सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 11

Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 11

Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 11

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हज़रत अमीर हमज़ा इस्लाम की गोद में

इस इन्तिजाम के बाद उन्हों ने उन मुसलमानों पर जो मक्के में रह गये थे और रसूल सल्ल. की मुहब्बत की वजह से हिजरत न कर सकते थे, इतनी सख्तियां शुरू कर दी कि उन्हें जिंदगी से मौत कहीं अच्छी नजर आने लगी। 

मक्का के काफिरों ने यह कोशिश की कि मुसलमानों को खाने-पीने का सामान न मिल सके, इसलिए दुकानदारों को हिदायत कर दी कि कोई चीज किसी मुसलमान के हाथ किसी कीमत पर हरगिज न बेचें और बाक़ी पर भी पहरा बिठाया गया। इस से मुसलमानों को बेहद तकलीफ़ का सामना करना पड़ा। कई-कई दिन तक खाना न मिलता था और प्यास बुझाने को पानी भी हाथ न आता था, इसलिए वे घरों में भूखे और प्यासे छिपे बैठे रहते। 

बाहर निकलते तो आवारा और बदमाश लड़के उन के पीछे लग जाते, उन्हें मारते, गालियां देते, यहाँ तक कि कपड़े फाड़ डालते। मुसलमान बड़ी तक्लीफ़ और परेशानी में थे।

मगर वे ऐसे अकीदे के पक्के थे कि सख्तियां बर्दाश्त कर रहे थे। मुसीबतों पर मुसीबतें झेल रहे थे, लेकिन कदम न डगमगाते थे। कुफ्फ़ारे मक्का इस से और हैरान व परेशान रहते थे। 

एक दिन हुजूर सल्ल. लोगों की नजरों से छिप कर सफ़ा पहाड़ पर जा पहुंचे।

अस्र का वक्त हो गया था। आप एक वादी में नमाज पढ़ने लगे। इत्तिफ़ाक़ से अबू जहल उधर आ निकला। आप (ﷺ) को नमाज पढ़ते देख कर खड़ा हो गया और ग़ैज़ व ग़जब भरी नजरों से हुजूर (ﷺ) की तरफ़ देखने लगा। जब आप (ﷺ) नमाज से फ़ारिग हुए तो अबू जहल बढ़कर आप के पास पहुंचा और गुस्ताखी के साथ बोला, मुहम्मद ! तेरी जात ने तमाम कौम और सारे अरब को बड़े फ़ित्ने में डाल रखा है। क्यों न आज मैं तेरा खात्मा कर डालूं? 

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आप (ﷺ) खामोश रहे। किस्मत से अबू जहल की एक लौंडी भी उधर से आ निकली। वह एक चट्टान के पीछे छिप कर देखने लगी कि अबू जहल मुहम्मद (ﷺ) के साथ क्या सुलूक करता है?

जब हुजूर (ﷺ) ने अबू जहल को कुछ जवाब न दिया, तो उस ने फिर कहा, मुहम्मद , तुम ने क़ौम को बेहद मुश्किलों में डाल रखा है। आप (ﷺ) ने फ़रमाया, अबू जहल ! मैंने कौम को मुश्किलों में फंसा दिया

है या कौम ने मुझे और मुसलमानों को मुसीबत में डाल रखा है ? 

अबू जहल बोला, अगर तू इस्लाम की तब्लीग़ छोड़ दे, तो हम तुझे मक्के का बादशाह बना दें।

मैं बादशाही नहीं चाहता। आप (ﷺ) ने फ़रमाया। 

जितनी दौलत कहो, तुम्हें दे दें। अबू जहल ने कहा।

खुदा की कसम ! मुझे दौलत की परवाह नहीं है । आप (ﷺ) ने फरमाया। 

खुदा के नाम से काफ़िरों को चिढ़ थी। अबू जहल भी खुदा का नाम सुनकर फुकारे मारने लगा। खूब जी भरकर आपकी शान में गुस्ताखी की, बुरा-भला कहने लगा। हुजूर (ﷺ) खामोश बैठे रहे। अबू जहल का गुस्सा बढ़ता गया। गुस्से में आ कर एक पत्थर उठाया और अपनी पूरी ताकत से खींच मारा (नौउज़बिल्लाह)। पत्थर आप (ﷺ) की पेशानी पर पड़ा। (खून का फ़व्वारा उबल पड़ा और आप लहलुहान हो गये। 

