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Islamic 12 Month
مُحَرَّم
صَفَر
رَبِيع ٱلْأَوَّل
ربيع الثاني or رَبِيع ٱلْآخِر
جُمَادَىٰ ٱلْأُولَىٰ
جُمَادَىٰ ٱلْآخِرَة
رَجَب
شَعْبَان
رَمَضَان
شَوَّال
ذُو ٱلْقَعْدَة
ذُو ٱلْحِجَّة
Islami 12 Maah
Muharram
Safar
Rabiul Awwal
Rabiul Akhir
Jamadi-ul-Awwal
Jumaada Al-Akhir
Rajjab
Shaban
Ramzan
Shawwal
Zil Qad
Zil Hajj
इस्लामी 12 महीने
01). मुहर्रम
02). सफ़र
03). रबीउल अव्वल
04). रबीउल आखिर
05). जमादी-उल-अव्वल
06). जुमादा अल-अखिर
07). रज्जब
08). शाबान
09). रमजान
10). शव्वाल
11). ज़िल क़दा
12). ज़िल हज
इस्लामी 12 महीने:
गुण और उनके एहकाम
1 – मुहर्रम
हदीस शरीफ़ में है सबसे अफ़ज़ल रोज़ा रमज़ान के बाद मुहर्रम के महीने का है और अफ़ज़ल नमाज़ फ़र्ज़ नमाज़ के बाद तहज्जुद की नमाज़ है। (मुस्लिम)
एक रिवायत में है मुहर्रम में रोज़ा रखो। अल्लाह ने पिछली कौमों के गुनाह इस महीने में बखशे हैं और आगे भी अल्लाह कई कौमों के गुनाह बख्शेगा। (मुसनद अहमद तिर्मिज़ी)
हज़रत मूसा (अ.स) और उनकी कौम को जिसकी संख्या छ लाख थी इसी मुबारक महीने की दसवीं तारीख़ को फ़िरऔन की गुलामी से नजात मिली थी और फ़िरऔन व उसकी लाखों सेना मिस्र के दरिया में इसी दिन डुबो दी गया थी। हज़रत मूसा (अ.स) ने इसी दिन शुक्राने का रोज़ा रखा था। नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया – हम भी हज़रत मूसा (अ.स) की इक्तदा में रोज़ा रखेंगे (बुखारी)
चुनांचे आप (ﷺ) और सहाबा किराम 10 वीं मुहर्रम को बराबर रोज़ा रखा करते थे। एक रिवायत में है कि 9 मुहर्रम का भी रोज़ा रखो और 10 का भी ताकि यहूदियों के ख़िलाफ़ हो जाए।
10 वीं मुहर्रम के दिन को आशूरा का रोज़ा कहते हैं इस दिन के रोज़े का इतना सवाब है कि उसकी वजह से एक साल के गुनाह माफ़ किए जाते है।
अफ़सोस है इस ज़माने के नाम के मुसलमान इस मुबारक महीने में रस्मे ताजियादारी करते हैं जो सरासर शिर्क व बुतपरस्ती है। ताजिए का सबूत न कुरआन में है न हदीस में और किसी इमाम ने भी इसके लिए कोई फ़तवा नहीं दिया है। यह खुली बुत परस्ती है अल्लाह इस तरह के नाम के मुसलमानों को समझ दे। (आमीन)
जो आदमी आशूरा के दिन अपने घर वालों पर खाने-पीने में खुले दिल से काम ले, यानी अच्छा खिलाए पिलाए अल्लाह उसके घर साल भर रोज़ी में बरकत देगा (तर्गीब) लेकिन यह रिवायत बड़ी ही कमज़ोर है।
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2 – सफर
इस महीने की कोई खास विशेषता कुरआन व हदीस में नहीं आयी है और न कोई खास इबादत इस महीने में है हां, नबी ﷺ हर महीने की 13, 14, 15 तारीखों में रोज़ा रखते थे इस वजह से इन तारीखों का रोज़ा रखना मसनून है।
आज कल बिदअती हज़रात इस महीने तेरा तेजी मनाते हैं और शादी ब्याह करने को अशुभ समझते हैं और आखिरी बुध मनाते हैं और चने को उबाल कर खाने और बांटने को सवाब जानते हैं ये चीजें बिदअत (गैर शराई) हैं और नबी (ﷺ) को बिदअत से बड़ी नफ़रत है इसलिए इनसे बचना जरूरी है।
3 – रबीउल अव्वल
यह महीना नबी (ﷺ) की विलादत शरीफ़ का है। इस महीने की भी कोई खास विशेषता कुरआन व हदीस में नहीं आयी। आजकल मुसलमान इस महीने में मीलाद अधिक कराते हैं अगरचे मीलाद के बारे में कुरआन व हदीस ख़ामोश हैं। मीलाद में जो रिवायतें बयान की जाती हैं वे अक्सर मनघडत और झूठी होती हैं। उलेमाए एहनाफ़ ने अपनी बहुत सी किताबों में इसे बिदअत बताया है। हदीस में हर नयी बात जो कि दीन में निकाली जाए वह बिदअत है और इसी महीने में हुजूर (ﷺ) की विलादत हुई है और इसी महीने में आप (ﷺ) की वफ़ात हुई है।
