वरम (सूजन) का इलाज हज़रत अस्मा (र.अ) के चेहरे और सर में वरम (सूजन) हो गया, तो उन्होंने हजरत आयशा (र.अ) के जरिये आप (ﷺ) को इस की खबर दी। चुनान्चे हुजूर (ﷺ) उन के यहाँ तशरीफ़ ले गए और दर्द की जगह पर कपड़े के ऊपर से हाथ रख कर तीन मर्तबा यह दुआ फ़रमाई। اللهم أذْهِبْ عَنْهَا سُولَهُ وَفَحْشَهُ بِدَعْوَةٍ بَيْكَ الطَّيِّبِ الْمُبَارَكَ الْمَكِينِ عِندَكَ ، بسم الله फिर इर्शाद फ़र्माया : यह कह लिया करो, चुनांचे उन्हों ने तीन दिन तक यही अमल किया तो उन का वरम जाता रहा। 📕 दलाइलुनबुवह लिल बैहकी: २४३०
घर से वुजू कर के मस्जिद जाने का सवाब रसूलअल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया : "जब तुम में से कोई घर से वुजू कर के मस्जिद आए, तो घर लौटने तक उसे नमाज का सवाब मिलता रहेगा।" 📕 मुस्तदरक : ७४४
हर नमाज़ के लिये वुजू करना हजरत अनस (र.अ) बयान करते हैं के, आप (ﷺ) की आदते शरीफा थी, के बा वुजू होने के बावजूद हर नमाज के लिये ताज़ा वुजू फरमाते और हम लोग कई नमाजें एक ही वुजू से पढ़ते थे। 📕 अबू दाऊद : १७१
हाथ पैर की उंगलियों का खिलाल करना हज़रत आयशा (र.अ) बयान करती हैं के रसूलुल्लाह (ﷺ) वुजू फर्माते, तो उंगलियों का खिलाल, फर्माते, एड़ियों को रगड़ते और फरमाते: "उंगलियों का खिलाल करो, अल्लाह तआला उनके दर्मियान जहन्नम की आग दाखिल न करेगा।" 📕 दारे कुतनी, हदीस : ३२६
घर वालों से नेक बरताव करना हजरत आयशा (र.अ) फर्माती हैं के - आप (ﷺ) ने ग़ज़वे के अलावा कभी भी किसी को अपने हाथ से नहीं मारा और न कभी किसी खादिम को मारा और न ही कभी किसी औरत को मारा। 📕 मुस्लिम : ६०५०
Sajde ki dua : सजदा-ए-तिलावत की दुआ Sajde ki dua : रसूलुल्लाह (ﷺ) कुआन मजीद की तिलावत करते हुए आयते सज्दा पर पहुँचते तो इस दुआ को सज्दा-ए-तिलावत में पढ़ा करते -
जख्म वगैरह का इलाज हजरत आयशा (र.अ) फ़र्माती हैं : अगर किसी को कोई ज़ख्म हो जाता या दाना निकल आता, तो । आप (ﷺ) अपनी शहादत की उंगली को (थूक के साथ) मिट्टी में रख कर यह दुआ पढ़ते: तर्जमा: अल्लाह के नाम से हमारी जमीन की मिट्टी हम में से किसी के थूक के साथ मिली हुई लगाता हूँ, (ताके) हमारे रब के हुक्म से हमारा मरीज़ अच्छा हो जाए। 📕 मुस्लिम ५७१९
बेहोशी से शिफ़ा पाना बेहोशी से शिफ़ा पाना हज़रत जाबिर (र.अ) फ़र्माते हैं के - "एक मर्तबा मैं सख्त बीमार हुआ, तो रसूलुल्लाह (ﷺ) और हजरत अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) दोनों हज़रात मेरी इयादत को तशरीफ़ लाए, यहां पहुँच कर देखा के मैं बेहोश हूँ तो आप (ﷺ) ने पानी मंगवाया और उससे वुजू किया और फिर बाकी पानी मुझपर छिड़का, जिससे मुझे इफ़ाका हुआ और मैं अच्छा हो गया।" 📕 मुस्लिम: ४१४७, जाबिर बिन अब्दुल्लाह (र.अ)
