सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 24

Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 24

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तलाश

कुंफ्फारे मक्का ने हुजूर (ﷺ) के मकान का घेराव रात के शरू ही में कर लिया था। वे तमाम रात तलवार लिए खड़े निगरानी करते रहे। उन का इरादा था कि हुजूर (ﷺ) जब मकान से बाहर निकलेंगे, तो अचानक उन पर हमला कर के उन्हें शहीद कर डालेंगे।

जब हुजूर (ﷺ) अपने मामूल के मुताबिक़ न उठे, तो कुफ्फ़ारे मक्का ने मकान के अन्दर झांका, आप (ﷺ) के बिस्तर पर हजरत अली (र.अ) को चादर ओढ़े सोते पाया, कुफ्फ़ार ने समझा कि हुजूर (ﷺ) ही आराम फरमा रहे हैं और इत्मीनान से खड़े निगरानी करते रहे।

जब सुबह हो गयी और उजाला हो गया, तो हजरत अली (र.अ) उठे, चादर उतार कर एक तरफ़ रख दी और खड़े हो गये।

कुफ्फार अब भी झांक रहे थे। उन्हों ने हुजूर (ﷺ) के बिस्तर से हजरत अली को उठते देखा, उन्हें हैरत के साथ गुस्सा भी आया, जिन्हें वे हुजूर (ﷺ) समझ रहे थे, वह हजरत अली (र.अ) थे।

हजरत अली मकान से बाहर निकले। कुफ्फ़ारे मक्का ने उन को अपने घेरे में ले लिया। इन कुफ्फ़ार में आम लोग न थे, बल्कि अबू जहल, अबू सुफ़ियान, वलीद, उत्बा, आस, जमआ, अबुल बख्तरी, नज़र, हकीम, शैबा जैसे लोग थे।

अबू सुफ़ियान ने डपट कर कहा, अली ! बताओ, मुहम्मद कहां हैं ?

हजरत अली ने बगैर डरे कहा, मुझे खबर नहीं, मैं तुम्हारे सामने सारी रात सोता रहा हूं। तुम सब निगरानी करते रहे हो, तुम को हुजूर (ﷺ) का हाल मालूम होगा?

कुफ्फार को आप के इस जवाव पर बड़ा गुस्सा आया। 

अबू जहल ने कहा, अली! तुम जरूर जानते हो कि वह कब और कहां चले गये ? अगर तुम हम को बता दो, तो हम तुम को मक्के का हुक्मरा बना देंगे। 

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हजरत अली (र.अ) ने फ़रमाया,
मुझे हुकुमत की जरूरत नहीं है। मैं जिस हाल में हूं, बेहतर हूं। खुदा जिस हाल में रखे, राजी हूं। मुझे परेशान न करो, छोड़ दो, सुबह की नमाज का वक्त क़ज़ा हो रहा है।

अबू लहब ने एक तमांचा मार कर कहा, अली ! जब तक तुम मुहम्मद (ﷺ) का पता न बताओगे, रिहा नहीं हो सकते। हम तुम को कैद कर देंगे। अगर तुम अपनी जिद पर कायम रहे, तो क़त्ल कर दिये जाओगे।

हजरत अली (र.अ) जवान थे, अपनी जिद पर अड़े रहे। उन्हें भी गुस्सा आ गया। उन्हों ने बिगड़ कर कहा, ऐ चचा! गनीमत जानो। हुजूर (ﷺ) ने किसी मुसलमान को तलवार उठाने का हुक्म नहीं दिया, वरना मेरी तलवार म्यान से निकल कर तमाम हिमायतियों के टूकड़े कर डालती।

अबू सुफ़ियान ने बिगड़ कर कहा, जरा-सी ज़बान और गज भर की बात ! अली ! अपनी जान से दुश्मनी न करो। बता दो, वरना कत्ल कर दिये जाओगे।

हजरत अली अब भी नहीं घबराये, गरज कर बोले, दूर हो जाओ, कमबख्तो! तुम मुझे डराते हो। तुम नहीं जानते कि दुनिया की कोई ताक़त मुझे मरऊब नहीं कर सकती।

अबू जहल को सख्त गुस्सा आया। उस ने आप के सर के बाल पकड़ कर खींचे और वलीद और अबू सूफ़ियान ने आप को घूसों से मारना शुरू किया।

हजरत अली (र.अ) ने कहा,
बेरहमो ! बेदर्दो ! खुदा तुम्हारे जुल्मों को देख रहा है। तुम बहुत कुछ फल-फूल गये। अब तुम्हारी तबाही का वक्त आ रहा है। तुम मरोगे और बेकसी की मौत मरोगे, तुम्हारे लिए आंसू कोई भी न बहाएगा। 

लोग जानते थे कि हजरत अली की बद-दुआ खाली नहीं जाती। वह डर गये और उन्हों ने आप को छोड़ दिया।

आप नमाज पढ़ने चले गये। 

अबू जहल ने कहा, यह बहुत बुरा हुआ कि मुहम्मद बच कर निकल गये। हम अब तक अपने तमाम मंसूबों में नाकाम रहे। 

अबू सुफ़ियान ने कहा, चलो, यह देखें कि वह तंहा गये हैं या अबू बक्र सिद्दीक को भी साथ ले गये हैं।

वलीद ने कहा, मेरा ख्याल है कि दोनों गये होंगे, फिर भी आओ, अबू बक्र के मकान पर चल कर इत्मीनान कर लें। 

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सब इस बात पर मुत्तफ़िक हो गये। वहां से चले, हजरत अबू बक्र (र.अ) के मकान पर पहुंचे। कुछ देर बाहर खड़े रहे, फिर सब मकान के भीतर घुसते अबू जहल ने अस्मा (र.अ) से कहा, अस्मा ! तुम्हारे वालिद कहां हैं ?

