खाना खिलाने की फ़ज़ीलत खाना खिलाने की फ़ज़ीलत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया : "जिस ने किसी मोमिन को खाना खिलाया और उसको सैराब कर दीया तो अल्लाह तआला एक खास दरवाजे से उस को जन्नत में दाखिल फ़रमाएगा जिस में उस के जैसा अमल करने वाला ही दाखिल होगा।" 📕 तबरानी कबीर : १६५८९
इल्म सीखते हुए वफात पा जाने की फ़ज़ीलत रसूलल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया : "जिस को इल्म सीखते हुए मौत आजाए, वह इस हाल में अल्लाह तआला से मुलाकात करेगा के उसके और नबियों के दर्मियान सिर्फ नुबुब्बत के दर्जे का फर्क होगा।" 📕 तबरानी औसत : ११५११
इंसाफ करने की फ़ज़ीलत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : "थोड़ी देर का इन्साफ साठ साल की शब बेदारी और रोजा रखने की इबादत से बेहतर है। ऐ अबू हुरैरा (र.अ) ! किसी मामले में थोड़ी सी देर का जुल्म, अल्लाह के नजदीक साठ साल की नाफ़रमानी से जियादा सख्त और बड़ा गुनाह है।" 📕 तरघिब वा तरहीब: ३१२८
हर महीने के तीन दिन रोजे रखने की फ़ज़ीलत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "हर महीने तीन दिन के रोजे रखना उम्र भर रोजा रखने जैसा है।" 📕 नसाई : २४१०, अन अबी हुरैरह (र.अ)
मेहमान का इकराम करने की फ़ज़ीलत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "जब कभी भी कोई मुसलमान अपने मुसलमान भाई से मुलाकात के लिये जाए और मेजबान मेहमान का एजाज व इकराम करने की गर्ज से मेहमान को तकिया पेश करे तो अल्लाह तआला उस मेजबान की मग़फिरत फरमा देगा।" 📕 तबरानी सगीर :७६२
नजर लगने से हिफाजत माशा अल्लाह की फ़ज़ीलत रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : “जिस शख्स ने कोई ऐसी चीज़ देखी जो उसे पसंद आ गई, फ़िर उस ने (माशा अल्लाह ! व लाहौल वला क़ूवता इल्लाह बिल्लाही) कह लिया, तो उस की नज़र से कोई नुक्सान नहीं पहुंचेगा।” 📕 कंजुल उम्मुल : १७६६६, अनस (र.अ) तर्जुमा : जो कुछ अल्लाह चाहता है [होता है] और अल्लाह के अलावा कोई ताकत नहीं है।
जमात के लिये मस्जिद जाने की फ़ज़ीलत रसूलल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: "जो शख्स बाजमात नमाज के लिये मस्जिद में जाए तो आते जाते हर कदम पर एक गुनाह मिटता है (हर कदम पर) और उसके लिये एक नेकी लिखी जाती है।" 📕 मुस्नदे अहमद : ६५६३
इल्म की फजीलत रसूलल्लाह (ﷺ) ने फरमाया : "इल्म की फजीलत इबादत की फजीलत से बेहतर है और दीन में बेहतरीन चीज़ तक़वा व परहेजगारी है।" 📕 तबरानी औसत: ४१०७
दो आदतें: दीनी मामले में अपने से बुलन्द शख्स को देखे ... रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया : "जो शख्स दीनी मामले में अपने से बुलन्द शख्स को देख कर उस की पैरवी करे और दुनियावी मामले में अपने से कमतर को देख कर अल्लाह तआला की अता करदा फजीलत पर उस की तारीफ करे, तो अल्लाह तआला उस को (इन दो आदतों की वजह से) सब्र करने वाला और शुक्र करने वाला लिख देता हैं। और जो शख्स दीनी मामले में अपने से कमतर को देखे और दूनीयावी मामले में अपने से ऊपर वाले को देख कर अफसोस करे, तो अल्लाह तआला उसको साबिर व शाकिर नहीं लिखता।" 📕 तिर्मिज़ी : २५१२
MD. Salim Shaikh
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