फतहे मक्का के बाद पूरे अरब में इस्लामी दावत व तब्लीग़ की असल हकीक़त वाजेह हो गई और लोग इस्लाम में जौक़ दर जौक दाखिल होने लगे, ऐसे मौके पर रूमी हुकूमत ने अपने लिये खतरा महसूस करते हुए मदीना पर हमले का इरादा कर लिया और उस की तय्यारियाँ शुरू कर दी।
शाम से आने वाले एक क़ाफले ने मुसलमानों को इस की इत्तेला दी। रूम की सलतनत आधी दुनिया पर हुकूमत करती थी और उस ज़माने में सबसे बड़ी ताक़त शुमार होती थी, इस लिये मुसलमान बहुत परेशान थे। एक तरफ बे सरो सामानी की हालत और अरब की सख्त गरमी ज़ोरों पर थी और दूसरी तरफ दूर दराज़ का सफर था। मगर ख़ामोश बैठना भी किसी तरह मुनासिब नहीं था। चुनान्चे रसूलुल्लाह (ﷺ) ने जंग की तय्यारी का एलान कर दिया और माहे रजब सन ९ हिजरी में तीस हजार के लश्कर को ले कर आप तबूक के लिये रवाना हुए। मुसलमानों के इस दीलेराना इझदाम की वजह से रूमियों पर बड़ा असर हुआ और उन्होंने हमला करने का इरादा छोड़ दिया और बहुत सारे कबीले के सरदारों ने सुलह कर ली।
यहाँ एक माह कयाम करने के बाद रसूलुल्लाह (ﷺ) बगैर जंग किए फतहमन्दी के साथ मदीना वापस हो गए। यह आप की जिन्दगी का आखरी गजवा था।
To be Continued …
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