Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 3
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अरब का चमकता सूरज
अरब का सूरज हजरत मुहम्मद सल्ल० अबू तालिब से विदा होकर मक्का में अपने मकान पर आये। मकान क्या था, कुछ कच्चा था, कुछ पत्थर का बना हुआ एक अहाता था। भीतर कुछ कमरे बने हुए थे, जिन की छत इतनी नीची थी कि खड़ा होने से छुई जा सकती थी।
जिस वक्त आप सल्ल० मकान के अहाते के अन्दर दाखिल हए तो आप की प्यारी बीबी हजरत खदीजा दौड़कर स्वागत के लिए आयीं। वह आप के चेहरे पर जलाल देखकर हैरान रह गयीं।
आप कुछ न बोले सीधे एक कमरे में चले गये। हजरत खदीजा भी पीछे-पीछे पहुंचीं। उन्होंने पूछा, मेरे सरताज ! आज क्या बात है ? तबियत पर क्यों बोझ महसूस कर रहे हैं ? आपने खजूर की चटाई पर लेट कर फ़रमाया, ‘मुझे कम्बल ओढ़ा दो, मुझे कम्बल ओढ़ा दो।’
हजरत ख़दीजा ने तुरन्त कम्बल ओढ़ा दिया और उन के करीब बैठकर चिता में डूब गयीं। हजरत खदीजा को प्यारे नवी सल्ल० से बेहद मुहब्बत थी। उन्हें सल्ल० की यह हालत देख कर बड़ी फ़िक्र हो गयी थी और हर कीमत पर जानना चाहती थीं कि क्या हुआ ?
लेकिन हुजूर सल्ल० कम्बल ओढ़े खामोश लेटे रहे। उन्हें सल्ल० से हर बात मालूम करने की हिम्मत न हो सकी। थोड़ी देर बाद आप ने कम्बल उतारा और उठ बैठे।
हजरत खदीजा की जान में जान आयी। उन्हों ने पूछा, अब आप की तबियत कैसी है?
हजरत सल्ल. ने फ़रमाया, अच्छी है। फिर कहा, खदीजा! आज एक अजीब बात हुई है। खदीजा ने हुजूर सल्ल० के चेहरे को गौर से देखा, पूछा, मेरे सरताज ! क्या वाक़िआ है?
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फ़रिश्ते जिब्रईल अलैहि सलाम से पहली मुलाकात
आप सल्ल० ने फ़रमाया, मैं गुफा में बैठा था कि एक खूबसूरत शख्स, पाक कपड़े पहने हुए जाहिर हुआ। मैं बे-अख्तियार उस के इस्तेकबाल के लिए खड़ा हो गया। उस ने मेरे पास आकर कहा, ‘इकरा’ (पढ़ो)! मैं ने कहा, मैं पढ़ना नहीं जानता।
उस शख्स ने मुझे पकड़ कर भींचा और कहा, पढ़ो! मैं ने फिर वही जवाब दिया। उस ने तीसरी बार मुझे पकड़ कर जोर से भींचा और फिर छोड़कर कहा, ‘ईकरा बिस्मि राम्बिकल्लजी ख-लक्र’ यानी पढ़ रब के नाम से, जिस ने कायनात को पैदा किया, जिस ने इन्सान को गोश्त के लोथड़े से पैदा किया, पढ़, तेरा रब बड़ा.करीम है, वह जिस ने इन्सान को कलम के जरिए से इल्म सिखाया, वह जिस ने इन्सान को बातें सिखायीं, जो उसे मालूम न थीं।
मैं डर सा गया। वह शख्स चला गया। खदीजा.! क्या यह अजीब बात नहीं है ?
हजरत खदीजा ने कहा, बेशक यह अजीब बात है। पर हुजूर इस से परेशान क्यों हैं ? आप सल्ल० ने फ़रमाया, इस लिए कि मुझे अपनी जान का खतरा पैदा हो गया है।
हजरत खदीजा ने दिल रखने के तौर पर फ़रमाया, नहीं, नहीं आप को खुश होना चाहिए। अल्लाह की क़सम ! अल्लाह आप को कभी रुसवा न करेगा, क्योंकि आप हमेशा रिश्तों को जोड़ते हैं, सच बोलते हैं, गरीबों के खर्च पूरे करते हैं। आप में वे तमाम खूबियां हैं जो औरों में नहीं पायी जातीं। आप मेहमान नवाज हैं और हक बात और नेक कामों की वजह से अगर किसी पर कोई मुसीबत आ जाए, तो आप उस की मदद फ़रमाते हैं।
आप चुप हो गये और सिर उठा कर कुछ सोचने लगे।
हजूर सल्ल० से हजरत खदीजा को बेहद मुहब्बत थी। आप की खामोशी से उन के दिल ने बड़ा असर कुबूल किया। उन्होंने कहा हुजूर! मेरे साथ वरका बिन नौफल के मकान तक चल सकते हैं ?
