सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 25

Seerat un Nabi part 25

Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 25

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नबी (ﷺ) का पीछा

अरब जल्द-जल्द चल कर मक्का में दाखिल हआ।

रात ज्यादा हो गयी थी, इसलिए मक्के की गलियां सून-सान थी, सारे रास्ते वीरान पड़े थे। एक आदमी भी आता-जाता न दिखायी पड़ रहा था, तमाम शहर में खामोशी छायी हुई थी। 

अरब चल कर एक मकान में घुसा। वहां भी सब सो रहे थे। वह भी सो गया सूरज निकलने पर वह उठा, जरूरत से फ़ारिग हो कर हरम शरीफ़ पहुंचा। वहां सैकड़ों बुत परस्त बुतों के सामने झुके हुए थे, उन की पूजा कर रहे थे। एक ओर कुछ आदमी बैठे बातें कर रहे थे। उन में सुराका बिन मालिक भी था। 

सुराका बहुत बहादुर और फिर कुरैशी सरदार था। अरब उस के पास जा कर बैठ गया। 

जब वे बातें कर चुके, तो अरब ने कहा, सुराका ! मैं रात अक्लान की तरफ़ से आ रहा था। मैंने तीन ऊंट सवार जाते देखे, अगरचे अंधेरा था, मगर जब मैंने ध्यान से देखा, तो उन्हें पहचान लिया। वह मुहम्मद और उन के साथी थे। 

सुराका बड़ी तवज्जोह से उन की बातें सुन रहा था। उसे सौ ऊंट का इनाम याद आया। उस ने सोचा कि वही क्यों न इस इनाम को हासिल करे ? फिर लोगों को मुगालता में डालने के लिए उस ने कहा, नहीं! मुहम्मद न थे, वह तो परसों यसरब चले गये। वह कोई और होंगे? 

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अरब ने कहा, शायद मुझे ही घोखा हुआ हो। 

हां, तुम ने धोखा खाया है, सुराका ने कहा, मुझे भरोसे के लोगों ने बताया है कि मुहम्मद यसरब चले गये हैं।

लोगों ने सुराका की बात पर यकीन कर के अरब को झुठला दिया।

थोड़ी देर में सब लोग उठ गये। सुराका सीधा घर पहुंचा। घर पहुंचते ही उस ने हथियार और घोड़ा अपने गृलाम के हाथ शहर से बाहर भेज दिया और खुद सब की नजरों से बचता हुआ मक्के से बाहर आया। 

बाहर आते ही वह हथियार से सज-धज कर घोड़े पर सवार हुआ और गुलाम को हिदायत की कि किसी को न बताना कि मैं कहां जा रहा हूं। मुझे मालूम हुआ है कि मुहम्मद (ﷺ) उस तरफ़ गये हैं और मैं उन का पीछा करने जा रहा हूँ। अगर मैं ने उन को गिरफ्तार कर लिया तो आज सौ ऊंट का इनाम हासिल करूंगा।

गुलाम ने सर झुका कर इताअत की हामी भर ली। सुराका रवाना हुआ।


पीछा करते हुए घोड़े का जमींन में धस जाना

अभी वह कुछ कदम ही चला था कि एक गिद्ध घोड़े के करीब से गुजरा। घोड़ा बिदका, सुराका होशियारी से न बैठा था, धड़ाम से नीचे आ गिरा।

उसे गिद्ध पर बड़ा गुस्सा आया।

वह उठा, कपड़े झटकने लगा और गिद्ध को गालियां देने लगा। कपड़े झटक कर घोड़े पर सवार हुआ और कदम-कदम चला। कोहे सौर पर पहुंच कर उस ने ऊंटों के पैरों के निशान देखे। वह खुश होकर इन निशानों पर तेजी से रवाना हुआ। पूरे तीन घंटे तक तेजी से चलता रहा। जब सूरज सर पर आ गया तो उस ने तीन ऊंट दूरी पर जाते हुए देखे। 

उस ने समझ लिया कि जिन की खोज में वह घर से निकला है, सामने वही जा रहे हैं। उस ने एड लगा कर घोड़े को और तेजी से दौड़ाया।

