Contents
- 1. इस्लामी तारीख
- हजरत याकूब (अ.स) पर आजमाइश
- 2. अल्लाह की कुदरत
- खारे पानी को मीठा बनाना
- 3. एक फर्ज के बारे में
- नमाज़े गुनाहों को मिटा देती हैं
- 4. एक सुन्नत के बारे में
- ज़मीन पर बैठ कर खाना
- 5. एक अहेम अमल की फजीलत
- कुरआन पढ़ना और उस पर अमल करना
- 6. एक गुनाह के बारे में
- किसी मुसलमान की ग़ीबत और बेइज्जती की सजा
- 7. दुनिया के बारे में
- दुनियादार का घर और माल
- 8. आख़िरत के बारे में
- कयामत के दिन मुदों को जिन्दा किया जाएगा
- 9. तिब्बे नबवी से इलाज
- जिस्म के दर्द का इलाज
- 10. कुरआन की नसीहत
- अल्लाह के रास्ते में खर्च किया करो
1 सफर | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा
1 Safar | Sirf Paanch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
हजरत याकूब (अ.स) पर आजमाइश
दीगर अम्बिया की तरह हज़रत याकूब (अ.स) को भी काफी मुसीबतें बरदाश्त करनी पड़ी, जान व माल और औलाद में सख्त तरीन आजमाइशों का सामना करना पड़ा, मगर हर मौके पर वह साबिर वा शाकिर ही रहे। खासतौर पर औलाद में एक लम्बे ज़माने तक इम्तेहान में मुन्तला रहे। बुढ़ापे में हजरत यूसुफ (अ.स) जैसे महबूब बेटे की जुदाई के ग़म में रोते रोते उनकी बीनाई चली गई थी, अभी यह रंज व ग़म खत्म नहीं हुआ था के उन के दूसरे बेटे बिन यामीन की जुदाई का वाकिआ पेश आ गया।
इस तरह उनकी महबूब औलाद उनसे दूर हो गई। इस के साथ ही दावत व तब्लीग में पेश आनेवाली तकालीफ और
लोगों के इस दावत को कबूल न करने का रंज व ग़म अलग था।
मगर अल्लाह तआला के यह जलीलुल कद्र नबी सारी मुसीबतों को बरदाश्त कर के सब्र व शुक्र करते थे और अल्लाह तआला की मदद के तलबगार रहते थे। अल्लाह तआला ने उनके सब्र का यह बदला अता किया के बिखरे हुए बेटों से मुलाकात करादी और तमाम औलाद को जमा कर दिया और साथ ही उन की बीनाई भी वापस कर दी।
यक़ीनन अल्लाह तआला सब्र करने वालों को ऐसे ही इनामात से नवाजता है।
तफ्सील में पढ़े: हज़रत याकूब अलैहि सलाम | कसक उल अम्बिया
2. अल्लाह की कुदरत
खारे पानी को मीठा बनाना
समुन्दर का पानी खारा होता है, उस को पीने के काबिल बनाने के लिये अल्लाह तआला की कुदरत देखिये के वह इस खारे पानी को भाप बना कर बादलों के जरिये उठाता है। फिर उस को मीठा कर के बारिश बरसा देता है। जिससे इन्सान, तमाम जानदार और खेतीबाडी सैराब हो जाती है।
इस तरह बादलों के जरिये खारेपानी को मीठा बना कर बारिश बरसाना अल्लाह की अजीम कुदरत है।
3. एक फर्ज के बारे में
नमाज़े गुनाहों को मिटा देती हैं
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने सहाबा से पूछा:
“अगर किसी के दरवाजे पर एक नहर हो और उसमें वह हर रोज़ पाँच बार गुस्ल किया करे, तो क्या उसका कुछ मैल बाकी रह सकता है? सहाबा ने अर्ज किया के कुछ भी मैल न रहेगा।”
आप (ﷺ) ने फर्माया के :
“यही हालत है पाँचों वक्त की नमाज़ों की, के अल्लाह तआला उनके सब बगुनाों को मिटा देता है।”
📕 बुखारी: ५२८, अन अबी हुरैरह (र.अ)