आँख की रोशनी का तेज होना हज़रत आयशा (र.अ) फर्माती हैं के आप (ﷺ) अंधेरे में इस तरह देखते थे, जिस तरह रौशनी और उजाले में देखते थे। 📕 बैहकी फी दलाइलिन्नुबुब्यह: २३२६
मय्यित का कर्ज अदा करना हजरत अली (र.अ) फ़र्माते हैं के: रसुलअल्लाह (ﷺ) ने कर्ज को वसिय्यत से पहले अदा करवाया, हालाँकि तुम लोग (कुरआन पाक में) वसिय्यत का तजकेरा कर्ज से पहले पढ़ते हो। 📕 तिर्मिज़ी : २१२२ फायदा: अगर किसी शख्स ने कर्ज लिया और उसे अदा करने से पहले इन्तेकाल कर गया, तो कफन दफन के बाद माले वरासत में से सबसे पहले कर्ज अदा करना जरूरी है, चाहे सारा माल उस की। अदायगी में खत्म हो जाए।
सजद-ए-तिलावत अदा करना हज़रत इब्ने उमर (र.अ) फ़र्माते हैं : “हुजूर (ﷺ) हमारे दर्मियान सजदे वाली सूरह की तिलावत फ़र्माते, तो सजदा करते और हम लोग भी सजदा करते, हत्ता के हम में से बाज़ आदमी को अपनी पेशानी रखने की जगह नहीं मिलती।” 📕 बुखारी: १७५, अन इब्ने उमर (र.अ) वजाहत: सजदे वाली आयत तिलावत करने के बाद, तिलावत करने वाले और सुनने वाले दोनों पर सजदा करना वाजिब है।
जोहर से पहले की चार रकात सुन्नत पढ़ना हज़रत आयशा (र.अ) बयान फरमाती है के: "रसूलुल्लाह (ﷺ) जोहर से पहले चार रकात और फ़र्ज़ से पहले की दो रकात कभी नहीं छोड़ते थे।" 📕 बुखारी : १९८२
वुजू में चमड़े के मोज़े पर मसह करना हज़रत अली (र.अ) फ़र्माते हैं : "मैं ने हुजूर (ﷺ) को मोज़े के ऊपर के हिस्से पर मसह करते देखा।" 📕 अबू दाऊद : १६२ नोट: जब किसी ने बावुजू चमड़े का मोज़ा पहेना हो, फिर वुजू टूट जाए, तो वुजू करते वक्त उन मोजों के ऊपरी हिस्से पर मसह करना जरूरी है।
कलौंजी में मौत के सिवा हर बीमारी का इलाज रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "तुम इस कलौंजी (मंगरैला) को इस्तेमाल करो, क्योंकि इस में मौत के अलावा हर बीमारी से शिफ़ा मौजूद है।" 📕 बुखारी: 5687, अन आयशा (र.अ) एक और रिवायत में आप (ﷺ) ने फ़रमाया : "बीमारियों में मौत के सिवा ऐसी कोई बीमारी नहीं, जिस के लिये कलौंजी में शिफा नहो।" 📕 मुस्लिम ५७६८
बात ठहर ठहरकर और साफ साफ़ करना हजरत आयशा (रजि०) फरमाती है के, "हुजूर (ﷺ) की बात जुदा जुदा होती थी, जो सुनता समझ लेता था।" 📕 अबू दाऊदः हदीस 4839 फायदा: जब किसी से बात करे, तो साफ़ साफ़ बात करे, ताके सुनने वाले को समझने में कोई परेशानी ना हो, यह आप (ﷺ) की सुन्नत है।
MD. Salim Shaikh
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