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4 – रबी उस्सानी
इस महीने की तारीफ में कोई आयत या हदीस नहीं है। नबी (ﷺ) हर महीने की 13, 14 और 15 तारीख़ को नफ़ली रोज़े रखते थे इस वजह से अगर इस महीने की इन तारीखों में रोज़े रखे जाएं तो अफ़ज़ल है।
5 – जमादिल अव्वल,
6 – जमादिस्सानी
इन दोनों महीनों के बारे में कोई खास रियायत व महानता किताब सुन्नत में नहीं आयी। हां हुजूर () का दस्तूर था कि हर महीने की 13, 14 और 15 तारीख़ को रोज़ा रखते थे इस ख्याल से हर दोनों महीनों की इन तारीख़ों में रोज़े रखना सवाब है।
7 – रजब
कुरआन में चार महीनों को शहरुल हराम कहा गया है – “कालल्लाहु तआला अश्शहरुल हरामु बिश्शहरिल हराम” वे चार महीने ये हैं 1- ज़ीलकदा, 2- ज़िलहिज्जा, 3- मुहर्रम, 4- रजब।
ज़माने जाहिलियत (अज्ञानता) के ज़माने में अरब के लोग इन महीनों की बड़ी ताज़ीम करते थे यहां तक कि उनके बाप दादा का क़ातिल भी इन दिनों मिल जाता तो उसे भी नहीं छेड़ते थे।
कुरआन मजीद में इन महीनों की हुरमत को कायम रखा है। मुसलमान इन महीनों में बचाव की जंग कर सकते हैं यदि काफ़िर सुकून से हों तो इन महीनों में उन पर चढ़ाई नहीं की जा सकती।
रजब की 27वीं रात को हुजूर (ﷺ) को मेराज हुई थी इसी रात में आप (ﷺ) पर और आपकी उम्मत पर पचास नमाज़ें फ़र्ज़ हुई थी। लेकिन हज़रत मूसा (अ.स) के नेक मश्विरों और हुजूर (ﷺ) की बार-बार दुआओं से पचास की बजाए केवल पांच नमाजें रह गयीं। (बुखारी)
आजकल के रस्मी मुसलमान इस महीने में रजबी बड़ी धूमधाम से करते हैं अगरचे हदीस में इसकी साफ़ हुरमत मौजूद है। (अबू दाऊद)
ला अतीरह मतलब रजबी नहीं करनी चाहिए। अतीरह ना करने की बात रजबियह हदीस में आयी है अगरचे आजकल की रजबी और अज्ञानता की रजबी में थोड़ा फर्क है लेकिन मतलब दोनों का एक ही है।
इस महीने में लोग हज़ारी, लक्खी, करोड़ी रोज़ा रखते हैं। इन रोज़ों का पता व निशान कुरआन व हदीस व फ़िक्ह की किताब में नहीं पाया जाता। ये रोज़े केवल बन्दों के गढ़े हुए हैं ऐसे बिदअतियों से मुसलमानों को कोसों दूर रहना चाहिए।
बिदअतियों को हुजूर (ﷺ) महशर के दिन देखकर फरमाएंगे….. ..” सु-हु-कुन- सुहुकन” अर्थात बिदअतियों को मुझसे दूर रखो जहन्नुम में ले जाओ। (बुखारी)
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8 – शाअबान
इस मुबारक महीने में नबी करीम (ﷺ) ज़्यादा तर रोज़े रखते थे सहाबा किराम ने आपसे इस की वजह मालूम की आप (ﷺ) ने फ़रमाया कि:
इस महीने में बन्दों के अमल अल्लाह के सामने पेश किए जाते हैं अत: मैं चाहता हूं कि मैरे आमाल रोज़े की हालत में पेश हों। (नसई)
नबी (ﷺ) किसी महीने में नफ़ली रोज़े इतनी ज्यादा कसरत में नहीं रखते थे जितनी कसरत से शाअबान में रखते थे। (बुखारी)
एक आदमी से नबी करीम (ﷺ) ने रमज़ान शरीफ़ में पूछा “क्या तुमने शाअबान के शुरु के या बीच में रोज़े रखे थे?” उसने कहा - नहीं, आप (ﷺ) ने फ़रमाया रमज़ान शरीफ़ के बाद शाअबान के रोज़े की नीयत करके दो रोज़े रख लेना (बुखारी)
जानिए : माहे शाबान की फ़ज़ीलत, हमारे आमाल
9 – रमज़ानुल मुबारक
कुरआन पाक और हदीसे नबवी में रमज़ानुल मुबारक के बड़े फ़ज़ाइल व एहकाम आए हैं। इस पुरे महीने फ़र्ज़ रोज़े रखे जाते है।
तफ्सील के लिए देखे : रमज़ान का महिना … जानिए: इसमें क्या है हासिल करना?