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आप हाथ से खून पोंछते जाते थे और कहते जाते थे कि अबू जहल ! तुम मुझको जितना भी सता सकते हो, सता लो। मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं। 

अबू जहल डर गया कि कही आप (ﷺ) शहीद न हो जाएं, जिसकी वजह से बनी हाशिम खानदान उस से, उस के खानदान से, साथ ही उस के कबीले से हुजूर (ﷺ) का बदला ले ले। इसलिए वह इधर-उधर देखते हुए वहां से चल पड़ा। उस के चले जाने के बाद हुजूर (ﷺ) भी उठे और अपने मकान की ओर चल पड़े। 

अबू जहल की बांदी ने इस पूरे वाकिए को अपनी आंखों से देखा। उसे अबू जहल पर बड़ा गुस्सा आया। उस वक्त सूरज डूब गया था, अंधेरा फैल रहा था। बांदी भी खाना काबा की तरफ़ चल पड़ी। वहां उसे अमीर हमजा मिल गये। अमीर हमजा हुजूर (ﷺ) के चचा और दूध शरीक भाई भी थे। वह वही शिकार का शौक पूरा कर के खाना काबा का तवाफ़ करने आये थे।

बांदी ने अमीर हमजा से कहा, ऐ अमीर ! ठहर जाओ, मुझे आप से कुछ कहना है। 

हजरत हमजा खड़े हो गये, बोले, क्या कहना चाहती हो ?

उस ने कहा, क्या मुहम्मद (ﷺ) तुम्हारे भतीजे और दूध शरीक भाई नहीं हैं ? क्यों नहीं ? हज़रत हमजा बोले।

क्या आप को उन से मुहब्बत नहीं है ? बांदी ने पूछा। मुझे उन से बहुत ज्यादा मुहब्बत है। 

अफ़सोस है, ऐ अमीर ! बांदी ने कहा, तुम्हारे भतीजे पर लोग बेजा सख्तियां करते हैं और तुम को परवाह तक नहीं होती। अभी मुहम्मद (ﷺ) सफ़ा की पहाड़ी पर बैठे थे। अब जहल ने उन को सैकड़ों गालियां दी। जब हुजूर (ﷺ) ने जवाब न दिया, तो उस ने एक बड़ा पत्थर उठा कर उन के सर पर दे मारा। उन का सर फट गया और खून का फव्वारा बह निकला। 

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बांदी की इस बात से अमीर हमजा को जोश आ गया। बोले, मैं अभी उस कमबख्त से जा कर बदला लेता हूं।

यह कह कर वह आगे बढ़ गये। अबू जहल अपने दोस्तों में घिरा बैठा था।

अमीर हमजा अबू जहल के पास पहुंच गये, गुस्सा तो था ही, कमान उठा कर इस जोर से उस के सर पर मारी कि उस का सर फट गया, फिर गरज कर बोले, अबू जहल! सुन, मैं मुहम्मद (ﷺ)  के दीन पर ईमान लाया हूं। बोल, अगर तेरी कोई हिम्मत हो।

हज़रत हमज़ा के गुस्से और जलाल को देख कर अबू जहल कांप गया, बोला, अमीर ! मुझ से वाक़ई ग़लती हुई।

अमीर हमजा का गुस्सा ठंडा हुआ तो हुजूर (ﷺ) को देखने और तबियत मालूम करने आप के मकान की तरफ़ चल पड़े। 

वहां देखा कि हज़रत खदीजा रजि० और हजरत फातमा रजि० हजरत मुहम्मद (ﷺ) का सर धो रही हैं और कपड़े को घाव में भरने के लिए लगा रखा है। 

हजरत अमीर हमजा आप (ﷺ) के पास बैठ गये। आप ने हमदर्दी के अंदाज में कहा, मेरे प्यारे भतीजे! तुम को सून कर बहुत खुश होना चाहिए कि मैं ने बढ़कर अबू जहल से तुम्हारा बदला ले लिया और इस जोर से उस के सर  पर कमान मारी कि उस का सर फट गया।

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हुजूर (ﷺ) ने हजरत अमीर हमजा की ओर देख कर फ़रमाया – “ऐ चचा ! मुझे इस बात से खुशी नहीं हो सकती कि आप ने मेरा बदला ले लिया है, मुझे तो खुशी उस वक्त होगी, जब आप इस्लाम में दाखिल हो जाएंगे।”

