रसूलुल्लाह (ﷺ) कुआन मजीद की तिलावत करते हुए आयते सज्दा पर पहुँचते तो इस दुआ को सज्दा-ए-तिलावत में पढ़ा करते –
Sajde ki dua
(سجدہ وجهى على خلقه ومتى وبصره بحوله وقوته )
सजदाह वज्ही अलै ख़ल्क़िहि व मतः व बसरः बिहौलिहि व क़ूवति
तर्जमा – मेरे चेहरे ने उस जात के लिये सज्दा किया जिसने उस को पैदा किया और अपनी कुदरत व कुव्वत से उसके कान और आँख खोले।