आप ने पूछा, किस लिए? हजरत खदीजा ने कहा, आप जानते हैं कि वह वरका तोरात व इंजील का माहिर है। अरबी भाषा जानता है। बड़ा आलिम है। वह बता देगा कि क्या बात हुई ? और आप पर किसी किस्म का अंदेशा तो नहीं है?
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वरका बिन नौफ़ल हजरत खदीजा के चचेरे भाई थे। तोरात और इन्जील के माहिर थे। अरबी और इबरानी भाषाओं को खूब अच्छी तरह जानते थे। बड़े अक्लमन्द और दूरंदेश थे। ईसाई मजहब की तरफ़ रुझान था। जब मक्का में कोई बहम वाकिआ होता तो उन से मश्विरा किया जाता था।
आपने सल्ल० फ़रमाया, क्या अभी चलने का इरादा है ?
हजरत खदीजा ने कहा, हुजूर ! मुझे आप को देख कर चिन्ता हो गई है। बेहतर तो यही है कि इसी वक्त तशरीफ़ ले चलिए।
आप सल्ल० ने फ़रमाया, अच्छा चलो! दोनों वरका के मकान पर पहुंचे।
वरका से मुलाकात होने पर हज़रत खदीजा ने वह पूरा वाकिया, जो हुजूर सल्ल० ने उन से बयान किया था, बयान करना शुरू किया।
वरका बड़े गौर और तवज्जोह से सुनते रहे। जब हजरत खदीजा सब कुछ सुना चुकी तो वरका ने कहा, ऐ मुहम्मद सल्ल० ! मैं आप को मुबारकबाद देता हूं। यह वही नामूसे अक्बर है, जो हजरत मूसा पर नाजिल हुआ था।
आप सल्ल० ने फ़रमाया, जरा इस बात को और खोलिए।
वरका ने कहा, मुहम्मद सल्ल० ! सुनो, तुम को खुदा ने नुबूवत के लिए चुन लिया है। तुम आखिरी पैग़म्बर होंगे। तुम वह पैगम्बर हो, जिस की खुशखबरी तोरात व इन्जील में मौजूद है। आप की उम्मत पूरी दुनिया में फैल जाएगी।
हुजूर सल्ल० ने पूछा, क्या खुदा मेरे जरिए स कोई नया मजहब फैलायेगा?
वरका ने जवाब दिया, आप इब्राहीमी मजहब के अलमबरदार होंगे।
ऐ काश ! मैं जवान होता और उस वक्त तक जिंदा रहता जब कि आप इस्लाम की तब्लीग करें और जब आप को आप की क़ौम आप के वतन से निकाले।
हजूर सल्ल० को यह सुन कर बड़ा ताज्जुब हुआ। आप ने पूछा, मेरी कौम क्या मुझे निकाल देगी ?
वरका ने कहा, हां, दुनिया में जब कोई रसूल हो कर आया, जिस ने तौहीद की तालीम पेश की, उस के साथ उस की कौम ने दुश्मनी का ही बर्ताव किया है। आप के साथ भी यही होगा।
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आप सल्ल० ने फिर पूछा, मगर वह कौन शख्स था, जिस ने तीन बार भींचा।
वरका ने कहा, वह फ़रिश्ता था, खुदा का पैगाम लाने वाला जिब्रइल ऐ अमीन। वही नबियों पर आते रहते हैं। आप सल्ल० ने पूछा, इस से मुझे जान का अन्देशा तो नहीं है।
वरका ने जवाब दिया, बिल्कुल इत्मीनान रखिए। अल्लाह आप का हामी और मददगार रहेगा। आप को वरका की बातों से इत्मीनान हुआ। आप ने कहा, अगर अल्लाह मेरा हामी व मददगार है, तो मुझे किसी चीज का डर नहीं।
वरका ने कहा, आप पर किताब नाजिल होगी और जो कुछ नाजिल हो, मुझे सुनाते रहना।
