Contents
- 1. इस्लामी तारीख
- ताइफ के सरदारों को इस्लाम
- 2. हुजूर (ﷺ) का मुअजीजा
- हराम लुकमे का गले से नीचे न उतरना
- 3. एक फर्ज के बारे में
- वालिदैन के साथ अच्छा सुलूक करना
- 4. एक सुन्नत के बारे में
- अल्लाह के रास्ते में जाने वाले को दुआ देना
- 5. एक अहेम अमल की फजीलत
- हर हाल में अच्छी तरह वुजू कर के मस्जिद जाना
- 6. एक गुनाह के बारे में
- मुजिजात को न मानने का गुनाह
- 7. दुनिया के बारे में
- समुन्दर इन्सानों की गिजा का ज़रिया है
- 8. आख़िरत के बारे में
- कयामत से हर एक डरता है
- 9. तिब्बे नबवी से इलाज
- सफर जल (बही, पीयर) से इलाज
- 10. क़ुरान की नसीहत
- पुरे यकींन से दुआ करो
16 Rabi-ul-Akhir | Sirf Panch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
ताइफ के सरदारों को इस्लाम
सन १० नबवी में अबू तालिब के इंतकाल के बाद कुफ्फारे मक्का ने हुजूर (ﷺ) को बहुत जियादा सताना शुरू कर दिया, तो अहले मक्का से मायूस हो कर आप (ﷺ) इस खयाल से ताइफ तशरीफ ले गए के अगर ताइफ वालों ने इस्लाम कबूल कर लिया, तो वहाँ इस्लाम के फैलने की बुनियाद पड जाएगी।
ताइफ में बनु सकीफ का खानदान सबसे बड़ा था, उन के सरदार अब्द या लैल, मसऊद और हबीब थे। यह तीनों भाई थे, रसूलुल्लाह (ﷺ) ने इन तीनों को इस्लाम की दावत दी। इन में से एक ने कहा: “अच्छा! अल्लाह ने आप ही को नबी बना कर भेजा है।” दूसरा बोला: “अल्लाह को तुम्हारे सिवा और कोई मिलता ही न था, जिसको नबी बना कर भेजता।”
तीसरे ने कहा : “मैं तुझ से बात नहीं करना चाहता, इस लिये के अगर तू सच्चा रसूल है, तो तेरा इन्कार करना खतरे से खाली नहीं है और अगर झूटा है तो मैं गुफ़्तगू के काबिल नहीं !” इन सरदारों की इस सख्त गुफ्तगू के बाद भी आप कई रोज तक लोगों को इस्लाम की दावत देते रहे।
2. हुजूर (ﷺ) का मुअजीजा
हराम लुकमे का गले से नीचे न उतरना
एक मर्तबा रसूलुल्लाह (ﷺ) किसी की नमाजे नजाजा पढ़ कर वापस आ रहे थे, रास्ते में एक आदमी एक औरत की तरफ से खाने की दावत देने आया, तो हजर (र.अ) ने दावत कुबूल फ़रमा ली और रसूलुल्लाह (ﷺ) अपने सहाबा के साथ उस औरत के घर तशरीफ ले गए।
जब खाना सामने रखा गया, तो सब से पहले हुजूर (ﷺ) ने लुकमा उठाया और फिर सहाबा ने खाना शुरू कर दिया, लेकिन वह लुकमा हजर (ﷺ) के गले से नीचे नहीं उतर रहा था, तो आप (ﷺ) ने फरमाया : मुझे लगता है के यह बकरी मालिक की इजाजत के बगैर जबह की गई है।
चुनान्चे खुद उस औरत ने बतलाया: या रसूलल्लाह (ﷺ) ! मैं ने एक आदमी को मक़ामे वकीअ भेजा था (जहाँ मंडी लगती थी) लेकिन बकरी नहीं मिली तो मैंने अपने पडोसी आदमी के पास भेजा, मगर वह आदमी घर पर न था तो फिर मैंने उसकी औरत के पास भेजा, तो उस ने वह बकरी (अपने शौहर की इजाजत के बगैर) दे दी, हजर (ﷺ) ने फरमाया: यह खाना कैदियों को खिला दो।
3. एक फर्ज के बारे में
वालिदैन के साथ अच्छा सुलूक करना
कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है :
“हम ने इन्सानों को अपने वालिदैन के साथ हुस्ने सुलूक ही करने का हुक्म दिया है।”
फायदा: वालिदैन की इताअत फ़रमाबरदारी करना, उनके साथ अच्छा सलूक करना और उनके सामने अदब के साथ पेश आना इन्तेहाई जरूरी है।
4. एक सुन्नत के बारे में
अल्लाह के रास्ते में जाने वाले को दुआ देना
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने एक जमात को अल्लाह के रास्ते में रवाना करते हुए फ़रमाया :
“अल्लाह के नाम पर सफर शुरू करो और यह दुआ दी:
तर्जमा: ऐ अल्लाह! इनकी मदद फ़र्मा।
5. एक अहेम अमल की फजीलत
हर हाल में अच्छी तरह वुजू कर के मस्जिद जाना
रसूलल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“तुम में से जो शख्स अच्छी तरह मुकम्मल वुजू करता है, फिर नमाज ही के इरादे से मस्जिद में आता है, तो अल्लाह तआला उस बंदे से ऐसे खुश होता हैं जैसे के किसी दूर गए हुए रिश्तेदार के अचानक आने से उसके घर वाले खुश होते हैं।”
6. एक गुनाह के बारे में
मुजिजात को न मानने का गुनाह
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :
“जब उन के रसूल उन के पास खुली हुई दलीलें ले कर आए, तो वह लोग अपने उस दुनियावी इल्म पर नाज़ करते रहे, जो उन्हें हासिल था, आखिरकार उनपर वह अज़ाब आ पड़ा जिस का वह मज़ाक़ उड़ाया करते थे।”
7. दुनिया के बारे में
समुन्दर इन्सानों की गिजा का ज़रिया है
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :
“अल्लाह तआला ही ने समुन्दर को तुम्हारे काम में लगा दिया है, ताके तुम उस में से ताज़ा गोश्त खाओ और उसमें से जेवरात (मोती वगैरह) निकालो जिन को तुम पहनते हो और तुम कश्तियों को देखते हो, के वह दरिया में पानी चिरती हुई चली जा रही है, ताकि तुम अल्लाह तआला का फज़ल यानी रोजी तलाश कर सको और तुम शुक्र अदा करते रहो।”
8. आख़िरत के बारे में
कयामत से हर एक डरता है
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:
“कोई मुकर्रब फरिश्ता, कोई आसमान, कोई ज़मीन, कोई हवा, कोई पहाड़. कोई समुन्दर ऐसा नहीं जो जुमा के दिन से न डरता हो (इस लिये के जुमा के दिन ही क़यामत कायम होगी)”
9. तिब्बे नबवी से इलाज
सफर जल (बही, पीयर) से इलाज
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“सफर जल (यानी बही) खाया करो, क्योंकि यह दिल को राहत पहुँचाता है।”
10. क़ुरान की नसीहत
पुरे यकींन से दुआ करो
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“तुम अल्लाह तआला से ऐसी हालत में दुआ किया करो के तुम्हें कुबूलियत का पूरा यकीन हो और यह जान रखो के अल्लाह तआला गफलत से भरे दिल की दुआ कबूल नहीं करता।”
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