दादा अब्दुल मुत्तलिब के इन्तेकाल के बाद हुज़ूर (ﷺ) अपने चचा अबू तालिब के साथ रहने लगे। वह अपनी औलाद से ज़्यादा आपसे मुहब्बत करते थे, जब वह तिजारत की गर्ज से शाम जाने लगे तो आप अपने चचा से लिपट गए। अबू तालिब पर इस का बड़ा असर पड़ा और आप को सफर में साथ ले लिया।
इस क़ाफले ने शाम पहुँच कर मकामे बसरा में क़याम किया। यहाँ बुहैरा नामी राहिब रहता था। जो ईसाइयत का बड़ा आलिम था। उसने देखा के बादल आप (ﷺ) पर साया किये हुये हैं और दरख्त की टहनियाँ आप पर झुकी हुई है। फिर उसने अपनी आदत के बर खिलाफ इस काफले की दावत की।
जब लोग दावत में गए, तो आप (ﷺ) को कम उम्र होने की वजह से एक दरख्त के पास बैठा दिया। मगर बुहैरा ने आप (ﷺ) को भी बुलवाया और अपनी गोद में बिठा कर मुहरे नुबुव्वत देखने लगा उन्होंने तौरात व इन्जील में आखरी नबी से मतअल्लिक सारी निशानियों को आपके अन्दर मौजूद पाया।
फिर अबू तालिब से कहा के तुम्हारा भतीजा आखरी नबी बनने वाला है। इन को मुल्के शाम न ले जाना, वरना यहूदी कत्ल की कोशिश करेंगे। इन्हें वापस ले जाओ और यहूद से इन की हिफाज़त करो, चुनान्चे अबू तालिब इस मुख्तसर सी गुफतगू के बाद आप (ﷺ) को ले कर बहिफाजत मक्का मुकर्रमा वापस आ गए।
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