दुनिया का तज़किरा न करो रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़र्माया: "अपने दिलों को दुनिया की याद में मशगूल न करो।" 📕 कंजुल उम्माल, हदीस ६१५०
सिर्फ दुनिया की नेअमतें मत मांगो कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है : “जो शख्स (अपने आमाल के बदले में) सिर्फ दुनिया के इनाम की ख्वाहिश रखता है (तो यह उस की नादानी है के उसे मालूम नहीं) के अल्लाह तआला के यहाँ दुनिया और आखिरत दोनों का इनाम मौजूद है (लिहाजा अल्लाह से दुनिया और आखिरत दोनों की नेअमतें मांगो) अल्लाह तुम्हारी दुआओं को सुनता और तुम्हारी निय्यतों को देखता है।” 📕 सूरह निसा 134
दुनिया की जेब व जीनत तुम पर खोल दि जाएगी अबी सईद (र.अ) से रिवायत है के, रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया : "मुझे तुम लोगों के बारे में जिस चीज़ का सब से ज़ियादा डर है, वह दुनिया का बनाव सिंघार है, जो तुम पर खोल दिया जाएगा।" 📕 बूखारी, हदीस : १४६५
दुनिया की नेअमतों का खुलासा रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : “तुम में से जिस शख्स को सेहत व तन्दुरुस्ती हासिल हो और अपने घर वालों की तरफ से उस का दिल मुतमइन हो और एक दिन का खाना उस के पास मौजूद हो, तो समझलो के दुनिया की तमाम नेअमत उसके पास मौजूद है।” 📕 इब्ने माजा : ४१४१
दुनिया में चैन व सुकून नहीं है रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया: "खबरदार ! दुनिया के बारे में जो कुछ मैं जानता हूँ, अगर तुम भी जानने लगो, तो तुम्हें कभी दुनिया में चैन नसीब न हो।" 📕 मुस्तदरक हाकिम : ६६४०
दुनिया में लगे रहने का वबाल दुनिया में लगे रहने का वबाल रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया : "जो शख्स अल्लाह का हो जाता है तो अल्लाह तआला उस की हर जरूरत पूरी करता हैं और उस को ऐसी जगह से रिज्क देता हैं के उस को गुमान भी नहीं होता। और जो शख्स पूरे तौर पर दुनिया की तरफ लग जाता है, तो अल्लाह तआला उस को दुनिया के हवाले कर देते हैं।" 📕 कन्जुल उम्माल: ६२७०
दुनियादार का घर और माल रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "दुनिया उस शख्स का घर है, जिसका (आखिरत में) कोई घर नहीं हो और (दुनिया) उस शख्स का माल है जिस का आखिरत में कोई माल नहीं और दुनिया के लिये वह शख्स (माल) जमा करता है जो नासमझ है।" 📕 मुस्नदे अहमद: २३८९८, अन आयशा (र.अ)
दुनिया से बेरग़बती पैदा करना रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया: "मौत का (जिक्र) दुनिया से बेगरगबती करने और आखिरत की तलब के लिये काफी है।" 📕 शोअबुल ईमान: १०१५९
गुनाह से न रोकने का वबाल रसूलल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "जो आदमी ऐसे लोगों के दर्मियान रह कर गुनाह के काम करता हो के वह उस को रोकने पर कादिर हों, मगर फिर भी न रोकें तो अल्लाह तआला मरने से पहले उन को भी उस गुनाह के अज़ाब में मुब्तला कर देगा।" 📕 अबू दाऊद: ४३३९-हसन
दुनिया की जाहिरी हालत धोका है कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है : "यह लोग सिर्फ दुनियावी ज़िंदगी की ज़ाहिरी हालत को जानते हैं और यह आख़िरत से बिल्कुल ग़ाफिल हैं।" (यानी इन्सान सिर्फ दुनिया की चीजों को जानते और उसी को हासिल करने की फिक्र में लगे रहते हैं, उन्हें पता ही नहीं है के इस के बाद दूसरी जिंदगी आने वाली है और वह हमेशा हमेशा की जिंदगी है, लिहाजा दुनिया में लगने के बजाए आखिरत की तय्यारी में मशगूल रहना चाहिये।)" 📕 सूरह रूम : ७
दुनिया का कोई भरोसा नहीं रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : “इस दुनिया की मिसाल उस कपड़े की सी है, जिस को शुरू से काट दिया जाए और आखीर में एक धागे पर लटका हुआ रह जाए, तो वह धागा कभी भी टूट सकता है। (इसी तरह इस दुनिया का कोई ठिकाना नहीं, कभी भी खत्म हो जाएगी)।” 📕 शोअबुल ईमान: १८७५
अनकरीब दुनिया खोल दी जाएगी रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : “अनकरीब दुनिया की दौलत तुम पर खोल दी जाएगी, यहाँ तक के तुम अपने घरों को इस तरह आरास्ता करोगे जैसे काबा शरीफ़ को आरास्ता किया जाता है।” 📕 तिबरानी कबीर : ४०३५
दुनिया के लालची अल्लाह की रहमत से दूर होंगे रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : "क़यामत करीब आ चुकी है और लोग दुनिया की हिर्स व लालच और अल्लाह तआला की रहमत से दूरी में बढ़ते ही जा रहे हैं।" खुलासा : कयामत के करीब आने की वजह से लोगों को नेकी कमाने की जियादा से जियादा फ़िक्र करनी चाहिये, लेकिन ऐसा करने के बजाए वह दुनिया की लालच में पड़ कर अल्लाह की रहमत से दूर होते जा रहे है। 📕 मुस्तदरक : ७९१७
दुनियावी ज़िन्दगी धोका है दुनियावी जिन्दगी एक धोका है कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है : "दुनियावी ज़िन्दगी तो कुछ भी नहीं सिर्फ धोके का सौदा है।” 📕 सूरह आले इमरान : १८५ “ऐ लोगो! बेशक अल्लाह तआला का वादा सच्चा है, फिर कहीं तुम को दुनियावी जिन्दगी धोके में न डाल दे और तुम को धोके बाज़ शैतान किसी धोके में न डाल दे, यकीनन शैतान तुम्हारा दुश्मन है। तुम भी उसे अपना दुश्मन ही समझो। वह तो अपने गिरोह (के लोगों) को इस लिये बुलाता है के वह भी दोज़ख वालों में शामिल हो जाएँ।” 📕 सूरह फातिर ५ ता ६ "ऐ इन्सान ! तुझे अपने रब की…
हराम माल से सदक़ा करने का गुनाह रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: "जब तू माल की ज़कात अदा कर दे, तो जो (वाजिब) हक़ तुझ पर था, वह तो अदा हो गया (आगे सिर्फ नवाफिल का दर्जा है) और जो शख्स हराम तरीके (सूद रिश्वत वगैरह) से माल जमा कर के सदका करे, उस को उस सदके का कोई सवाब नहीं मिलेगा, बल्के उस हराम कमाई का वबाल उस पर होगा।" 📕 इब्ने हिब्बान : ३२८५
MD. Salim Shaikh
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