जब रसूलुल्लाह (ﷺ) लोगों की नाराजगी की परवा किये बगैर बराबर बुत परस्ती से रोकते रहे लोगों को सच्चे दीन की दावत देते रहे, तो कुरैश के सरदारों ने आप (ﷺ) के चचा अबू तालिब से शिकायत की, के तुम्हारा भतीजा हमारे माबूदों को बुरा भला कहता है, हमारे बाप दादाओं को गुमराह कहता है, जिसे हम बरदाश्त नहीं कर सकते।
इस लिये या तो आप उन की हिमायत बंद कर दें या फिर आप भी उन की तरफ से फैसला कुन जंग के लिये मैदान में आजाएँ, यह सुन कर अबू तालिब घबरा गए और हुजूर (ﷺ) को बुला कर कहा मुझपर इतना बोझ न डालो, के मैं न उठा सकूँ।
चचा की जबान से यह बात सुन कर आप की आँखों में आँसू भर आए और आप (ﷺ) ने फर्माया : “चचा जान ! अल्लाह की कसम! अगर यह लोग मेरे एक हाथ में सूरज और दूसरे हाथ में चाँद ला कर रख दें, तब भी मैं अपने इस काम से बाज न आऊँगा, या तो अल्लाह का दीन जिन्दा होगा या मैं इस रास्ते में हलाक हो जाऊँगा।”
हुजूर (ﷺ) की इस गुफ्तगू का अबू तालिब पर बड़ा असर हुआ, चुनान्चे उन्होंने कहा: “जिस तरह चाहो तब्लीग करो,मैं तुम्हें किसी के हवाले नहीं करूँगा।” अबू तालिब का यह जवाब सुन कर कुफ्फारे मक्का मायूस होकर चले गए।
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