सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 46

Seerat un Nabi part 46

Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 46
banu qurayza in hindi

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किये को भुगतना पड़ा

बनी कुरेजा की लड़ाई

जब तमाम मदीना वालों ने मुसलमानों से अहृद किया था, तो उसमें यहू-दियों के तीन बड़े क़बीले बनी क्रेनुकाअ, बनी नजीर और बनी कुरेजा भी शामिल थे। उन में से पहले दो यानी बनी कैनुकाअ और बनी नजीर बद-अहदी करने की सजा में देश से निकाल दिये गये थे, सिर्फ़ बनी कुरैजा रह गये थे, इस बार उन्हों ने बद-अहदी की।

वे जानते थे और खूब जानते थे कि मुसलमान बद-अहदी पर सजा ज़रूर देंगे, इसलिए उन्हों ने क़िले की दुरुस्ती और मरम्मत शुरू करा दी थी।

सच तो यह है कि इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ़ सब से ज्यादा पेश-पेश यही थे।

जिस वक्त मुसलमान खंदक की लड़ाई से वापस लौट कर मदीना मुनव्वरा में दाखिल हुए तो उस वक्त जुहर का वक्त था। तमाम मुसलमानों ने जुहर की नमाज पढ़ी। नमाज से छूटते ही सरकारे मदीना (ﷺ) ने ऐलान कर दिया कि हर मुसलमान जो खंदक़ की लड़ाई में शरीक था, अस्र की नमाज मदीने में पढ़े, बल्कि बनी कुरेजा के क़िले के सामने पढ़े। इस एलान ने तमाम मुसलमानों को कमर कसे रहने पर मजबूर कर दिया।

इसमें शक नहीं कि मुसलमान एक महीने के घेराव में हर वक़्त चौकसी अपनाने की वजह से थके हुए थे, उन्हें आराम करने और ताजा दम होने की जरूरत थी लेकिन दरबारे रिसालत से कूच करने का हुक्म हुआ था, इसलिए इस हुक्म की तामील भी ज़रूरी थी। 

तमाम मुसलमान जिस तरह और जिन हालात में लड़ाई के मैदान से वापस आये थे, उसी तरह और उन्हीं हालात में बनी कुरैजा के मुक़ाबले में जाने के लिए तैयार हो गये।

इस बार झंडा हजरत अली रजि० के सुपुर्द किया गया। वह दो सौ मुजाहिदों का दस्ता ले कर रवाना हुए।

तमाम मदीना में इस फ़ौज के कूच करने की शोहरत फैल गयी।

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मुशरिकों और मुनाफिकों ने हैरत से मुसलमानो को कूच करते हुए देखा।

बनी कुरैजा को भी इस कूच की खबर हो गई। 

उन्हों ने क़िले का दरवाजा बन्द कर के फ़सील पर सिपाहियों को चढ़ा दिया था और तीरों के गट्ठे और पत्थरों के टुकड़े फ़सील की छतों पर पहुंचा दिये थे।

शाम के वक्त सब से पहले हज़र अली रजि० अपनी टुकड़ी के साथ क़िले के सामने जाहिर हुए।

बनी कुरैजा ने उन्हें देखा। उन में से बहुतों ने मुसलमानों और हुजूर सल्ल० को गालियां देना शुरू कीं। इस से वे जले दिल के फफोले फोड़ रहे थे।

मुसलमानों ने यहूदियों की गालियां सुनीं। उन्हें बड़ा जोश आया, चाहा कि फ़ौरन हमला कर दिया जाए, ताकि इन यहू-दियों को सजा दी जा सके, पर उन्हें उन के हादी ने हमला करने का हुक्म न दिया था, इस लिए वे जब्त कर गये।

थोड़ी देर बाद हुजूर सल्ल० अपनी पूरी फ़ौज के साथ तशरीफ़ ले आये। मुसलमानों के आने का सिलसिला इशा तक चलता रहा।

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क़िले को घेर लेने का हुक्म

इशा की नमाज पढ़ कर हुजूर सल्ल० ने क़िले को घेर लेने का हुक्म दिया।

मुजाहिद क़िले के चारों तरफ़ फैल गये और रात ही को उन्हों ने मोर्चे क़ायम कर के सुबह बहुत सवेरे, नमाज वगैरह से फ़ारिग हो कर मोर्चे संभाल लिए।

