माँ की नाफरमानी की सजा! अल्लाह के वली का इबरतनाक वाकिआ | Story of Juraij (Rh.) and his Mother

Story of Juraij (Rh.) and his mother

वालिदैन की इता’अत क्या दर्ज़ा रखती है और इनकी नाफ़रमानी का नातीज़ा क्या होता है चाहे इंसान कितना ही नेक हो। आइये इसके ताल्लुक से एक वाकिये पर गौर करते हैं।

रसूलअल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) फरमाते हैं के:
हमसे पिछली उम्मत में एक नेक शख़्स थे जो अल्लाह के वली थे, जिनका नाम जुरैज़ था। उन्होन एक गिरजा तामीर किया था और उसमें वो अल्लाह की इबादत किया करते थे, नमाज अदा करते थे।

एक मरतबा हुआ यूं कि जुरैज अपनी नमाज में थे तब उनकी वालिदा (माँ) आई और उन्हें आवाज दी के “ऐ जुरैज, ऐ जुरैज आओ मैं तुमसे मिलने आई हूं।”

जुरैज नमाज पढ़ रहे थे जो कि नफली नमाज थी, उन्होंने सोचा के नमाज मुकम्मिल कर के ही वालिदा से जा कर मिल लेता हूं। लेकिन नमाज़ ख़तम होने तक वालिदा नाराज़ होकर चली गई।

फ़िर दूसरी मरतबा यहीं हुआ। इस बार भी वालिदा ने आवाज़ दी “ऐ जुरैज़! ऐ जुरैज़! मैं मिलना चाहती हूँ तुमसे” जुरैज फिर अपनी नमाज में लगे हुए, सोचा के अपनी नमाज मुकम्मल कर लेता हूं और फिर जाकर मिल लूंगा।

तिसरी मरतबा भी यही हुआ। वालिदा फिर आई और जुरैज को आवाज दी, जुरैज इस वक्त भी अल्लाह की इबादत में थे, और मां नाराज हो गई फिर कहा के “ऐ जुरैज! तू तवायफ़ो का मुँह देखे” ऐसी बद-दुआ देकर वहा से चली गई।

आगे आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) फरमाते हैं:
जुरैज की जो मकबूलियत थी, इनकी जो इबादत थी इस से लोग जलते थे और लोग वैसे ही जुरैज पर इल्जाम लगाना चाहते थे। लिहाजा कौम के शर्र पसंद लोगो ने एक मनसूबा किया, उन्होने एक बुरी (फाहेशा) औरत को तैयार किया जो लोगों से मुह काला करती थी।

उस औरत ने जुरैज के गिरजा के बाहार एक चरवाहा था उससे अपना मुंह काला करती रही, जिस से उसको हमल ठहर गया और उससे एक औलाद हुई जो ज़िना की थी। जब उसको एक औलाद हुई तो औरत ने लोगों से कहा के “ये औलाद जुरैज की है।”

जब बस्ती में ये बात चली तो लोगों ने आकार जुरैज़ को बेताहाशा मारना शुरू कर दिया, हत्ता के उसका गिरजा भी तोड़ दिया और मारते-मारते उसे बादशाह (वक्त के हाकीम) के पास ले गए।

जब वहा पूछा तो जुरैज ने कहा के “बताओ तो सही क्यों मारते हो?”

लोगों ने कहा के “तुम्हें एक औलाद है, तुमने मुंह काला किया है किसी औरत के साथ।”

तो जुरैज ने कहा के ‘उसे लाओ तो सही, वो औरत कौन है।’ (जुरैज़ की वालिदा की बद्दुआ हुई और जुरैज़ को बुरी औरत का मुंह देखना पड़ा।)

जुरैज ने कहा ठीक है मुझे नमाज पढ़ने दो, उन्होंने दो रकात नमाज पढ़ी और उसके बाद जुरैज ने उस लड़के से कहा “ऐ लड़के बता तेरा बाप कौन है।”

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उस लड़के को ज़ुबान दी और उसने कहा के “मेरा बाप! वो चरवाहा है।”

उस नन्हे बच्चे के बोल सुनकर लोगो को बड़ी नदामत हुई, उस चारवाहे को सज़ा दी गई और लोगो ने कहा के “ऐ जुरैज! चाहो तौ तुम्हारा गिरजा हम वापस बना देते हैं वो भी सोने का।”

जुरैज़ ने कहा के “नहीं! सोने का नहीं! मुझे जैसा था वैसा ही बनाकर दे दो।”

📕 सहिह अल-बुखारी 1206,
📕 सहिह अल-बुखारी 2483,
📕 सहीह मुस्लिम, 2550

सबक:

1) इस वाकिये में सबसे पहला सबक ये मिलता है के “एक वली के हक में भी माँ अगर बद्दुआ कर दे तो अल्लाह कबूल कर लेता है। इसलिए क्योंकि अल्लाह के पास इनका बहुत ऊंचा मुकाम है। ये दुआ दे तो क़बूल, बददुआ दे तो क़बूल, चाहे आपकी शख़्सियत कुछ भी रहे। सुभानअल्लाह!!!

2) दूसरा सबक ये पता चलता है ‘एक मामूली सी लरजिश जो जुरैज से हुई उसका इतना अज़ीम नुक्सान उन्हें हुआ के अल्लाह रब्बुल इज्जत ने इतनी बड़ी आजमाइश में डाल दिया जुरैज को।

ये उनकी बिल्कुल भी मामुली सी गलती थी, अल्लाह रहम करे ऐसी गलती तू आज हम में से कौन नहीं करता? हमारे वालिदैन हज़ार मरतबा आवाज़ देते हैं लेकिन फिर भी हम उन्हें नज़रअंदाज़ करते रहते हैं। अल्लाह मुअफ़ करे हमें।

3) इस वाकिये से तिसरा और अहम सबक जो हमें मिलता है वो ये है “नफील इबादत पर वालीदैन की खिदमत को तर्जी देना चाहिए।”

इन शा अल्लाह-उल-अज़ीज़! अल्लाह तआला हमें अपने वालीदीन का फरमाबरदार बनायें,
हमें कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक अता फरमाये. आमीन! अल्लाहुम्मा अमीन।

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