अस्मा पर किसी का रौब न पड़ा।

उन्हों ने बगैर डरे कहा, मुझे खबर नहीं है।

अबू जहल ने गजबनाक हो कर इस जोर से तमांचा मारा कि उन के कान से बाली निकल कर गिर गयी।

हजरत अस्मा को जोश आ गया और उन्हों ने गैज व ग़जब में भर कर कहा, अबू जहल! शर्म करो, मर्द हो कर औरत पर हाथ उठाते हो। 

नहीं जानते हो कि गैरतमन्द औरत ईट का जवाब पत्थर से दिया करती है। तुम्हारे तमांचे का जवाब तलवार की नोक से दिया जाता मगर इस वजह से माजूर हूं कि खुदा के रसूल (ﷺ) ने तलवार उठाने से मना कर दिया है।

अबू जहल ने खड़े तेवरों को देखकर कहा, इतनी जुर्रत।

हजरत अस्मा (र.अ) ने कहा,
जुर्रत देखना चाहते हो, तो तलवार लो और सामने आ जाओ। यह कहते ही हजरत अस्मा मकान के भीतर घुस गयीं और तलवार उठा लायीं । म्यान से खींच कर हजरत अस्मा ने कहा अब बताओ, कोन मुझ पर तलवार उठाने की जुर्रत करता है?

अबू सुफ़ियान ने कहा, ऐ कुरैश की गैरतमंद लड़की! तेरी हिम्मत तारीफ़ के काबिल है, तू बहादुर अबू बक्र की दलेर लड़की है। कौम को ऐसी ही बहादुर लड़कियों की जरूरत है। अबू जहल ने ग़लती की कि शेरनी को लोमड़ी समझ कर छेड़ा। चलो, वापस चलो और उन दोनों को तलाश करो। बेकार वक्त बर्बाद न करो।

तमाम लोग वहां से चल कर और घोड़ों पर सवार होकर मक्के के चारों ओर रास्तों पर दौड़ गये तमाम दिन घोड़े दौड़ते रहे लेकिन उन दोनों का कहीं पता न चला। शाम के वक्त सब नाकाम वापस हो गये। 

जासूस लगा दिये गये। पता लगाते-लगाते वे कोहे सौर तक भी जा पहुंचे। उस गार के मुहाने पर भी पहुंच गये, जिस में ये दोनों छिपे हुए थे। अन्दर इतना अंधेरा था कि कोई चीज़ नजर न आती थी।

फिर भी वे बड़े गौर और तवज्जोह से अपनी तलाश जारी किये रहे। 

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हुजूर (ﷺ) और अबू बक्र (र.अ) गारे सौर में 

हुजूर (ﷺ) और हजरत अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) मक्का से निकल कर चले और पूरी खामोशी से कोहे सौर की तरफ़ रवाना हुए। 

दोनों चुप-चाप चले जा रहे थे, चूंकि कुफ्फ़ार के पीछा करने का डर था, इस लिए किसी कदर तेजी से चल रहे थे। आखिरकार वे चढ़ते चढ़ते कोहे सौर पर चढ़ गये। यहां पहुंच कर हुजूर (ﷺ) ने कहा, अब कोई अंदेशा नहीं रहा। सुबह से पहले ही उस में जा छिपेंगे। दोनों बढ़े और गारे सौर के किनारे पर जा कर खड़े हुए। 

Ghaar e Saur ka Waqia in Hindi

गार में बहुत अंधेरा था। उस के अन्दर शायद ही कभी किसी इंसान का दखल व गुजर हुआ हो। 

हुजूर (ﷺ) गार के अन्दर दाखिल होने लगे, तो हजरत अबू बक्र (र.अ) ने कहा, हुजूर (ﷺ) ! ठहरिये, यह गार न जाने कितने दिनों से ना-साफ़ है। नहीं कहा जा सकता कि इस में कितने कीड़े होंगे, इसलिए हुजूर (ﷺ) एक चट्टान पर बैठ गये।

हजरत अबू बक्र (र.अ) के टटोलने पर मालूम हुआ कि ग्रारे सौर तमाम कुड़ा-करवट वगैरह से भरा पड़ा है। अपने हाथों से कुड़ा-करकट इकट्ठा कर के बाहर निकाल-निकाल कर एक दूसरे गार में फेकना शुरू कर दिया।

यह काम यों तो मामूली था, लेकिन था बड़ा खतरनाक। ऐसी जगह अक्सर जहरीले जानवर रहा करते हैं, किसी बिच्छू या सांप या दूसरे जहरीले जानवर का होना और काट लेना बिल्कुल मुम्किन था, पर हजरत अबू बक्र (र.अ) को इस की कोई परवाह न थी। वह बराबर गार की सफ़ाई में लगे थे।

एक घंटे की मेहनत के बाद उन्हों ने गार को बिल्कुल साफ़ कर दिया। 

अब उन्हों ने गार का जायजा लेना शुरू किया। हर चट्टान और हर पत्थर को टटोला। उन्हें बहुत से सूराख मालूम हुए। चूकि यह नहीं कहा जा सकता था कि सूराख खाली हैं या उनके अन्दर कीड़े मकोड़े छिपे हुए हैं, इसलिए हज़रत अबू बक्र सिद्दीक ने तमाम सूराखों को बन्द करने का इरादा किया, पर सुराख बन्द करने के लिए कोई चीज़ आप के पास न थी। किसी तरह तमाम सूराखों को आप बन्द करने में कामियाब हो गये, फिर भी एक रह ही गया। आप ने सोचते-सोचते यह तर्कीब निकाली कि इस पर अपना अंगूठा लगा लिया जाए। चुनांचे जब हुजूर (ﷺ) ग़ार में दाखिल हुए और आराम फरमाने लगे, उस वक्त हजरत अबू बक्र (र.अ) के पांव का अंगूठा सूराख पर था। 