यहू-दियों ने संगबारी शुरू कर दी।

मुसलमानों ने ढालें सामने कर दीं और क़िले की तरफ़ पेशकदमी करने लगे।

चूंकि यहूदी तेजी से पत्थर फेंक रहे थे, इसलिए ज्यादा तायदाद पत्थरों की ढालों से बच कर मुसलमानों के पैरों और टखनों में लग रही थी। पत्थर नोकदार थे, इसलिए घायल कर रहे थे।

बहुत से मुसलमान घायल हो चुके थे, फिर भी क़िले की तरफ़ पेश-क़दमी जारी रही।

जब यहू-दियों ने देखा कि मुसलमान तीरों के निशाने पर आ गये हैं, तो उन्हों ने तीरों की बारिश शुरू कर दी और इतने ज्यादा तीर बरसाये कि मुसलमानों की पेशकदमी रुक गयी।

मुसलमान तीरों का जवाब भी दे रहे थे। वो भी फ़सील पर तीर फेंकने लगे।

शाम तक इसी तरह लड़ाई का सिलसिला चलता रहा।

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अगरचे मुसलमानों ने हर चंद किले तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन तीरों की ज्यादती से फ़सील के नीचे न पहुंचने दिया।

किले के चारों तरफ़ इसी तरह लड़ाई छिड़ी हुई थी।

हज़रत अली रजि० उत्तर की तरफ़ इसी तरह लड़ाई की घात में लगे हुए थे। आप इस हद तक जोश में भरे हुए थे कि न आप ने तीरंदाजी का ख्याल किया और न संगवारी का।

आप (ﷺ) और आप के साथी नोकदार पत्थरों और परदार तीरों को ढालों पर रोकते हुए क़दम क़दम बढ़ते रहे।

आप (ﷺ) ने पक्का इरादा कर लिया था कि किले के नीचे पहुंच कर ही दम लेंगे।

यहूदी आप के इरादे को भांप चुके थे।

उन्हों ने इस तरफ़ सिपाहियों की तायदाद बढ़ा दी थी और सिपाहियों इस तेजी से तीरंदाजी शुरू कर दी थी कि मुसलमानों की सफ़ों में बिखराव पैदा हो गया था।

आगे बढ़ना न सिर्फ़ मुश्किल था, बल्कि नामुम्किन हो गया था पर हजरत अली रजि० का क़दम न रुका। शेरे खुदा तीरों को ढाल पर रोकते हुए और एक हाथ में झंडा उठाये हुए बराबर बढ़ रहे थे।

अपने सरदार को बढ़ते हुए देख कर यह कैसे मुम्किन था कि दूसरे मुसलमान पीछे रह जाते। वे भी तीरों को रोकते हुए, घायल होते क़दम-ब-क़दम बढ़े चले आ रहे थे।

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लड़ाई सुबह में पूरे जोश से शुरू हुई थी और सारे दिन उसी जोश और शान से होती रही ।

हजरत अली रजि० चाहते थे कि किसी तरह किले के क़रीब पहुंच जाएं और यहूदी यह ते कर चुके थे कि किसी मुसलमान को भी क़िले की फ़सील तक आने न देंगे।

सूरज डूबने के क़रीब था, इसलिए हजरत अली रजि० ने अल्लाहु अक्बर का नारा लगा कर बड़ी तेजी से बढ़ना शुरू किया।

नारे तकबीर को इस आवाज़ ने मुजाहिदों में जैसे जान डाल दी। और अल्लाहु अक्बर का हैबतदार नारा लगा कर तेजी से आगे बढे।

यहू-दियों ने भी मुसलमानों की इस बढ़त का जवाब हिम्मत से दिया और उन की तीरंदाजी में भी जान आ गयी।

मगर हजरत अली रजि० ने जो क़दम बढ़ाया था, उसे पीछे न हटाया, बल्कि उसे आगे ही बढ़ाते चले गये, यहां तक कि वे फ़सील के क़रीब पहुंच गये।

