इस्लाम में पहला हज

हज इस्लाम के पांच अरकान में से एक रुक्न है जो सन ९ हिजरी में फर्ज किया गया। लिहाजा इस फरीजे की अदायगी के लिए इसी साल रसूलुल्लाह (ﷺ) ने हज़रत अबू बक्र सिद्दिक (र.अ) को अमीरे हज बनाया और मुसलमानों को हज कराने की जिम्मेदारी सुपुर्द की।

हज़रत अबू बक्र सिद्दिक (र.अ) के साथ मदीना से तीन सौ आदमियों का काफिला हज के लिए रवाना हुआ। इसके बाद रसूलुल्लाह (ﷺ) के हुक्म से हज़रत अली (र.अ) भी रवाना हुए और कुर्बानी के रोज जब सब लोग मिना में जमा थे, ऐलान फरमाया : “जन्नत में कोई काफिर दाखिल नहीं होगा और इस साल के बाद कोई मुशरिक हज नही कर सकता और कोई शख्स (जाहिली रस्म के मुताबिक) नंगा हो कर तवाफ नहीं कर सकता।”

इस्लाम में यह पहला फर्ज हज था जिसके अमीर हज़रत अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) और खतीब हज़रत अली (र.अ) थे।




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