आप सल्ल० ने फ़रमाया, अगर अल्लाह ने चाहा, तो में जरूर सुनाता रहूंगा।
चूंकि अब हजूर सल्ल० की तबियत संभल गयी थी, आप सल्ल० को इत्मीनान हो गया था, हजरत खदीजा की फ़िक्र भी खत्म हो गयी थी, इसलिए हजूर सल्ल० और हजरत खदीजा दोनों उठे और वरका बिन नौफल को सलाम करके उस के मकान से बाहर निकल कर अपने घर की ओर चल पड़े।
वह्यी का उतरना
हुजूर सल्ल० और हजरत खदीजा अपने मकान पर तशरीफ़ लाये। कुछ खजूरें खा कर सो गए। सुबह जागते ही कुछ खजूरें, एक छागल में थोड़ा पानी ले कर घर से चले। चूंकि अबरश ने मक्का के तमाम बाशिंदों को बता दिया था कि उन के बाप-दादा के मजहब के खिलाफ़ और उन के खुदाओं के खिलाफ़ हजरत मुहम्मद सल्ल० ही होंगे जो आवाज उठाएंगे, इस लिए हर अरब के दिल में हुजूर सल्ल० की ओर से खौफ़ पैदा हो गया था और हर आदमी आप को गुस्से भरी नजरों से देखने लगा था।
लेकिन सल्ल० अपनी नजरें नीचे किये चलते और इस की परवाह भी न करते कि कौन किस जज्बे से आप को घूर रहा है।
चुनांचे हुजूर सल्ल० इस शान से निकले कि मुबारक कंधे पर एक तरफ़ सत्तू का थैला लटका हुआ था, दूसरी तरफ़ खजूरों का। बाएं कंधे पर काला ऊनी कम्बल पड़ा था। हाथ में पानी की छागल थी। साफ़ लग रहा था कि सल्ल० कहीं सफर पर जा रहें हैं।
लोगों ने आप को देखा, तेज नजरों से देखा, गजब भरी नजरों से देखा, पर हुजूर सल्ल० ने किसी की तरफ़ भी न देखा। आदत के मुताबिक़ सिर झुकाये चलते रहे। जब बैतुलहराम के पास गये, तो तवाफ़ किया और मक्का से निकल कर जबले नूर की तरफ रवाना हुए।
पहाड़ सामने ही नजर आ रहा था, मक्के से तीन मील की दूरी परं पहाड़ सूखे थे, न कहीं पेड़, न पौधे, स्याह जला हुआ पहाड़ लग रहा था। आप पहाड़ पर पहुंच कर एक गार में उतरे। गार ज्यादा बड़ा न था, लगभग पौने दो गज चौड़ा और चार गज लम्बा। एक ऊंची चट्टान गार के ऊपर ऊठी हुई थी। उस चट्टान की वजह से ग़ार के भीतर न धूप की तेजी का पता चलता था, न वहां गर्म हवाएं पहंचती थीं।
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उस गार का नाम गार ऐ हिरा था। हुजूर सल्ल० का दिल आबादी से उचाट हो गया था। इस लिए तंहाई अपना ली थी। कई दिन आप उसी गार में रहे। जब सत्तू और खजूरें खत्म हो गयीं, तो सल्ल० मकान पर तशरीफ़ ले आये, दूसरे दिन फिर सत्तू और खजूरें ले कर चले गये। कुछ दिन फिर तन्हा रहे। फिर जब सत्तू और खजूरे खत्म हो गयीं, तो मक्का वापस हुए।
अभी सल्ल० सफ़ा और मरवा तक ही पहुंचे थे कि वही शख्स आप को फिर मिला, जिसने पहले आप को पकड़ कर भींचा था।सफ़ेद कपड़ों में लिपटा वह हुजूर सल्ल० का रास्ता रोक कर खडा हो गया। सल्ल० ने पूछा, तुम कौन हो ? उस ने जवाब दिया, आप अल्लाह के रसूल हैं और मैं जिब्रईल हूँ।
हुजूर सल्ल० ने हैरत भरी नजरों से जिब्रईल को देख कर कहा फ़रिश्ता जिब्रईल!