सूरज डूब चुका था, इसलिए लड़ाई बन्द करने का एलान कर दिया गया और यह भी कह दिया गया कि मुसलमान वहीं वापस पहुंच जाएं जहां पिछली रात गुजारी थी।

हुजूर सल्ल० का यह पैगाम हजरत अली रजि० तक भी पहुंचा।

अगरचे के आप चाहते थे कि रात ही फ़सील तोड़ कर क़िले के अन्दर पहुंच जाएं, साथ ही यहूदियों को भी अंदेशा था कि मुसलमान दीवार तोड़ कर अन्दर घुस आएंगे।

वे बड़े खौफ़ व हरास के साथ मुसलमानों का बढ़ता देख रहे थे, पर जब हुजूर सल्ल० का फ़रमान वापसी के बारे में हजरत अली तक पहुंचा, तो वह नफ़रमानी के खौफ़ से फ़सील के नीचे खड़े रहे और उसे तोड़ कर किले के अन्दर दाखिल होने की जुर्रत न कर सके और फ़ौरन वापस लोट पड़े।

यहूदियों ने उन की वापसी को अपनी खुशकिस्मती समझी।

वे उन को वापस जाते देख कर निहायत खुश हुए।

इस्लामी फ़ौज लड़ाई के मोर्चे से हट कर अपनी-अपनी कियामगाहों पर पहुंच गयी।

मुजाहिदों ने कमरें खोलीं, नमाज पढ़ी, खाना पकाया और खा कर आराम में लग गये।

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सुबह फिर पिछले दिन की तरह लड़ाई के मैदान में निकले।

सारे दिन लड़ाई होती रही।

इसी तरह लड़ते-लड़ते पन्द्रह दिन बीत गये।

इस पन्द्रह दिन की मुद्दत में न कोई क़िले के अन्दर जा सका और न कोई किले के अन्दर से बाहर आ सका।

अगरचे यहू-दियों के पास रसद का सामान काफ़ी था, लेकिन तीरों और पत्थरों की कमी होने लगी थी।

लड़ाई के इस सामान की कमी ने उन के हौसले पस्त करना शुरू कर दिये थे।

उन्होंने कई कारखाने तीरों के तैयार करने के लिए क़ायम कर लिये थे, जो दिन व रात तीर बनाने में लगे रहते, लेकिन लकड़ी की कमी से तीरों के बनने में भी कमी हो गयी थी।

यह कैफ़ियत देख कर काब बिन असद ने जो यहूदियों का सब से बड़ा सरदार था, एक मज्लिसे शूरा बुलायी। तमाम यहूदी सरदारों को बुलाया गया।

हुय्य बिन अख्तब भी किले के अन्दर मौजुद था, वह भी तलब किया गया। 

जब सब लोग आ गये तब काब ने कहा –

ऐ बनी इस्राईल के ग़ैरतमंद फ़रजंदो ! जिस बात का डर था, वही सामने आया। हम ने ग़लती की थी कि इस अहदनामा को जो मुसलमानों से किया गया था, तोड़ डाला। असल में हम धोखा खा गये। कुरैशे मक्का की फ़ौज की भारी तायदाद देख कर हम ने समझ लिया था कि वे जरूर जंग जीत जाएंगे और मुसलमान फ़ना हो जाएंगे, लेकिन कुरैश की बुज-दिली ने लड़ाई का पांसा ही बदल दिया।

उस ने आगे कहा, जिस जोश और जिस जुर्रत से मुसलमान लड़ रहे हैं, इस से जाहिर होता है कि हम उन का ज्यादा देर तक मुक़ाबला नहीं कर सकते और वे किसी न किसी दिन क़िले पर अचानक क़ाबिज हो जाएंगे। ऐसी शक्ल में क़ौम की फ़लाह के लिए कोई मुनासिब तज्वीज की जाए।

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हम ने खुद ही अपने पांवों पर कुल्हाडी मारी है, सलबा बिन सईद ने जो यहूदी शरीफ़ों में से एक था, कहा, खुद मुसीबत मोल ली है और खुद मुसलमानों को लड़ाई की चुनौती दी है। मैं ने पहले भी कहा था कि अहद-नामा की खिलाफ़वर्जी कर के मुसलमानों की मुखालफत करना किसी तरह भी मुनासिब नहीं है, लेकिन किसी ने मेरी बात को नहीं माना और नतीजा सामने है। अब भी यही कहता हूं कि खूब अच्छी तरह से सोच-समझ कर कोई ऐसी बात निकालिए, जिस से क़ौम की फ़लाह हो।