हजरत हमजा हजूर (ﷺ) की हालत और हज़रत फातमा रजि० के रोने की कैफ़ियत देख कर पहले ही नर्म पड़ चुके थे, बे-अस्तियार बोले, अगर तुम्हारी यही खुशी है, तो मुझे यह भी मंजूर है, तुम मुझे मुसमलमान कर लो।

हुजूर (ﷺ) इस बात.से खिल उठे। आप अपने जख्म की टीसें भूल गए और मारे खुशी के फ़ौरन अमीर हमज़ा की तरफ़ मुतवज्जह हुए, कलिमा पढ़ाया और हजरत हमजा मुसलमान हो गये। यह वाकिआ सन ०६ नबवी का है।

नबी (ﷺ) के कत्ल का मश्विरा 

हजरत अमीर हमजा रजि० जैसे निडर और बहादुर शख्स के इस्लाम अपना लेने की खबर जंगल की आग की तरह मक्के के एक-एक घर में पहुंच गयी। 

कुफ्कारे मक्का के लिए यह बड़ा धमाका था। वे बहुत तिलमिलाये, लेकिन हिम्मत न हुई कि हजरत हमजा रजि० को कुछ कह सकें या उन्हें सता सकें। हां, उन के खिलाफ़ राजदारी से खुफ़िया मश्विरा करने लगे। 

हजरत अमीर हमजा रजि० के मुसलमान होने से आवारा लड़कों और गुंडों और बदमाशों के हौसले भी पस्त हो गये। सब ने यही समझ लिया कि अब अगर मुसलमानों को सताया गया, तो अमीर हमजा बदला लिए बिना न रहेंगे। इस लिए वे भी एहयियात करने लगे, लेकिन जब और जिस वक्त मौका पाते, सताये बिना न रहते थे।

अब फिर मुसलमान कुछ आजादी से बाजारों में आने-जाने लगे और खाने-पीने की फ़राखी हो गयी। लोगों से मिलने-जुलने लगे और तब्लीग का सिलसिला तेज हो गया।

हर मुसलमान जिस से भी मिलता, इस्लामी तालीम उस के सामने पेश करता, कुरआन मजीद की आयतें सुनाता, लोगों पर उन का असर होता। कुछ मुसलमान हो जाते और अक्सर को मुसलमानों से हमदर्दी हो जाती। इस तरह से इस्लाम धीरे-धीरे फैलने लगा।

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कुफ़्फ़ारे मक्का को इस से बड़ी चिन्ता हो गयी। उन्हों ने एक मज्लिसे शूरा बुलायी। फौरन ही तमाम लोग जमा हो गये। इज्लास शुरू हुआ। इस बार अबू सुफ़ियान को सदर बनाया गया।

अबू जहल ने कहा, अरख भाइयो ! कितने अफ़सोस की बात है कि जितना मुसलमानों को दबाने की कोशिश की गयी, उतना ही वे उभरते चले गये। जो लोग हिजरत कर के हब्शा चले गये हैं, उन की ओर से डर है कि वे कहीं हब्शा के बादशाह को मक्के पर न चढ़ा लायें। मुसलमानों का हाल यह है कि उन पर मुहम्मद (ﷺ) का जो जादू एक बार चढ़ गया, तो वह अब उतरने का नाम नहीं लेता। न जाने मुहम्मद (ﷺ) में कौन सा जादू है कि सब उस पर मोहित हो जाते हैं। 

मैं ने काहिनों से पूछा, आराफ़ से पूछा, तो वे भी इस के अलावा कुछ नहीं बताते। अबरश के पास में गया था, उस ने मुझे बताया कि अगर हम ने जल्दी न की और फ़ित्ने को दबा न दिया, तो सारा मक्का, बल्कि तमाम अरब, बल्कि दुनिया का बड़ा हिस्सा मुसलमान हो जाएगा। कितने जिल्लत और रुसवाई की बात है यह हमारे लिए।

अबू जहल ने पूरे मज्मे पर निगाह डाली। हर तरफ़ से आवाजें आयीं, नहीं, हम ऐसा नहीं होने देंगे। हम इस जिल्लत को बर्दाश्त करने के लिए जिंदा नहीं रहना चाहते। 