उस सुराख में एक काला सांप छिपा हुआ था, उस ने हजरत अबू बक्र सिद्दीक के अंगूठे को डस लिया। तक्लीफ़ से वह तिलमिला उठे, लेकिन चूंकि हुजूर (ﷺ) सो रहे थे और उन के आवाज निकालने से आप की नींद में खलल पड़ सकता था, इसलिए बिना किसी आवाज और हरकत के वह उस तक्लीफ़ को बरदाश्त करते रहे।

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हुजूर (ﷺ) जब जागे, तो हजरत अबू बक्र के चेहरे से उनकी तक्लीफ़ को भांप लिया, पूछा –

क्या बात है? आप का चेहरा क्यों उतरा हुआ है?

हजरत अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) ने जब पूरी बात बता दी, तो आप (ﷺ) ने फ़रमाया, देखू कहां काटा है?

हजरत अबू बक्र (र.अ) ने सूराख पर से अंगूठा उठाया, तो फ़ौरन ही सांप निकल कर खड़ा हो गया।

आप (ﷺ) ने सांप को खिताब करते हुए कहा,
ऐ काले सांप ! तू ने मेरे दोस्त के अंगूठे पर डस कर मुझे तक्लीफ़ पहुंचायी है। 

सांप बहुत ही काला और खौफ़नाक किस्म का था, वह हुजूर (ﷺ) की ओर देख कर झुका और गार से बाहर निकल कर चला गया।

हुजूर (ﷺ) ने लुआबेदेहन हजरत अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) के अंगूठे पर मल दिया। अल्लाह की शान ! जलन फ़ौरन जाती रही।

इस के बाद दोनों आराम फरमाते रहे। जब सूरज डूब गया और चारों तरफ़ अंधेरा फैल गया, हजरत अबू बक्र (र.अ) के गुलाम आमिर बकरियों का रेवड़ ले कर आ गये। हजरत अबू बक्र (र.अ) बाहर निकले। आमिर ने तुरन्त दूध दुह कर हजरत अबू बक्र को थमा दिया। 

उन्हों ने हुजूर सल्ल० की ओर वह प्याला बढ़ा दिया। पहले हुजूर (ﷺ) ने पिया, फिर हजरत अबू बक्र (र.अ) ने, फिर दोनों सैराब हो गये। 

इतने में हजरत अब्दुल्लाह बिन अबू बक्र और हजरत अस्मा बिन्त अब बक्र रजि० आ गये।

दोनों ने करीब आ कर हुजूर (ﷺ) को और हजरत अबू बक्र (र.अ) को सलाम किया। 

हजरत अस्मा खाना लायी थीं। उन्हों ने हुजूर (ﷺ) के सामने खाना रख दिया। हजरत अबू बक्र (र.अ) ने अपने बेटे से पूछा, बेटे ! कुछ कुफ्फारे कुरैश का हाल सुनाओ। आज का पूरा दिन उन के लिए कैसा बीता?

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हजरत अब्दुल्लाह (र.अ) ने बताया, प्यारे बाप ! सुबह के वक्त जब हजरत अली (र.अ) बिस्तर पर से उठे, तो कुफ्फार ने उन्हें घेर लिया। उन से पूछा गया,

हुजूर (ﷺ) कहां हैं ? उन्हों ने ला-इल्मी जाहिर की, तो उन को बड़ा गुस्सा आया और हजरत अली को मारना शुरू कर दिया। पहले कैद किया, फिर कुछ सोच-समझ कर आप को रिहा कर दिया। तमाम कुफ्फार ! हुजूर (ﷺ) के चले आने से बहुत हैरान थे, वे सब हमारे मकान पर आये थे। मैं घर पर मौजूद न था। अस्मा थीं। वे अस्मा से पूछने लगे, तेरा बाप कहां है ? उस ने कहा, मुझे खबर नहीं। जालिम अबू जहल ने गुस्से में आ कर एक जोर का तमांचा मारा, जिस के लगने से उसके कान की बाली गिर गयी। 

हजरत अबू बक्र (र.अ) को इतना सुनते ही जोश आ गया। बोले, बदबख्त अबू जहल! तेरी कजा तेरे सर पर मंडला रही है।

हजरत अस्मा समझ गयीं कि अब्बाजान को तमांचा लगने का जान कर तक्लीफ़ पहुंची है, इसलिए वह जल्दी से बोल पड़ीं – है अब्बा जान ! अबू जहल ने धीरे से तमांचा मारा था।

अबू बक्र ने जोश में भर कर कहा, मगर उस मलऊन को मेरी बच्ची के मारने का क्या हक़ था ? काश, अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने हमें तलवार उठाने का हुक्म दिया होता, तो मैं उस बुजदिल मरदूद से जा कर इंतिकाम लेता।

हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, मेरे भाई ! हमारा और तुम्हारा और मुसलमानों का बदला अल्लाह लेगा। अल्लाह के सुपुर्द करो, वह बेहतर बदला लेने वाला है।

यह सुन कर हजरत अबू बक्र (र.अ) नर्म पड़ गये। उन्हों ने फ़रमाया, मैंने अल्लाह के सुपुर्द कर दिया। अल्लाह  मेरी बेटी का बदला लेगा। अच्छा अब्दुल्लाह ! फिर क्या हुआ? 