हर क़ौम और हर आदमी अपनी भलाई चाहता है, हुय्य बिन अस्तब ने कहा, हम ने अहदनामा तोड़ने में अपना फ़ायदा समझा था, लेकिन कुरैश की बुजदिली ने उम्मीद के खिलाफ़ कर दिया। आप अच्छी तरह जानते हैं कि मुसलमानों ने बनी केनुकाअ और बनू नजीर के क़बीलों को देश निकाला दिया है और उन के क़िलों पर क़ब्ज़ा कर लिया है। हम से गलती हुई कि हम ने उस वक्त अपने भाइयों की मदद न की और खामोश बैठे उनको देश निकाला मिलते देखते रहे। अगर हम उनका साथ देते और तीनों क़बीले एक हो कर मुसलमानों का मुक़ाबला करते तो यक़ीनन देश निकाला की तकलीफ़ से बच जाते।

उस ने आगे कहा, चूंकि हम मुसलमानों की आंखों में कांटा बन कर खटक रहे हैं, इसलिए वे हम को भी देश निकाला देना चाहते हैं, लेकिन अगर हम हिम्मत से काम लेते रहें, और सुलह की तरफ़ न झुकें, तो मुसलमान घेराव से तंग आ कर खुद ही भाग जाएंगे, इसलिए मेरे ख्याल में हमें न मदद लेनी चाहिए और न सुलह की तरफ़ झुकना चाहिए।

हुय्य ! असद बिन उबैद ने कहा, तुमने अहद तोड़ने पर उभारा, तुमने हम को मजबूर किया कि हम मुसलमानों के उस वफद को जो हमें समझाने आया था, कोरा और सख्त जवाब दें, हम तुम्हारे कहने में आ गये, मुसलमानों से बिगाड़ कर बैठे, तुम समझते हो कि इस्लामी मुजाहिद घेराव से तंग आ कर चले जाएंगे, लेकिन मुसलमानों की पिछली जिंदगी भी तुम्हारे इस ख्याल को रद्द करती है। वे बगैर क़िला फ़तह किये हरगिज न जाएंगे।

असद ने कहा-

अगर हम जिद पर अड़े रहे और सुलह की तरफ़ न झुके, तो निहायत जबरदस्त नुक्सान उठाएंगे, इस लिए मेरे नजदीक तो सुलह करना बेहतर है।

असद ! हुय्य ने कहा, तुम्हारा ख्याल ग़लत है, मुसलमान महीने दो महीने घेराव किये पड़े रह सकते हैं, ज्यादा दिनों तक नहीं।

यह तुम्हारा ख्याल गलत है, उसद बिन सईद ने कहा, मुसलमान जिस बात का इरादा कर लेते हैं, उसे पूरा किये बिना नहीं मानते। वे या तो किला जीतेंगे या तमाम उम्र घेरा डाले पड़े रहेंगे। बेहतर यही है कि 

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अपने-अपने क़सूर की माफ़ी मांग लो और जिस तरह भी हो, समझौता कर लिया जाए।

मगर मुसलमान सुलह ही क्यों करेंगे ? हुय्य ने कहा।

मुसलमानों की यह खूबी बड़ी जबरदस्त है, सालबा ने कहा, कि जब उनसे रहम की दरख्वास्त की जाए तो वे फ़ौरन क़ुबूल करते हैं। 

उस ने आगे कहा –

मैं इस बात का जिम्मा लेता हूं कि मुसलमानों से अच्छी शर्तों पर सुलह करा दूंगा।

लेकिन हम को हरगिज़ सुलह न करनी चाहिए, एक और यहूदी ने कहा !

