۞ बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम ۞
अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है। सब तारीफे अल्लाह तआला के लिये हैं जो सारे जहानों का पालनहार है। हम उसी की तारीफ करते हैं और उसी से मदद और माफी चाहते हैं। अल्लाह की लातादाद सलामती, रहमतें और बरकतें नाजिल हों मुहम्मद (ﷺ) पर, आप की आल व औलाद और असहाब रजि. पर। व बअद!
आप रह. का नाम अब्दुल कादिर, कुन्नियत अबुमुहम्मद और लकब मुहययद्दीन था। वालिद का नाम मूसा और दादा का यहया था। वालिदा का नाम फातेमा था। आप 470 हिजरी में बगदाद के करीब कस्बे जीलान में पैदा हुए। आपके बचपन ही में वालिद का इन्तेकाल हो गया। 488 हिजरी में 18 साल की उम्र में इल्म हासिल करने की गरज से बगदाद आए और अपने जमाने के बड़े-बड़े उलेमा से इल्म हासिल किया। फिर यही के हो रहे । बगदाद ही में दीने इस्लाम की दावत देते रहे और तब्लीग करते रहे । रबीउस्सानी 561 हिजरी में 91 साल की उम्र में आप फौत हुए। अल्लाह तआला शैख रह की कब्र को नूर से रोशन करे और उन्हें जन्नतुल फिरदौस में जगह अता फरमाए।
आमीन! आपने कई किताबें लिखीं। उनमें गुन्यातत्तालिबीन उर्फ गुन्या और फतह अल गैब ज्यादा मशहूर हुई। इस पर्चे का ज्यादातर हिस्सा आपकी मशहूर तस्नीफ “गुन्या’ ही से माखूज है। आपकी वफात के बाद आपके अकीदतमंद आपको मुख्तलिफ अल्काबात जैसे मेहबूबे सुब्हानी, गौसे आजम, कुतुबे रब्बानी, पीराने पीर व दस्तगीर वगैरह से पुकारने लगे जबकि आपकी मजलिस में सुन्नते रसूल (ﷺ) की सख्ती से पाबन्दी की जाती थी। सिर्फ अल्लाह और उसके रसूल सल्ल, की इताअत का दर्स दिया जाता था । खानकाही अन्दाज के रसूम और बिदआत के लिए वहां कोई जगह न थी।
शैख रह. अक्सर फरमाते “सुन्नते रसूल (ﷺ), की पैरवी करो, बिदअत से बचकर रहो। अल्लाह की और उसके रसूल की इताअत करो। अल्लाह को एक जानों और किसी को उसका शरीक न ठहराओ । आपस में बिरादराना मुहब्बत रखो और दुश्मनी पैदा न होने दो। अपनी जिन्दगी को गुनाहों से आलूदा न करो। अपने रब की बन्दगी करो। तौबा करने में देर मत करो। अगर तुम अल्लाह के अलावा किसी और से कुछ मांगते हो या उससे जरा भी डरते हो तो यह समझ लो कि तुम्हारा ईमान कमजोर और दीन अधूरा है।” (फतह अल गैब)
शैख जीलानी रह. ने जो तबलीग लोगो में की। जो अकाइद शागिर्दो को तालीम फरमाये। बाद के कम इल्म और सादा दिल मुसलमान उन बातों से ला इल्म रहे और आपकी अमली जिन्दगी से कुछ सबक नहीं लिया। अगर किया तो यह कि आपके नाम की नजरें-नियाजें देना शुरु कर दीं। उनकी ग्यारहवीं करने को फायेदा हासिल करने और नुक्सान से बचने का जरिया बना लिया। मुश्किलात और परेशानी में अल्लाह को छोड़कर उन्हें पुकारने लगे। उन्हीं को हाजात पूरा करने वाला और मुसीबतों को टालने वाला मान लिया । हत्ता कि उनके नाम कि नमाज़ “नमाजे गौसिया” और उनके नाम का वजीफा “या शैख अब्दुल कादिर जीलानी शैअन लिल्लाह’ पढ़ने लगे। जबकि “मदारिज अल सालिकीन” में सलाते गौसिया के पढ़ने को कुफ्र कहा गया है। इसके अलावा उनके नाम से फरजी करामात गढ़ कर लोगों को सुनाने व बताने लगे।
गरज यह कि वो सारे काम जो इबादते इलाही के लिये खास हैं, वो आप रह. के लिए किये जाने लगे। जिन कामों को शैख रह. ने किया या करने की तालीम दी। उनके करीब न गए और जिन कामों और बातों से आपने मना किया, उन्हें करने लगे। शैख रह. के मलफूजात व इर्शादात नकल करने की वजह किसी की दिल आजारी नहीं बल्कि यह बताना है कि आप रह.का पैगाम व तालीमात क्या थे? और उनके नाम लेवा हजरात आज कर क्या कर रहे –