हजरत अब्दुल्लाह ने कहा, जब उन्हें आप दोनों का पता न चला,तो तमाम मक्का वालों को खोजने और तलाश करने का हुक्म दिया। 

लोग हर तरफ़ दोड़े। ऊंटों और घोड़ों पर सवार हो कर दूर तक गये पर सब नाकाम रहे।

हुजूर (ﷺ) ने फरमाया, इन्शा अल्लाह नाकाम ही रहेंगे।

अब ये सब बैठ गये और सब ने मिल कर खाना खाया।

खाना खा कर हजरत अबू बक्र सिद्दीक़ (र.अ) ने अब्दुल्लाह से कहा, प्यारे बेटे ! जाओ, और अपनी बहन को भी ले जाओ। कल रात को फिर आना और कुफ्फारे कुरैश की तमाम खबर सूनाना।

हजरत अब्दुल्लाह (र.अ) और हजरत अस्मा (र.अ) दोनों सलाम कर के चले गये।

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उन के चले जाने के बाद हजरत अबू बक्र ने आमिर से कहा, आमिर! तुम बकरियों का रेवड़ ले कर उन के पीछे इस तरह से जाओ, जिस से कि इन दोनों के पैरों के निशान मिट जाएं।

आमिर ने कहा, ऐसा ही होगा, मेरे हुजूर अब आमिर रेवड़ ले कर चला। 

सब के चले जाने के बाद हुजूर (ﷺ) और हजरत अंबू बक्र (र.अ) ने इशा की नमाज पढ़ी और एक साफ़ चट्टान पर चादर बिछा कर रात भर आराम फरमाते रहे। सुबह में जागे, जरूरतें पूरी की और सुबह की नमाज पढ़ कर फिर गारे सौर में जा छिपे।

मकड़ी का जाल

जब सूरज निकलने लगा, तो दोनों ने देखा कि एक बड़ी मकड़ी ने गार के मुंह पर आ कर जाला बनाना शुरू किया। जब जाला तन कर उस ने तमाम गार का मुंह ढक लिया, तो एक और चली गयी।

उस के जाने के बाद ही दो कबूतर आये और गार के करीब घोंसला बनाने लगे।

हुजूर (ﷺ) ने यह देख कर कहा, ऐ साथी ! तुम ने अल्लाह की हिक्मत देखी ?

हजरत अबू बक्र (र.अ) ने कहा, हां, देखी। मकड़ी का जाला तन कर चले जाना, कबूतरों का घोंसला बनाना बेवजह नहीं हो सकता। 

हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, तुम ने ठीक समझा, ख्याल होता है कि कुफ्फारे कुरैश फिर हमारी खोज में इस तरफ़ आने वाले हैं, इसलिए कुदरत ने हमारी हिफाजत का इन्तिजाम कर दिया है।

हजरत अबू बक्र बोले, लेकिन एक कमजोर मकड़ी का जाला बनाना और जंगली कबूतरों का घोंसला बनाना, इस से हमारी क्या हिफ़ाजत हो सकती है? 

हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, अल्लाह अपनी हिक्मत के भेद को खुद ही जानता है। हम उस की तह तक नहीं पहुंच सकते।  

हजरत अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) कुछ कहने वाले ही थे कि कबूतर फड़फड़ाये और उड़ गये।

हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, होशियार ! दुश्मन आ पहुंचे। 

अब दोनों चुप हो गये। उन्हें गार के बाहर भारी कदमों की आवाज सुनायी दी।

उस वक्त सूरज सर पर चमक रहा था, लू भी चल रही थी और धूप भी तेज थी, पर गार के भीतर अब भी अंधेरा था। 

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हुजूर (ﷺ) और हजरत अबू बक्र (र.अ) खामोश बैठे कदमों की चाप सुन रहे थे। आवाज बढ़ती हुई आ रही थी। यह बहुत से लोगों के क़दमों की चाप थी। 

हजरत अबू बक्र रजि० ने बड़े धीरे से कहा, हुजूर (ﷺ) ! कुफ्फ़ार सर पर आ पहुंचे। 

हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, घबराओ नहीं, अल्लाह हमारे साथ है।

हजरत अबू बक्र (र.अ) चुप हो गये।

अब कदमों की आवाज इतने करीब आ गयी थी कि लगा दुश्मनों ने इन्हें खोज लिया है और उन की तलाश में गारे सौर तक आ गये हैं।

हजरत अबू बक्र (र.अ) ने घबरा कर सर उठाया और ऊपर नजर कर के देखा तो अबू जहल, अबू लहब और अबू सुफ़ियान सामने खड़े थे। इस तरफ़ उन की पीठ थी।

हजरत अबू बक्र (र.अ) ने कहा, हुजूर (ﷺ) ! सामने ही आ गये। अगर ये अपने पांव की तरफ़ नज़र कर लें, तो हम नज़र आ जाएं।

हुजूर (ﷺ) ने तसल्ली देते हुए कहा, बिल्कुल न डरो, यह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। जब हमारे साथ अल्लाह है, तो किसी का कैसा डर! 