अबू जहल ने जोश में आ कर कहा, इस तरह से न कहो, बल्कि यह कहो कि हम अपनी जिंदगी में ऐसा वक्त न आने देंगे। फिर आवाजें आयीं, बेशक हम ऐसा वक्त न आने देंगे।

अबू जहल ने कहा, जब यह बात है, तो तै कर लीजिए कि इस्लाम का खतरा किस तरह मिटाएं, क्या उपाय करें, जिस से इस्लाम न फैलने पाये। 

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अबू जहल बोला, लगता है कि हम इस बात से डर गये हैं कि अमीरे हमजा मुसलमान हो गये, और हम ने सख्तियों  में कमी कर दी, मुसलमानों की हिम्मत बढ़ गयी। हमें चाहिए कि हम फिर पहले ही की तरह सख्तियां शुरू कर दें कि कोई मुसलमान घर से बाहर न निकलने पाये, न वे बाहर आयेंगे, न इस्लाम फैलेगा।

वलीद ने कहा, इस सिलसिले में न हम को पहले कामियाबी हुई और न अब उम्मीद है। बेहतर है कि मुसलमानों का कत्ले आम कर के उन का खात्मा ही कर दिया जाए।

उत्बा बोला, हमारा ऐसा करना, तमाम कबीलों से लड़ाई की दावत देना है, क्योंकि जो लोग मुसलमान हुए हैं, वे हर कबीले से ताल्लुक रखते हैं। यह नामुनासिब तजवीज है।

अबू जहल बोला, मैं भी इसे पसन्द नहीं करता। बेचारे आम मुसलमानों का क्या कसूर है ? उस पर तो जादू कर दिया गया है, क्यों न उस आदमी को कत्ल कर डालो, जो सब से बड़ा जादूगर है और पूरे फ़ित्ने की जड़ है। 

उमर ने कहा, यही बेहतर राय मालूम होती है।

आस बिन वाइल सहमी बोला, इस बात को सोच लो कि मुहम्मद (ﷺ) हाशिमी हैं। अगर इन के कत्ल से बनू हाशिम खानदान उठ खड़ा हुआ, तो फिर वही शक्ल होगी कि तमाम अरब कबीलों में लड़ाई शुरू हो जाएगी। 

अबू लहब ने कहा, तुम इस से मुतमइन रहो। मैं भी हाशिमी हूं। मैं अपने कबीले को काबू में रखूगा। वलीद ने संभल कर कहा, अगर यह बात है, तो अब कोई खतरा नहीं है। बस, अब मुहम्मद (ﷺ) का खात्मा ही कर डालो।

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अबू जहल ने तमाम लोगों को खिताब करते हुए कहा, बोलो, कौन अपने माबूदों, अपने मजहब, अपनी कौम की हिमायत में यह काम करने को तैयार है ?

अबू जहल की इस ललकार पर लोग खामोश हो गये। उमर को जोश आ गया और उन्होंने जोशीले अन्दाज में कहा, में इस फ़िल्ने का खात्मा कर दूंगा। मेरी तलवार बगैर मुहम्मद (सल्ल.) को खत्म किये म्यान में न जाएगी।

मज्मा उछल पड़ा। उमर की बहादुरी की तारीफ़ होने लगी। अबू जहल ने हिम्मत बढ़ाते हुए कहा, ऐ खत्ताब के बेटे उमर! मुहम्मद (ﷺ) को जब कत्ल कर के आओगे, तो मैं तुम को सौ सुर्ख ऊंट इनाम में दूंगा।

– उमर बोले, मैं किसी लालच में नहीं, बल्कि कौम की भलाई में यह काम करूंगा। अबू जहल तुरन्त बोला, यह तो सभी जानते हैं, मैं तो सिर्फ इनाम की बात कर रहा हूं। उमर ने कहा, तो खुशी से तुम्हारा इनाम कुबल करूंगा।

इस के बाद उमर उठे और हुंजूर सल्ल. के मकान की तरफ़ चल दिये। तमाम मज्मा उन की कामियाब वापसी का इन्तिजार करने लगा।

To be continued …

इंशा अल्लाह ! सीरीज के अगले पोस्ट में हम हज़रत उमर रजि० ने इस्लाम लाने के इबरतनाक वाकिये पर तफ्सील से जिक्र करेंगे

इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा …. 
आप हज़रात से इल्तेजा है इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे और अपनी राय भी दे … 

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