घोड़ा निहायत फर्राटे भरता हुआ तेजी से जा रहा था, लेकिन अभी एक मील भी फर्राटा न भर पाया था कि उस ने ठोकर खायी और अगले पांव जमीन में धंस गये। अगरचे सुराका निहायत होशियारी से बैठा था, पर इस बार भी संभल न सका, लुढकनी खा कर घोड़े के आगे गिरा। 

उसे फिर गुस्सा आया। वह समझा, शायद फिर किसी गिद्ध ने गुस्ताखी की। उस ने चारों तरफ़ देखा, मगर गिद्ध वहां न था। 

इस बार उसे घोड़े पर गुस्सा आया, पर जब उस ने घोड़े के पांव की 

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तरफ़ देखा, तो उस के पांव घुटने तक जमीन में फंसे हुए थे। उसे बड़ा ताज्जुब हुआ, उसे डर भी हुआ कि माजरा क्या है? 

उस ने जल्द ही अपने आप पर काबू पा लिया। उस ने घोड़े को निकाला और फिर उस पर सवार हो कर तेजी से रवाना हुआ। उस ने देखा कि हुजूर (ﷺ) अपने साथी मुसाफ़िरों के साथ बड़े इत्मीनान से बातें करते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे हैं। उस ने घोड़े की रफ्तार तेज कर दी। 

जब घोड़ा बहुत करीब हो गया, तो अचानक वह पेट तक जमीन में घंस गया। सुराका फिर घोड़े से नीचे आ पड़ा। उस पर हैबत छा गयी।

उस ने समझ लिया कि जिन का पीछा करने आया है, उन तक पहुंच मुम्मकिन नहीं है। उन का खुदा उन की हिफाजत कर रहा है।

उसे इस बात पर अफ़सोस हुआ कि वह इनाम हासिल करने में नाकाम रहेगा, बहरहाल उसने अक्ल से काम लिया, उसने हुजूर (ﷺ) को आवाज दे कर कहा, ऐ मुसलमानों के रहनुमा ! जरा ठहर कर मेरी बातें सुन लीजिए।

आप (ﷺ) ने उस की आवाज सुन कर सवारी रोक दी, तीनों ऊंट रोक दिये गये।

हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, सुराका! जल्द आ कर कहो, क्या कहना है ?

सुराका दौड़ कर आप (ﷺ) के पास पहुंचा।

उस ने कहा, ऐ मुसलमानों के रहनुमा ! मैं आप को और आप के साथियों को गिरफ्तार करने के इरादे से आया था। जब से मैंने आप का पीछा करने के लिए घोड़ा रवाना किया है, उस वक्त से अब तक तीन बार घोड़े से गिर चुका हूँ। 

पहली दो बार मैं ने इत्तिफ़ाक़ समझा, पर अब जब तीसरी बार मेरा घोड़ा पेट तक धंस गया, तो मैं ने समझा कि आप का खुदा आप की हिफ़ासत कर रहा है, आप को कोई गिरफ्तार नहीं कर सकता। मेरे हुजूर! मुझे यकीन आ गया कि एक न एक दिन आप मक्का के हुक्मरां होंगे, न सिर्फ मक्का के, बल्कि पूरा अरब आप के कब्जे में होगा। 

इस लिए मैं चाहता हूं कि आप मेरे घर वालों के लिए अमाननामा लिख दें, ताकि उस मौके पर हम लोग सुकून से रह सकें।

हुजूर (ﷺ) ने हजरत अबू बक्र (र.अ) से मुखातब हो कर कहा, इसे अमाननामा लिख दो।

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हजरत अबू बक्र (र.अ) ने ऊंट पर बैठे-बैठे ही अमाननामा लिख कर सुराका की तरफ फेंक दिया।

सुराका ने उसे एहतियात से अमामा में बांध लिया। यह पहला अमाननामा लिखा गया था। सुराका ने कहा, अब हुजूर (ﷺ) आप इत्मीनान से तशरीफ़ ले जाएं, में वापस जा रहा हूँ।

जो लोग इस तरफ़ से आप का पीछा करते हए आ रहे होंगे, मैं उन को वापस कर दूंगा।  

हुजूर (ﷺ) ने सुराका के इन लफ्ज़ो का जवाब न दिया और रवाना हो गये।

सुराका भी अपने घोड़े के पास आया, सवार हुआ और वापस मक्का की ओर लौट गया।

To be continued …

इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा ….
आप हज़रात से इल्तेजा है इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे और अपनी राय भी दे … 


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