हजरत अबू बक्र कुछ कहने वाले ही थे कि किसी ने कहा, ऐ कुरैश के सरदारो! इस से आगे पता नहीं चलता, या तो मूहम्मद (ﷺ) और उस के साथी यहीं कहीं छिप गये हैं या आसमान पर उड़ गये हैं।

अबू जहल ने कहा, यहीं तलाश करो, यहीं कहीं छिपे होंगे, आसमान पर उड़ कर नहीं जा सकते।

इस के बाद आवाज बन्द हो गयी, सिर्फ़ क़दमों की चाप सुनायी दी।

हुजूर (ﷺ) और हजरत अबू बक्र समझ गये कि लोग उन्हें तलाश कर रहे हैं।

कुछ देर बाद किसी ने कहा, तमाम पहाड़ियां छान मारी, कहीं पता नहीं मिला, न जाने वे कहां गुम हो गये?

अबू सुफ़ियान की आवाज आयी, हम ने पहाड़ का चप्पा-चप्पा छान मारा, वे उस जगह नहीं हैं। सुराग़रसानों ने हम को धोखा दिया है।

अजब नहीं, जो ये उन दोनों से मिल गये हों और हम को धोखा देकर दूसरी तरफ़ ले आए हों।

अबू जहल ने कहा, मुझे इन सुराग़रसानों पर इत्मीनान है, ये हमें कोई धोखा नहीं दे सकते।

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एक सुरागरसां ने कहा, हुजूर ! हम यकीन दिलाते हैं कि हम ने आप को धोखा नहीं दिया, बल्कि पैरों के निशान का सुराग़ लगाते हुए ठीक तौर पर लाये हैं, मगर यहां आ कर निशान गायब हो गये हैं। 

वलीद ने कहा, इस गार में तो देखो, शायद इस गार के अन्दर छिपे

हजरत अबू बक्र रजि० यह सुन कर बेचैन हो उठे।

हुजूर (ﷺ) ने उन्हें इशारे से तसल्ली दी। 

बाहर अबू जहल वलीद का जवाब दे रहा था कि यह गार तो बरसों से खतरनाक हालत में पड़ा है। कोई इंसान इस में घुसने की हिम्मत नहीं कर सकता। 

अबू सुफ़ियान बोल पड़ा, क्या तुम ने मकड़ी का जाला नहीं देखा? 

अगर कोई इंसान गार के अन्दर दाखिल होता तो यह जाला सही सालिम रहता? 

देखो, एक तार भी नहीं टूटा है।

अबू लहब बोला, वलीद की तो अक्ल मारी गयी है, न कबूतरों का घोंसला नजर आया, न घोसले से उड़ने वाले कबूतर दिखायी दिये। भला बदबख्ती का भी कोई ठिकाना है? आओ, वे यहां नहीं हैं। कोई नहीं कह सकता कि वे कहां चले गये?

वलीद मुंह बना कर रह गया। तमाम कुफ्फार ना मुराद वापस लौट आए।

जब वे दूर निकल गये, तो हजरत अबू बक्र (र.अ) ने कहा, अल्लाह का हजार शुक्र है कि उस ने हमें बचा लिया। 

हुजूर (ﷺ) ने कहा, जो लोग अल्लाह पर भरोसा करते हैं, अल्लाह उन की हिफ़ाजत भी करता है और मदद भी। एक मुसलमान के लिए जरूरी है। कि दुनिया की तमाम ताक़तों से बेनियाज हो कर सिर्फ अल्लाह की ताक़त पर भरोसा करे, अल्लाह उस की ज़रूर मदद करेगा। 

हजरत अबू बक्र (र.अ) ने कहा, बेशक, सही फरमाया, मेरे हुजूर (ﷺ) ! हम कुफ्फार के इतने करीब और इस दर्जा सामने थे कि अगर वे एक कदम आगे बढ़ कर गार के भीतर झांकते, तो हम उन की नजर में आ जाते, पर अल्लाह को हमारी हिफ़ाजत मंजूर थी, इस लिए ऐसी वजहें पैदा कर दी कि कुफ्फार धोखा खा कर वापस चले गये।

हुजूर (ﷺ) ने फरमाया, अब बेखौफ़ व खतर आराम करो। दोनों गार के अन्दर चादरें बिछा कर पड़ गये। सूरज ढलने पर उठे, गार से बाहर निकले। तयम्मूम कर के नमाज पढ़ी। उस वक्त सूरज बड़े जोर से चमक रहा था, धूप बहुत तेज थी। गरम हवा के झुलस देने वाले झोंके चल रहे थे। 

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हजूर (ﷺ) ने हजरत अबू बक्र (र.अ) से कहा, किसी बुलन्द चट्टान पर खड़े होकर चारों तरफ़ नज़र डाल कर देखो कि आमिर यहां कहां रेवड़ चरा रहा है। 

हजरत अबू बक्र (र.अ) ने बहुत अच्छा कहा और एक ऊंची चट्टान पर चढ़ गये। कोहे सौर पर बहुत ही कम पेड़ थे। सूरज की गरमी किसी पेड़ को उगने ही न देती थी। नंगा पहाड़ था और झलसी हई चट्टानें थीं।

हजरत अबू बक्र सब से ऊंची चट्टान पर चढ़ गये। उन्हों ने घूम फिर कर चारों तरफ़ नजर डाली। हर तरफ़ गरम हवाएं चल रही थीं। उन्होंने यसरब की तरफ़ देखा, तो उपर से एक सांडनी सवार तेजी से चलता हुआ और इधर ही आता हुआ नजर आया।

हजरत अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) नीचे उतरे, हुजूर (ﷺ) के करीब आकर कहा –

ऐ अल्लाह के रसूल (ﷺ) ! आमिर का कुछ पता नहीं है। हर तरफ़ तेज हवाएं चल रही हैं। अलबत्ता यसरब की तरफ़ से एक सांडनी सवार आ रहा है।

हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, चूंकि हमारी हिजरत की खबर यसरब पहुंच चुकी है, इस लिए यसरब वाले इन्तिजार कर रहे हैं। मुम्किन है हमारे न पहुंचने की वजह से उन का कोई कासिद आ रहा हो। 

हजरत अबु बक्र (र.अ) ने फ़रमाया, यही मेरा भी ख्याल है। सोच रहा हूं कि पहाड़ से नीचे उतर कर उस सांडनी सवार को रोक लूं। 

हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, नहीं, एक तो अंदेशा है कि कहीं कुफ्फार किसी पहाड़ के दामन में छिपे हुए न हों, दूसरे मुम्किन है कि जिस कासिद को हम मुसलमान समझ रहे हैं, कुफ्फार का क़ासिद हो। आओ, हम गार के अन्दर छुप जाएं, यहां धूप की गर्मी तक्लीफ़ दे रही है। 

हजरत अबू बक्र (र.अ) ने कहा, चलिए।

दोनों गार के अन्दर दाखिल हुए और चादरों पर जा बैठे। देर तक दोनों खामोश बैठे रहे।

कुछ अर्सा गुजरने पर उन्होंने किसी के कदमों की चाप सुनी। दोनों चौंके, फिर अबू बक्र (र.अ) ने कहा, मालूम होता है, फिर कोई आ रहा है। 

हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, हां आ रहे हैं, शायद दो आदमी हैं, आवाज करीब आती जा रही है।

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हजरत अबू बक्र (र.अ) ने कहा, मेरे हुजूर (ﷺ) ! मुझे तलवार चलाने की इजाजत दे दीजिए। आखिर हम कब तक छुपे रहेंगे और कब तक डरते रहेंगे?

हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, जब तक अल्लाह का हुक्म नाजिल न हो, हम को तलवार न उठाना चाहिए। देखो, परदा-ए-गैब से क्या जाहिर होने वाला है ?

हजरत अबू बक्र (र.अ) ने ऊपर नज़र की। उन्हों ने आमिर को सामने खड़े देखा। वह खुश हुए।

उन्हों ने कहा, आमिर तुम हो? कैसे आये ? गार के अन्दर चले आओ।

आमिर गार के अन्दर गया और बताया कि यसरब से एक कासिद आया है और वह हुजूर (ﷺ) से मिलना चाहता है।

आप (ﷺ) ने फ़रमाया, उसे बुला लो। आमिर वापस गये और उसे बुला लाये। यसरबी मुसलमान ने आते ही आप को सलाम किया। आप ने पूछा, तुम चिलचिलाती धूप और गरम हवा में कैसे आए?

उस ने बताया, यसरब के तमाम मुसलमान आप के आने के इन्तिजार में हैं। हर दिन यसरब से निकल कर शाम तक आप का इन्तिजार करते हैं । जब आप न आये और मुद्दत बीत गयी, तो मुझे न आने की वजह मालूम करने के लिए आप की खिदमत में रवाना किया गया है।

हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया,
मैं यसरब के मुसलमानों का शुक्रगुजार हूं। अफ़सोस है कि मैं इस वक्त ऐसी हालत में हूं कि तुम्हारा सत्कार भी नहीं कर सकता। पहाड़ के अन्दर छिपा हुआ हूँ। मेरे भाई! मेरी क़ौम मेरे कत्ल पर तुली है। वह नहीं चाहती कि मैं यसरब जाऊं यह अलग बात है कि अल्लाह की मदद मेरे साथ है। अगर उसकी मर्जी हुई तो परसों यसरब की तरफ़ चल पडूंगा। 

अगर तुम ठहरना न चाहो, तो चले जाओ। यसरब वालों से कह दो कि मैं आ रहा हूं।

हज़रत अबू बक्र (र.अ) ने आमिर से कहा, इन्हें खूब दूध पिलाओ और जब ये रवाना हो जाएं, तब तुम रात को आना।

आमिर कासिद को ले कर रवाना हुए।

उन के चले जाने के बाद इन दोनों ने अस्र की नमाज पढ़ी। जब दिन डूब गया तो मगरिब की नमाज गार ही में पढ़ कर बाहर आ गये।

कुछ ही देर चट्टान पर बैठे थे कि आमिर रेवड़ ले कर आ गये। 

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उन्हों ने बताया कि कासिद दूध पी कर उसी वक्त चला गया था।

तमाम दिन हजरत अबू बक्र ने और हुजूर (ﷺ) ने कुछ खाया-पिया न था, इसलिए दोनों को भूख और प्यास मालूम हो रही थी। दोनों ने थोड़ा-थोड़ा दूध पिया। 

हजरत अबू बक्र (र.अ) ने आमिर से पूछा, क्या तुम ने दिन में कुफ़्फ़ारे कुरैश को देखा ?

आमिर ने बताया, ऐ मेरे मालिक! आज दिन भर मैं पहाड़ के दामन ही में बकरियां चराता रहा हूं। मैं ने कुरैश के सरदारों को पहाड़ पर आते देखा था। मैं डर गया कि वे जालिम आप का सुराग न लगा लें। 

मैं भी कान लगा कर बैठ गया। मैं ने तै कर लिया था कि अगर उन्हों ने आप को पकड़ा तो मेरी तलवार उन के सरों पर पड़ेगी। मैं ने तलवार को चमका भी लिया था, पर अल्लाह का शुक्र है कि इस की नौबत ही नहीं आयी और इधर उधर देख कर लौट गये। उन के चले जाने के बाद मेरा इरादा हुआ कि दूध ले कर हुजूर (ﷺ) के पास पहुंचु, लेकिन किस्मत ने ऐसा न करने दिया।

तुम ने बहुत अच्छा किया, हजरत अबू बक्र ने कहा, क्यों कि तुम्हारा उस वक्त आना बेहतर न था। 

आमिर ने बताया कि क़ासिद को भी लेकर उसी वक्त हाजिर हुआ, जबकि कुफ्फ़ारे मक्का शहर में चले गये थे।

फिर हजरत अब्दुल्लाह और अस्मा दोनों आ गये।। हज़रत अस्मा ने बढ़ कर खाना हुजूर (ﷺ) के सामने रख दिया।

हजरत अबू बक्र (र.अ) ने अब्दुल्लाह से पूछा, आज की रिपोर्ट क्या है? 