अल्लाह हम सबको इस महीने की रहमतों और बरकतों से लाभ उठाने की तौफ़ीक़ दे।
10 – शव्वाल
रमज़ान के रोज़ों व ईद से निमट कर इस महीने में छः रोजे रखने मसनून हैं इन्हें ‘छ: ईद’ के रोज़े कहते हैं जो आदमी ये रोज़े रखते हों वह गुनाहों से ऐसे पाक हो जाते हैं जैसे अभी मां के पेट से पैदा हुए हैं। (तिबरानी)
एक रिवायत में है जिसने रमज़ान के बाद छ: रोज़े रखे तो उसे सारे ज़मानों के रोज़ों का सवाब मिलता है। (मुस्लिम)
अज्ञानता के ज़माने के लोग इस महीने में शादी विवाह करने को बुरा समझते थे नबी (ﷺ) ने इस रस्म को तोड़ने के लिए हज़रत आयशा रज़ि० से इसी महीने में शादी की थी।
हज़रत आयशा रज़ि. फ़रमाती हैं कि मैं सारी पत्नियों से भाग्यवान और नसीब वाली हूं। यदि शव्वाल के महीने में शादी व रुखसती की जाए तो अफ़ज़ल है।
11 – जीकाअदा
शव्वाल व जीकाअदा व जिलहिज्जा की दस तारीखे हज के महीने कहलाते हैं। हज तो जिलहिज्जा की नवीं तारीख को होता है मगर हज का एहराम इन महीनों में बंध सकता है नबी करीम सल्ल० ने प्राय: उमरा जीकाअदा के महीने में किया है आप का उमरा साल हुदैबिया का और उमरातुलक़ज़ा ज़ीकाअदा ही में हुआ था।
12 – जिलहिज्जा
हज जैसी पवित्र व अहम इबादत अल्लाह ने इसी महीने में रखी है इस महीने की खूबी हदीसों में बड़ी कसरत से आयी है पहले हिस्से की खूबियां तो हदीसों में बेहद हैं।
एक रिवायत में है कि जो नेक अमल भी इस हिस्से में किया जाएगा चाहे बड़ा हो या छोटा बड़ा ही प्यारा मालूम होता है और दिनों के अमल इन दिनों के बराबर नहीं हो सकते इस पर सहाबा ने अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के रसूल! क्या इन दिनों के जिहाद की सबीलिल्लाह (अल्लाह की राह में जिहाद) उनके अमल के बराबर नहीं हो सकते? फ़रमाया नहीं मगर वह मुजाहिद कि खुदा की राह में मारा गया और माल छिन गया। (बुखारी)
एक रिवायत में है कि इस अशरे का रोज़ा इतनी महानता रखता है कि हर रोज़े पर एक साल के रोज़ों का सवाब मिलता है और रात की इबादत हज़ार रातों की इबादत की तरह है। (तिर्मिज़ी, इब्ने माजा)
जिस दिन ज़िलहिज्जा का चांद हो तो उस दिन से 13 जिलहिज्जा तक अधिकता से तस्बीह आदि पढ़ना चाहिए। (बुखारी)
एक रिवायत में है कि इस अशरे में “सुबहानल्लाहि ला इलाहा इल्लल्लाहु अल्लाहु अकबर” अधिकता से पढ़ा करो।
नवीं ज़िलहिज्जा के दिन को “यवमे अरफ़ा” कहते हैं अल्लाह इस दिन अपने बन्दों को इतना बख्शता है कि शैतान ज़लील होकर अपने सर पर खाक डालने लगता है। (तर्गीब)
अरफ़े का दिन का रोज़ा रखना चाहिए अरफ़े के रोज़े का इतना सवाब मिलता है कि रोजे रखने वाले के एक साल पिछले और एक साल आगे के गुनाह माफ हो जाते हैं। (मुस्लिम)
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