26 अप्रैल 2024
आज का सबक
1. इस्लामी तारीख
नबी (ﷺ) को शहीद करने की नाकाम साजिश
कुरैश को जब मालूम हुआ के मोहम्मद (ﷺ) भी हिजरत करने वाले हैं, तो उन को बड़ी फिक्र हुई के अगर मोहम्मद (ﷺ) भी मदीना चले गए, तो इस्लाम जड़ पकड़ जाएगा और फिर वह अपने साथियों के साथ मिल कर हम से बदला लेंगे और हमें हलाक कर देंगे। इस बिना पर उन्होंने कुसइ बिन किलाब के घर, जो दारुन नदवा के नाम से मशहूर था, साजिश के लिये जमा हुए, उस में हर कबीले के सरदार मौजूद थे।
सभी ने आपस में यह तय किया, के हर कबीले का एक एक शख्स जमा हो और सब मिल कर तलवारों से हुजूर (ﷺ) का खातमा करदें (नऊजु बिल्लाह). इस फैसले के बाद उन्होंने रात के वक़्त रसूलुल्लाह (ﷺ) के मकान को घेर लिया और इस इन्तेजार में रहे के जब मोहम्मद (ﷺ) सुबह को नमाज़ के लिये निकलेंगे, तो तलवारों से उनका खात्मा कर देंगे।
मगर अल्लाह तआला ने रसूलुल्लाह (ﷺ) को कुरैश की इस साजिश से बाखबर कर दिया, इसी लिये आप रात को अपने बिस्तर पर हजरत अली (र.अ) को लिटा कर सूर-ए-यासीन पढ़ते हुए और उन के सरों पर मिट्टी डालते हुए उन के सामने से गुजर गए और अल्लाह तआला ने उन की आँखों पर परदा डाल दिया, उन लोगों को कुछ भी खबर न हुई। सुबह को जब उन्होंने हज़रत अली (र.अ) को बाहर निकलते देखा तो बहुत शर्मिंदा हुए।
2. अल्लाह की कुदरत/मोजज़ा
फिरौन का इबरतनाक अंजाम
कुरआन के बयान के मुताबिक खुदाई का दावा करने वाले फिरऔन की नाफरमानी जब हद से बढ़ गई, तो अल्लाह तआला ने समन्दर में डुबा कर हलाक कर दिया और साथ ही यह ऐलान किया के उस की लाश को आने वाले लोगों के लिए इबरत बनाऊँगा।
चुनान्चे मुहकिकीन की राए के मुताबिक फिरऔन की लाश सन १८८१ में समन्दर से मिली, जो तकरीबन तीन हजार एक सौ सोला साल बाद समंदर से निकाली गई और इतनी लम्बी मुद्दत गुजरने के बाद भी लाश को गलने सड़ने से महफूज रखा, जो आज भी मिस्र के म्यूजियम में मौजूद है, आखिर वह कौन सी जात है? जिस ने समन्दर में भी उसकी लाश को महफूज रखा।
यकीनन अल्लाह की जात बड़ी कुदरत वाली है।
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3. एक फर्ज के बारे में
मज़दूर की मज़दूरी पसीना सुखने से पहले दिया करो
मज़दूर को पसीना सुखने से पहले मज़दूरी दो
۞ हदीस: अब्दुल्ला इब्न उमर (रजि.) से रिवायत है की,
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :
“मज़दूर को उसकी मज़दूरी उसका पसीना सुखने से पहले दे दो।”
📕सुनन इब्न माजाह, हदीस:600
मज़दूर को पूरी मजदूरी देना
۞ हदीस: रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :
“मैं क़यामत के दिन तीन लोगों का मुक़ाबिल बन कर उन से झगडूंगा, (उन तीन में से एक) वह शख्स है जिसने किसी को मज़दूरी पर रखा और उससे पूरा-पूरा काम लिया मगर उसको पूरी मज़दूरी नहीं दी।”
खुलासा: मज़दूर को मुकम्मल मज़दूरी देना वाजिब है।
4. एक सुन्नत के बारे में
बिजली कड़कने और बादल गरजने के वक़्त की दुआ
अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हुमा
जब बादल की गरज सुनते तो बातें छोड़ देते और यह दुआ पढ़ते।
(Subhanal-lathee yusabbihur-raAAdu bihamdih,
walmala-ikatu min kheefatih.)
तर्जुमा : पाक है वह ज़ात बादल की गरज जिसकी तस्बीह़ बयान करती है उसकी तारीफ के साथ और फ़रिश्ते भी उसके डर से उसकी तस्बीह़ पढ़ते हैं।
5. एक अहेम अमल की फजीलत
हर महीने के तीन दिन रोजे रखने की फ़ज़ीलत
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“हर महीने तीन दिन के रोजे रखना उम्र भर रोजा रखने जैसा है।“
6. एक गुनाह के बारे में
बगैर किसी उज्र के नमाज़ क़ज़ा करने का गुनाह
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:
“जो शख्स दो नमाज़ों को बगैर किसी उज्र के एक वक्त में पढ़े वह कबीरा गुनाहों के दरवाजों में से एक दरवाजे पर पहुँच गया।”
7. दुनिया के बारे में
नाफ़र्मानों से नेअमतें छीन ली जाती हैं
कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है :
“वह नाफरमान लोग कितने ही बाग, चश्मे, खेतियाँ और उम्दा मकानात
और आराम के सामान जिन में वह मजे किया करते थे, (सब) छोड़ गए,
हम ने इसी तरह किया और उन सब चीज़ों का वारिस एक दूसरी कौम को बना दिया।
फिर उन लोगों पर न तो आसमान रोया और न ही जमीन
और नही उन को मोहलत दी गई।”
8. आख़िरत के बारे में
जन्नतुल फिरदौस का दर्जा
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“जब तुम अल्लाह तआला से सवाल करो, तो जन्नतुल फिरदौस का सवाल किया करो, क्योंकि वह जन्नत का सबसे अफजल और बुलंद दर्जा है और उसके ऊपर रहमान का अर्श है और उसीसे जन्नत की नहरें निकलती हैं।”
9. तिब्बे नबवी से इलाज
बीमार को परहेज़ का हुक्म
एक मर्तबा उम्मे मुन्जिर (र.अ) के घर पर रसूलुल्लाह (ﷺ) के साथ साथ हजरत अली (र.अ) भी खजूर खा रहे थे, तो आप (ﷺ) ने फ़रमाया: “ऐ अली! बस करो, क्योंकि तुम अभी कमजोर हो।”
फायदाः बीमारी की वजह से चूंकि सारे ही आज़ा कमज़ोर हो जाते हैं, जिन में मेअदा भी है, इस लिए ऐसे मौके पर खाने पीने में एहतियात करना चाहिए और मेअदे में हल्की और कम ग़िज़ा पहुँचनी चाहिए ताके सही तरीके से हज़्म हो सके।
10. क़ुरआन व सुन्नत की नसीहत
नजर लगने से हिफाजत
माशा अल्लाह की फ़ज़ीलत
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“जिस शख्स ने कोई ऐसी चीज़ देखी जो उसे पसंद आ गई, फ़िर उस ने (माशा अल्लाह ! व लाहौल वला क़ूवता इल्लाह बिल्लाही) कह लिया, तो उस की नज़र से कोई नुक्सान नहीं पहुंचेगा।”
📕 कंजुल उम्मुल : १७६६६, अनस (र.अ)
तर्जुमा : जो कुछ अल्लाह चाहता है [होता है] और अल्लाह के अलावा कोई ताकत नहीं है।
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