आज भी कुफ्फार व मुश्रिकीन तमाम जंगलों की खाक छानते फिरे, हजरत अब्दुल्लाह ने बताया, दोपहर के वक्त मक्के में वापस आये। अस्र के वक्त उन्हों ने हरम शरीफ़ में बैठ कर मश्विरे किये और करार पाया कि जो कोई हुजूर (ﷺ) और हजरत अबू बक्र (र.अ) को गिरफ्तार कर के ले आए, उसे सौ ऊंट इनाम दिये जाएंगे। चुनांचे उसी वक्त इस इनाम का एलान कर दिया गया।

इन्शाअल्लाह, कुफ्फार अपने इरादे में नाकाम रहेंगे, हुजूर (ﷺ) ने पूरे यक़ीन से यह बात कही और बताया कि अब हमें कल रात को यहां से रवाना हो जाना चाहिए।

तो क्या मैं अब्दुल्लाह से कहूं कि वह कल रात को दो ऊंटनिया ले आएं और अब्दुल्लाह बिन उरैकत को इत्तिला दे दी जाए कि वह रात को अपने ऊंट ले कर रहबरी के लिए आ जाए।

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हां, उन को हिदायत कर दो, हुजूर (ﷺ) ने इजाजत दे दी।

मेरे बेटे! तुम ने बातें सुन लीं, कल उन पर अमल करना, हजरत अबू बक्र (र.अ) ने अपने बेटे अब्दुल्लाह से कहा। 

फिर बेटी अस्मा से मुखातब हो कर कहा, कल तुम सत्तू और खजुरें थैले में भर कर लाना। मेरे कपड़े भी लेती आना।

दोनों ने एक साथ कहा, जी, बहुत अच्छा। इस के बाद सब ने बैठ कर खाना खाया।

खाने के बाद हजरत अब्दुल्लाह और अस्मा घर को लौट गये। आमिर उन के पीछे रेवड़ ले कर रवाना हुए।

हुजूर (ﷺ) ने और अबू बक्र सिद्दीक (र.अ) ने इशा की नमाज पढ़ी और एक चट्टान पर सोने के इरादे से लेट गए। सुबह आंख खुली, जरूरत से फारिग हुए, नमाज पढ़ी और फिर गार में जा घुसे।

दोपहर तक गार में बैठे रहे। जब सूरज ढल गया और जोहर की नमाज का वक्त आ गया, तो वे दोनों नमाज में लग गए।

अभी ये नमाज पढ़ ही रहे थे कि आमिर दूध ले कर आ गया।

उस ने दूध एक तरफ रख दिया और खुद भी नमाज पढ़ने लगा।

नमाज से फ़ारिग होने के बाद हजरत अबू बक्र (र.अ) ने आमिर से पूछा, कहो, आज तो कुफ्फार इस तरफ़ नहीं आए?

नहीं, आमिर ने जवाब दिया, बल्कि आज कुछ लोग यसरब, तायफ़, जद्दा और दूसरी सिम्तों में गए हैं। आम तौर से कुफ्फ़ार आज खोजने नहीं निकले।

शायद वे मायूस हो कर बैठ गए, हुजूर (ﷺ) ने कहा।

ऐसा ही लगता है, आमिर ने जवाब दिया।

फिर दोनों ने दूध पिया और दूध पी कर हजरत अबू बक्र (र.अ) ने फ़रमाया, आमिर ! देखते रहो कि कुफ्फारे मक्का कहां जाते हैं? और इस बात का खास तौर से ख्याल रखना कि यसरब की तरफ़ कितने लोग जाते हैं?

आगे कहा, आज रात हम सब यहां से रवाना हो जाएंगे और तुमको भी साथ चलना होगा। बहुत अच्छा, आमिर ने जवाब दिया।

आमिर चला गया और दोनों बुजुर्ग गार में आराम फरमाने लगे।

जब सूरज डूब गया, दोनों गार से बाहर आए और एक साफ़-सी चट्टान पर बैठ कर अब्दुल्लाह का इन्तिजार करने लगे। 

आज सफ़र १४ नबवी की ३० तारीख थीं। हर तरफ़ अँधेरा छाया

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हुआ था। झुलसी हुई चट्टानें बड़ी डरावनी लग रही थी। आसमान पर सितारे तैर रहे थे। उन की रोशनी इतनी हल्की थी कि जमीन के रहने वाले उस से फायदा न उठा सकते थे। थोड़ी देर बाद अब्दुल्लाह और अस्मा आ गये।

हुजूर (ﷺ) ने पूछा, अब्दुल्लाह ! आज कुफ्फारे मक्का क्या करते रहे ?

कुफ्फ़ारे मक्का के बड़े तो थक हार कर बैठ गए हैं, पर मुफ्लिस और लालची किस्म के लोग घोड़ों और ऊंटों पर सवार हो कर तमाम दिन मारे-मारे फिरते रहे, यहां तक कि उन का जोश भी ठंडा होता जा रहा है, हजरत अब्दुल्लाह ने जवाब दिया।

हजरत अबू बक्र (र.अ) ने पूछा, तुम ने अब्दुल्लाह बिन उरकत से कह दिया था कि वह ऊंटनियां ले कर आ जाए?