हां, फ़रिश्ता जिब्रईल, वह फ़रिश्ता जो तमाम नबियों के पास आता रहा है। ऐ अल्लाह के रसूल ! अब मैं तुम्हारे पास भेजा गया हूं।
क्या मैं खुदा का रसूल हूं? हुजूर सल्ल० ने पूछा।
हां, आप खुदा के रसूल हैं। खुदा ने आप को चुन लिया है।
मैं तो उम्मी हूँ। लिखना-पढ़ना बिल्कुल नहीं जानता।
खुदा की यही मस्लहत है, जिब्रील ने कहा।
हुजूर सल्ल० के देखते ही देखते हजरत जिब्रईल गायब हो गये। हुजूर सल्ल० घबराये, चेहरे पर पसीना आ गया।
आप जल्दी-जल्दी चल कर अपने मकान में दाखिल हो गये। हजरत खदीजा ने आप को देखा। देखते ही वह समझ गयीं कि आज फिर कोई बात हुई है।
आप कमरे में जा कर चारपाई पर लेट गये और हजरत खदीजा से फ़रमाया कि मुझे कम्बल उढ़ा दो।
हजरत खदीजा ने कम्बल उढ़ा दिया। अभी आप को लेटे हुए थोड़ी देर गुजरी थी कि एक जलाल भरी आवाज़ आयी, ‘ऐ चादर में लिपटे हुए, उठो और लोगों को अल्लाह के अजाब से डराओ, और अपने रब की बड़ाई और बुजर्गी बयान करो, पाकदामनी अख्तियार करो और शिर्क की गन्दगी से बचो।’
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आप सल्ल० घबरा कर उठे। आप के देखते ही देखते हजरत जिब्रईल गायब हो गये। आप सल्ल० ने अपनी प्यारी बीवी की तरफ़ देखा। हजरत खदीजा पास ही बैठी थीं, दुखी और गम में डूबी हुई। आप को उठते देखा, तो कह बैठी, मेरे सरताज क्या बात है?
हुजूर सल्ल० ने हजरत खदीजा को पूरी बात बतायी, तो बोली, वरका ने सच कहा था कि आप पर खुदा का पैगाम नाज़िल होगा और आप अल्लाह के रसूल होंगे।
आप सल्ल० ने फ़रमाया, लेकिन खदीजा ! मुझे अपनी क़ौम से डर है। मुझे जो खुदा हुक्म देगा, वह करूंगा, पर डर है शायद मेरी कौम न माने। हजरत खदीजा ने कहा, यह डर तो है, लेकिन क्या आप कौम के डर से खुदा के हुक्मों को पूरा करने से बचेंगे?
आप सल्ल० ने फ़रमाया, कभी नहीं। लेकिन मैं नहीं जानता कि खुदा हुक्म देगा और मैं किस तरह उस का हुक्म पूरा कर सकूंगा?.
हजरत खदीजा ने कहा, अल्लाह ने फ़रमाया है कि लोगों को उस के अजाब से डराओ, उस की बुजुर्गी और बड़ाई बयान करो।
बेशक खुदा ने फ़रमाया, लेकिन आज अरब का पूरा इलाका बुतों को पूजता है, मेरी आवाज कौन सुगेगा? यक़ीनन हर आदमी, हर क़बीला, सारा हिजाज़ और सारा अरब मेरा दुश्मन हो जाएगा। मैं तन्हा किस किस का और किस तरह से मुकाबला करूंगा?
बेशक एक आदमी का नहीं, एक खानदान का नहीं, एक कबीले का नहीं, सारे अरब का मुकाबला करना होगा। हजरत खदीजा ने कहा।
प्यारे नबी बोले – मगर कुछ हो खदीजा! मैं मुकाबला करूंगा। खुदा की मदद के भरोसे पर मुकाबला करूंगा। क्या खुदा मेरी मदद न करेगा?
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जरूर करेगा, हजरत खदीजा बोलीं, लेकिन हुजूर सल्ल० ! अरब बड़े संगदिल होते हैं। जिन बुतों को वे और उन के बाप-दादा पूजते रहते थे, वे कैसे छोड़ देंगे, उन की बुराइयां सुन सकेंगे? क्या आप को मालूम नहीं कि अबरश ने मक्का वालों के दिल में आप की तरफ़ से बुराई पैदा कर के उन को आप के खिलाफ़ भड़का दिया है।
मुझे मालूम है, आप सल्ल० ने कहा, मगर अल्लाह का पैगाम अल्लाह के बन्दों तक ज़रूर पहंचाऊंगा। इस के बाद आप चुप हो गये।
हजरत खदीजा के दिल पर इस का बड़ा असर हुआ, इसलिए कि वह जानती थीं और खूब अच्छी तरह जानती थीं कि हज़र सल्ल० जो कहते हैं, वही करते हैं, जो करते हैं, वही कहते हैं और जो वायदा करते हैं, उसे पूरा भी करते हैं।
लोग सदियों से बुतो की पूजा करते चले आरहे हैं। जिस वक्त भी आपने बुतों के खिलाफ़ कुछ भी कहा, आप को कोई छोड़ेगा नहीं सब आप पर टूट पड़ेंगे और सारी कौम का मुकाबला आप सल्ल० को अकेले करना पड़ेगा।
इस ख्याल ने हजरत खदीजा को दुखी कर दिया और आप काम में लग गयी।
To be continued …
इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा ….
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