क्या आप अब चाहते हैं कि मुसलमानों से सुलह कर ली जाए ? बिन अस्तब ने लोगों से पूछा।

हर तरफ़ से आवाजें आयीं, हर गिज नहीं, हम बिल्कुल सुलह करना नहीं चाहते।

अगर तुम सुलह करना नहीं चाहते, काब ने कहा, तो अपनी औरतों और बच्चों को क़त्ल कर दो और क़िले से बाहर निकल कर लड़ो। अगर जीत गये तो औरतें और बच्चे और मिल जाएंगे और अगर मर गए या हार गए तो कम से कम इज्जत व आबरू की तरफ़ से बेफ़िक्र रहेंगे।

यह तो बड़ी बेवक़ूफ़ी की बात होगी, कुछ लोगों ने कहा, इस में कौन ऐसा संगदिल है जो अपनी औलाद और अपने क़बीले को क़त्ल कर डाले।

अगर यह मंजूर नहीं, काब ने कहा, तो सनीचर को रात को मुसलमानों पर शवंखु मारो, वे इस ख्याल से कि सनीचर का दिन हमारी कौम में खास एहतराम का दिन है, उस दिन लड़ना, शिकार खेलना या कोई दुनिया का काम करना हमारे नजदीक नाजायज है, वे बेफिक्र और गाफ़िल होंगे, हम उन की इस ग़फ़लत का फ़ायदा उठा कर उन की पूरी तरह जड़ काट देंगे।

हम सनीचर के दिन बे-हुरमती भी नहीं कर सकते, कुछ लोगों ने कहा, यह बात तमाम बातों से खराब और तक्लीफ़देह होगी।

मेरे ख्याल में हमें पस्त हिम्मत नहीं होना चाहिए, हुय्य बिन अख्तब ने कहा, हिम्मत से मुकाबला करना चाहिए।

इस राय पर सब का इतिफ़ाक़ हो गया और यह तै पा गया कि लड़ाई का जारी रखना ही मुनासिब और बेहतर है।

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लेकिन यह मश्विरा सालबा, असद और उसैद को नागवार गुजरा। वे उसी वक्त उठे और क़िले से बाहर आ कर हुजूर सल्ल० की खिदमत में पहुंचे और मुसलमान हो गये।

इस के बाद बराबर घेराव कायम रहा और हर दिन लड़ाई होती रही।

जब दस दिन हो गये और तीरों और संगरेजों की इतनी कमी हो गई कि लड़ाई को दो-चार दिन तक जारी रखना मुश्किल हो गया, तो तमाम यहूदी घबरा गये और उन्हों ने काब पर सुलह करने के लिए जोर डाला।

चुनांचे काब ने हुजूर सल्ल० की खिदमत में पैगाम भेजा कि हम किले को और क़ौम को इस शर्त पर आप के हवाले करते हैं कि साद बिन मुआज जो सजा हमारे लिए तज्वीज फ़रमा दें, वही सजा हमें दीजिए।

हुजूर सल्ल० ने इस शर्त को क़ुबूल कर लिया।

बनी कुरेजा ने फ़ौरन क़िले का दरवाजा खोल दिया और उन में का हर आदमी अपने बाल-बच्चों के साथ बाहर निकला चला आया।

हर आदमी जानता था कि मुसलमान सच बोलते हैं, वायदे पूरे करते हैं, बद-अहदी और ग़द्दारी कभी नहीं करते।

हुजूर सल्ल० ने उन्हें हिरासत में लिये जाने का हुक्म दे दिया। फिर कुछ मुसलमान किले के अन्दर दाखिल हो कर किले पर काबिज हो गये ।

चूंकि लड़ाई बन्द कर दी गयी इस लिए मुजाहिद क़िले के चारों तरफ़ से सिमट – सिमट कर हुजूर सल्ल० के पास आ गये थे।

जब यहां आ कर मालूम हुआ कि यहू-दियों ने अपने आप को मुसलमानों के सुपुर्द कर दिया है, तो क़बीला औस के कुछ अंसार हुजूर सल्ल० की खिदमत में पहुंचे और उनके एक आदमी ने सरवरे कायनात से कहा –

“ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल ! जब हमारे क़बीला औस और हमारे दुश्मन के क़बीले खजरज में लड़ाई होती थी, तो बनू कुरैजा हमारे तरफ़-दार रहते थे, इस लिए हमारी दरखास्त है कि हजुर सल्ल० बनी कुरैजा के मामले में हमारे क़बीले में से किसी को मुंसिफ़ मुक़र्रर फ़रमा दें।