4. एक सुन्नत के बारे में
ज़मीन पर बैठ कर खाना
हजरत इब्ने अब्बास (र.अ) बयान करते है के:
“आप (ﷺ) जमीन पर बैठते और जमीन पर (बैठ कर) खाते थे।
5. एक अहेम अमल की फजीलत
कुरआन पढ़ना और उस पर अमल करना
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“जिसने कुरआन पढ़ा और उसके हुक्मों पर अमल किया, तो उसके माँ बाप को कयामत के दिन ऐसा ताज पहनाया जाएगा, जिस की रोशनी आफताब की रोशनी सभा ज्यादा होगी, अगर वह आफताब तुम्हारे घरों में मौजूद हो।”
6. एक गुनाह के बारे में
किसी मुसलमान की ग़ीबत और बेइज्जती की सजा
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:
“जिस ने किसी मुसलमान (की गीबत की और उस की ग़ीबत) के बदले में एक लुक्मा भी खाया, तो कयामत के दिन अल्लाह तआला उस को एक लुक्मा जहन्नम से खिलाएगा और जिस ने किसी (मुसलमान की बेइज्जती की और उस) के बदले में उस को कपड़ा पहनने को मिला, तो कयामत के दिन अल्लाह तआला उस को उसी कद्र जहन्नम से पहनाएंगा।”
📕 अबू दाऊद : ४८८१, अन मुस्तरिद (र.अ)
7. दुनिया के बारे में
दुनियादार का घर और माल
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“दुनिया उस शख्स का घर है, जिसका (आखिरत में) कोई घर नहीं हो और (दुनिया) उस शख्स का माल है जिस का आखिरत में कोई माल नहीं और दुनिया के लिये वह शख्स (माल) जमा करता है जो नासमझ है।”
📕 मुस्नदे अहमद: २३८९८, अन आयशा (र.अ)
8. आख़िरत के बारे में
कयामत के दिन मुदों को जिन्दा किया जाएगा
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“क्या इन्सान को वह वक़्त मालूम नहीं जब तमाम मुर्दों को जिन्दा कर के खड़ा किया जाएगा और उन तमाम राजों को जाहिर कर दिया जाएगा, जो उनके सीनों में (छुपे हुए) हैं?”
9. तिब्बे नबवी से इलाज
जिस्म के दर्द का इलाज
हजरत उस्मान बिन अबिल आस (र.अ) ने रसूलुल्लाह (ﷺ) की खिदमत में हाजिर हो कर अपने जिस्म के दर्द को बताया तो रसूलल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : जहां दर्द होता हो वहां हाथ रख कर तीन बार “बिस्मिल्लाह” और सात मर्तबा यह दुआ पढ़ो:
( أَعُوذُ بِاللَّهِ وَقُدْرَتِهِ مِنْ شَرِّ مَا أَجِدُ وَأُحَاذِرُ )
“A’udhu Billahi Wa Qudratihi Min Sharri Ma Ajidu Wa Uhadhiru”
तर्जमा: मैं अल्लाह और उस की कुदरत की पनाह चाहता हुँ उस तकलीफ़ से जो मुझे पहुँची है और जिस से मैं डरता हुँ। चुनान्चे उन सहाबी ने जब यह कलिमात कहे तो उन का दर्द खत्म हो गया फिर वह सहाबी अपने घर वालों और दूसरे जरुरतमंदों को हमेशा इन कलिमात की तलकीन करते रहते थे।
📕 मुस्लिम: ५७३७, अन उस्मान बिन अबिल आस (र.अ)
10. कुरआन की नसीहत
अल्लाह के रास्ते में खर्च किया करो
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है:
“तुम लोग अल्लाह के रास्ते में खर्च किया करो अपने आप को अपने हाथों से हलाकत में न डालो और खुलूस से काम किया करो, क्योंकि अल्लाह तआला! अच्छी तरह अमल करने वालों को पसन्द करता है।”