कह दिया था, अब्दुल्लाह ने जवाब दिया और बताया कि वह तमाम दिन तैयारियां करता रहा है। यकीन है कि वह अब आता ही होगा।

उसी वक्त आमिर रेवड़ ले कर आ गए। उन्हों ने आते ही दूध पेश किया।

हुजूर (ﷺ) ने दूध पिया। जब आप दूध से फ़ारिग हुए तो अब्दुल्लाह बिन उरैक़त ऊंटनियां ले कर आ गए और उनके साथ एक ऊंट भी था।

हजरत अबू बक्र (र.अ) ने पूछा, अब्दुल्लाह ! तुम तैयार हो कर आ गए?

जी हां, मैं तैयार हो कर आ गया हूँ, अब्दुल्लाह बिन उरैक़त ने जवाब दिया। 

किसी आदमी ने तुम को आते तो नहीं देखा ? हजरत अबू बक्र (र.अ) ने पूछा।

नहीं, अब्दुल्लाह का जवाब था।

किसी से तुम ने बातों-बातों में हम लोगों की रवानगी का जिक्र तो नहीं किया? यह दूसरा सवाल था।

नहीं, अब्दुल्लाह ने जवाब दिया, ऐसी गिरी हरकत की उम्मीद मुझ से न करें।

सही कहा, अबू बक्र ने तस्दीक़ दी।

अब्दुल्लाह बिन उरैक़त ने फिर कहा, मेरे ख्याल में हम को जल्द रवाना होना चाहिए। अगर हम अभी चल दें तो दिन निकलने तक काफ़ी दूर निकल जाएंगे। 

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ठीक है, जल्दी करो, हुजूर (ﷺ) ने फरमाया, जो सामान अब्दुल्लाह और अस्मा लाए हैं, उन्हें लाद लो और फ़ौरन रवाना हो जाओ।

बहुत बेहतर, हजरत अबू बक्र बोले और ऊंटनियां बिठा कर सामान लादना शुरू किया।

सामान ही क्या था, कुछ जोड़े कपड़े, कुछ चादरें, कम्बल, दो थैले. एक सस्तू का, एक खजूर का और बस।

यह सामान-था इन बुजुर्गों का।

सब से पहले हुजूर (ﷺ) एक ऊंटनी पर सवार हुए, दूसरी पर हजरत अबू बक्र बैठे। उन्हों ने आमिर को अपने पीछे सवार किया और तीसरे ऊंट पर अब्दुल्लाह बिन उरकत बैठे।

जब चारों आदमियों का यह छोटा-सा काफ़िला चलने लगा तो हजरत अस्मा की आंखों में आंसू आ गए और उन्हों ने फ़रमाया, ऐ अल्लाह ! मुसलमानों की रहनुमाई कर। मेरे बाप और खानदानी गुलाम और उन के रहबर की रहनुमाई कर। 

प्यारी बेटी ! हजरत अब बक्र ने फरमाया, अल-फिराक (जुदा होता हूँ)।

फिराक का नाम सुनते ही हजरत अस्मा की आंखों से आंसू उबल पड़े, उन्हों ने फरमाया, प्यारे बाप ! क्या तुम हमेशा के लिए जुदा हो रहे हो? 

मेरी बच्ची ! हमेशा के लिए नहीं, हज़रत अबू बक्र ने फरमाया, मैं यसरब पहुंच कर जल्द ही तुझे और तेरी छोटी बहन आइशा और तेरे भाई को बुला लूंगा। 

देखो, हम को भूल न जाना, हजरत अस्मा ने सिसकियां भरते हुए कहा।

हुजूर (ﷺ) ने फरमाया,
अस्मा न घबराओ, खुदा तुम्हारी और तुम्हारे अजीजों की हिफाजत करेगा। जब हम को इत्मीनान नसीब होगा, हम सब से पहले तुम्हें ही बुलायेंगे। 

मेरे हुजूर (ﷺ) ! याद रखिएगा, हजरत अस्मा ने कहा।

कैसे भूल सकता हूँ: हुजूर (ﷺ) ने फरमाया, अच्छा, अल-विदा। हजरत अस्मा ने फी अमानिल्लाह कहा। फिर यह छोटा सा काफिला चल पड़ा। अब्दुल्लाह और अस्मा रेवड़ हांक कर ले गए।

काफिला बड़ी खामोशी से चल रहा था। कोहे सौर से उतर कर पहाड़ का निचला मैदान ते करने लगा।

अभी ये थोड़ी दूर चले ही थे कि सामने से एक अरब आता दिखायी दिया। यह अरब कहीं दूर से आ रहा था। उस के पांव पर धूल जमी हुईं थी। 

उस ने ऊंट सवारों को देखा, फौरन ही उस की जुबान से निकला, कौन ? मुहम्मद और अबू बक्र? जरूर ये दोनों कौम से डर कर भागे जा रहे है।

अरब ने ये बातें बड़े धीरे से कहीं कि ऊंट सवारों ने न सुनीं।

वे बराबर चलते रहे, यहां तक कि कुछ दूर चल कर रात की तारीकी में गुम हो गए।

अरब मक्का की ओर बढ़ता रहा, मगर अब उस ने अपनी रफ्तार तेज कर दी।

To be continued …

इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा ….
आप हज़रात से इल्तेजा है इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे और अपनी राय भी दे … 

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