हुजूर सल्ल० ने मुस्करा कर फ़रमाया, इत्मीनान रखो, पहले ही तुम्हारे क़बीला औस के सरदार साद बिन मुआज को मुंसिफ़ क़रार दिया जा चुका है। बनी कुरैजा ने भी उन्हीं को अपनी तरफ़ से वकीले मुतलक बनाया है।

यह सुन कर क़बीला ओस के तमाम अंसार बहुत खुश हुए और हुजूर (ﷺ) ने फ़ौज को वापसी का हुक्म दे दिया।

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फ़ौज क़ैदियों को ले कर मदीने की तरफ़ रवाना हुई।

मुशरिको और मुनाफ़िक़ों ने गम व हैरत की नजरों से मुसलमानों को कामियाब आते हुए देखा। वे रश्क व हसद से जल गये।

मुसलमान फ़ौज मदीने में दाखिल हो कर मस्जिदे नबवी के सामने वाले बड़े मैदान में पहुंची। क़ैदी फ़ौज के बीच में खड़े कर दिये गये।

हुजूर सल्ल० फ़र्श बिछा कर बैठ गये, कुछ सहाबी भी पास में जा बैठे ! अब कुछ लोग हजरत साद को लाने के लिए भेजे गये।

अहदनामा तोड़ने की सजा:

हजरत साद खंदक़ की लड़ाई में घायल हो गये थे और ऐसे घायल हुए थे कि चल-फिर न सकते थे। उन के लिए मस्जिद के क़रीब एक खेमा तैयार किया गया था और वे उस में आराम कर रहे थे।

उन्हें लाने के लिए एक पालकी तैयार की गयी। इस पालकी में वह सवार हो कर क़बीला औस के अंसार के साथ चले। रास्तों में कुछ आदमियों ने उन से कहा –

आपको मालूम है कि बनू कुरैजा ने हमेशा लड़ाइयों में हमारा साथ दिया है। आज उन्हों ने आप को अपना वकील (मददगार) बनाया है, इस लिए बेहतर है कि आप उन के साथ इन्तिहाई रिआयत करें।

मैं अद्ल व इन्साफ़ के मुताबिक़ फ़ैसला करूंगा, हजरत साद ने फ़रमाया –

जब उन की सवारी हुजूर सल्ल० के पास पहुंची, तो हुजूर सल्ल० और आप के सहाबा उन के इस्तिक्बाल के लिए खड़े हुए।

हुजूर सल्ल० ने उठते हुए फ़रमाया –

लोगो ! जब कोई बुजुर्ग या क़ौम का सरदार आया करे, तो उन का अदब खड़े हो कर किया जा सकता है।

हज़रत साद पालकी से निकल कर फ़र्श पर बैठ गये।

हुजूर सल्ल० और तमाम मुसलमान अपनी-अपनी जगह पर बैठ गये। चूकि तमाम मदीना और उस के पास-पड़ोस में इस बात की शोहरत हो गयी थी, कि बनी कुरेजा ने हजरत साद को मुंसिफ़ क़रार दिया है, इस लिए हर जगह से लोग फ़ैसला सुनने के लिए उमड आए थे और मुसलमानों के चारों तरफ़ घेरा बांध कर खड़े हो गये थे।

हुजूर सल्ल० ने हजरत साद से कहा, मैं ने तुम्हारे दोस्तों यानी बनी कुरंजा का मामला तुम्हारे सुपुर्द किया है। जो फ़ैसला तुम करोगे, उस पर अमल किया जाएगा।

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कबीला ओस के सरदार ! काब ने कहा, हम ने तुम को अपनी तरफ से वकीले मुत-लक बनाया है। जो तुम फ़ैसला करोगे, हम उस पर अमल करेंगे – तुम जानते हो और अच्छी तरह जानते हो कि जब ओस और खजरज में लड़ाइयां होती थीं, तो हम हमेशा तुम्हारा साथ देते थे। हम पुरानी दोस्ती के नाम पर तुम से अपील करते हैं कि हमारे इस पुराने साथ को ध्यान में रख कर फ़ैसला कीजिएगा।

