सिर्फ पांच मिनिट का मदरसा क़ुरआन व सुन्नत की रौशनी में
१. इस्लामी तारीख
हारूत व मारूत
हारूत व मारूत
क़दीम ज़माने में शहरे बाबुल (Babylon) में रहने वाले यहुदियों के दर्मियान जादू बहुत ज़्यादा आम हो गया था वह लोग जादू के ज़रिये अजीब व ग़रीब कमालात दिखाते थे यहाँ तक कि बाज़ लोग जादू के ज़ोर पर नुबुव्वत का दावा करने लगते थे।
अल्लाह तआला ने बाबुल शहर में हारूत व मारूत नामी फरिश्तों को भेजा ताकि लोगों को जादू की हक़ीक़त से आगाह कर सकें। चुनाचें लोग इबरत हासिल करने के बजाए दुनिया कमाने और दुसरों को नुक़सान पहुँचाने के लिये उन से जादू सीखने आते थे हलाकि दोनों फरिश्ते जादू सिखाने से पहले यह बता देते थे के हमें तुम्हारी आज़माइश के लिये भेजा गया है।
लिहाज़ा तुम जादू के ज़रिये नाजाइज़ और हराम काम मत करो इससे तुम्हारे क़ुफ्र में मुब्तिला हो जाने का अन्देशा है लेकिन उन लोगों ने नहीं माना और उनसे जादू सीख कर कुफ्र व शिर्क में मुब्तिला हो गए और अपनी दुनिया और आख़िरत को बर्बाद कर डाला।
२. अल्लाह की कुदरत
शहद का कारखाना
अल्लाह तआला ने अपनी कुदरत से इन्सानों की खिदमत के लिए एक छोटी सी मखलूक शहद की मक्खी बनाई, जो फूलों से रस जमा कर के छत्तों में महफूज़ कर देती है।
अल्लाह तआला ने इस छोटी सी मक्खी को कैसा हुनर दे रखा है के वह अपने रहने के लिए जो छत्ता बनाती है, उस में छोटे छोटे खाने होते हैं और हर खाने में छे कोने होते हैं, जो सारे के सारे एक ही साइज़ के होते हैं और वह फलों के रस ला कर उन्हीं खानों में जमा करती है।
ज़रा गौर कीजिए के अल्लाह तआला ने हमारे लिए खालिस शहद पैदा करने के लिए कितना अच्छा इन्तेज़ाम किया है, यकीनन वह बड़ी कुदरत वाला है।
३. हुजूर (ﷺ) का मुअजिजा
अरब के रास्तों के मुतअल्लिक़ पेशीनगोई
एक मर्तबा आप (ﷺ) ने अदी बिन हातिम (र.अ) से फर्माया :
“ऐ अदी ! अगर तेरी उम्र लम्बी होगी तो तू देखेगा के ऊँट पर सवार अकेली औरत हिरा (जगह) से चलेगी, यहाँ तक के काबा का तवाफ करेगी। और अल्लाह के अलावा उस को किसी का डर न होगा, चुनान्चे हजरत अदी (र.अ) फर्माते हैं के मैंने वह जमाना अपनी आँखों से देखा, के एक औरत हिरा से अकेली ऊँट पर सवार हो कर आई और काबा का तवाफ भी किया: उस को अल्लाह के अलावा किसी का डर न था।”
४. एक फ़र्ज़ अमल के बारे में
नमाज़ छोड़ने पर वईद
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :
“नमाज का छोड़ना मुसलमान को कुफ़ व शिर्क तक पहुँचाने वाला है।” 📕 मुस्लिम: २७
“नमाज़ का छोड़ना आदमी को कुफ्र से मिला देता है।” 📕 मुस्लिम : २४६
“ईमान और कुफ्र के दरमियान फर्क करनेवाली चीज़ नमाज़ है।” 📕 इब्ने माजा : १०७८
5. एक सुन्नत अमल के बारे में
इत्र लगाना
हजरते आयशा (र.अ) से मालूम किया गया के
रसूलुल्लाह इत्र लगाया करते थे? उन्होंने फ़रमाया :
“हाँ मुश्क वगैरह की उम्दा खुशबु लगाया करते थे।”
6. एक अहेम अमल की फजीलत
अल्लाह के लिये अपने भाई की जियारत करना
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“क्या मैं तुम्हें जन्नती लोगों के बारे में खबर न करूं? सहाबा (र.अ) ने अर्ज किया: जरूर या रसूलल्लाह (ﷺ)!
आप (ﷺ) ने फर्माया: नबी जन्नती है, सिद्दीक जन्नती है और वह आदमी जन्नती है जो सिर्फ अल्लाह की रजा के लिये शहर के दूर दराज इलाके में अपने भाई की जियारत के लिये जाए।“
7. एक गुनाह के बारे में
गैरुल्लाह को माबूद बनाने का गुनाह
कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है:
“उन लोगों ने अल्लाह तआला को छोड़ कर और माबूद बना लिये हैं, इस उम्मीद पर के उन की मदद कर दी जाएगी। वह उन की कुछ मदद कर ही नहीं सकते; बल्के वह उन लोगों के हक़ में फरीके मुखालिफ बन कर हाजिर किये जाएँगे।”
8. दुनिया के बारे में
दुनिया की ज़िन्दगी खेल तमाशा है
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :
“दुनिया की ज़िन्दगी खेलकूद के सिवा कुछ भी नहीं है और आखिरत की जिन्दगी ही हकीकी जिन्दगी है, काश यह लोग इतनी सी बात समझ लेते।”
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता:
“यह दुनिया की जिंदगी तो सिर्फ़ खेल तमाशा है, अगर तुम अल्लाह पर ईमान लाओ और तक़वा इख्तियार करो तो वह तूम को तूम्हारा अज्र व सवाब अता फरमाएगा और तुम से तुम्हारा माल तलब नहीं करेगा (और) अगर वह तुम से तुम्हारा माल तलब करने लगे और आखरी हद तक तलब करता रहे तो तुम कंजूसी करने लगो और तुम्हारी नागवारी को ज़ाहिर कर दे।”
9. आख़िरत के बारे में
दोज़ख़ (जहन्नुम) की दीवार की चौड़ाई
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“दोजख की आग की कनातों को चार दीवारों ने घेर रखा है
और हर एक दीवार की चौड़ाई चालीस साल चलने के बराबर है।”
10. तिब्बे नबवी से इलाज
जोड़ों के दर्द का इलाज
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़र्माया :
“अंजीर खाओ (फिर उस की अहमियत बताते हुए इर्शाद फर्माया) अगर मैं कहता के जन्नत से कोई फल उतरा है तो यही है, क्यों कि जन्नत के फलों में गुठली नहीं है।”
(और अंजीर का यही हाल है) लिहाजा इसे खाओ, इस लिए के यह बवासिर को खत्म करता है और जोड़ो के दर्द में मुफीद है।”
11. क़ुरआन व सुन्नत की नसीहत
आखरी रात में वित्र का मौका ना मिले तो शुरू में ही पढ़ ले
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:
“जिस को यह अन्देशा हो के वह आखरी रात में नहीं उठ सकेगा तो उस को रात के शुरू ही में वित्र पढ़ लेना चाहिये और जिसको आखरी रात में उठने की पूरी उम्मीद हो तो उसे आखरी रात में वित्र पढ़ना चाहिये।”