साद ! हज़रत उमर रजि० ने कहा, आप को मालूम है कि जब मुसलमान घिरे हुए थे, तो उस वक्त बनी कुरेजा ने अहदनामा के खिलाफ़ ग़द्दारी कर के दुश्मन से सांठ-गांठ कर लिया था और जब उन्हें समझाने के लिए वफद भेजा गया, तो मुसलमानों को कमजोर, नातवां और हक़ीर समझ कर उनके वफद के साथ हिकारत भरा सुलूक किया और साफ़ तौर पर यह कह दिया कि रसूले खुदा को हम नहीं जानते और न किसी अहद के पाबन्द रहना चाहते हैं, फिर इसी पर ही बस न किया, बल्कि मुसलमानों और रसूले खुदा को गालियां दीं। मेरी ही नहीं, हर मुसलमान की और मुसलमान ही की नहीं, बल्कि हर शरीफ़ इंसान यह ख्वाहिश है कि आप इंसाफ़ के साथ फ़ैसला करें।

क्या तुम ने मुझे मुंसिफ़ क़रार दिया है ? हजरत साद ने काब से पूछा, खुदा को हाजिर व नाजिर मान कर इक़रार करो कि मेरे फ़ैसले को मंजूर करोगे ?

काब ने हलफ़ उठा कर इक़रार किया कि, मैं और मेरी क़ौम तुम्हारे फ़ैसले को मंजूर करेंगे ।

इसके बाद साद ने मुसलमानों से भी यही इक़रार लिया और मुसलमानों ने भी इक़रार किया। 

हलफ़ लेने के बाद साद सोचने लगे। यहूदी, मुसलमान, मुश्रिक और मुनाफ़िक़, गरज यह कि सब सब खामोश रह कर हजरत साद की तरफ़ देखने लगे।

कुछ देर तक सोचने के बाद हजरत साद ने सर उठाया और ऐसी अवाज से, जो सब तक पहुंच सके, इर्शाद फ़रमाया-

मैं फ़ैसला देता हूं कि बनी कुरेजा के तमाम मर्द क़त्ल कर दिए जाएं, औरतों और बच्चों के साथ लड़ाई के क़ैदियों जैसा सुलूक किया जाए और इनकी मिल्कियतें जब्त कर के मुसलमानों में तक्सीम कर दी जाएं।

इस फ़ैसले को सुन कर बनी कुरैजा, मुशरिक और मुनाफ़िक़ हैरान रह गये। साद का यह फ़ैसला उन की उम्मीदों के बिल्कुल खिलाफ़ हुआ।

आज उन्हें मालूम हुआ कि अहदनामे को काग़ज का पुर्जा समझने की सजा क्या होती है और बद-अहदी कितने खौफ़नाक नतीजे पैदा कर देती है।

चुनांचे इस फ़ैसले पर अमल किया गया।

इस तरह बनी कुरेजा अपने किए की सजा पा गये।

अब मदीना की धरती सरकश दुश्मने इस्लाम यहू-दियों के वजूद से पाक हो गयी।

इस लड़ाई का नाम बनी कुरेजा की लड़ाई है। 

बहरहाल ! आपको बता दे , दुनिआ में जो भी जंगे हुई, वहां जितने वाली कौमो ने हारने वाली कौमो को नेस्तो नाबूद किया है, दुनियावी तारीख का आप मुताला करे तो मालूम होता है सिवाय इस्लाम के और किसी ने भी जंग में हारे कैदियों पर रहम नहीं खाया, अलबत्ता चंद वाक़िआत के जहा जुल्म की संगिनियों को मद्दे नज़र रखते हुए ऐसे इबरतनाक फैसले लिए गए हो। बनी कुरैजा का जुर्म राजद्रोह था, जो की आज भी दुनिआ के किसी भी मुल्क के कानून में राजद्रोह की सजा, सजा ऐ मौत ही है।

To be continued …

इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा …
आप हज़रात से इल्तेजा है इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर कर हमारा हौसला अफ़ज़ाई में तावूंन फरमाए।


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