उम्मुल मोमिनीन हज़रत खदीजा (र.अ) को जो फज़ल व कमाल अल्लाह तआला ने अता फ़रमाया था, उस में कयामत तक कोई खातून शरीक नहीं हो सकती, उन्होंने सब से पहले हुजूर (ﷺ) की नुबुव्वत की तसदीक करते हुए ईमान कबूल किया।
सख्त आज़माइश में आप (ﷺ) का साथ देना, इस्लाम के लिए हर एक तकलीफ़ को बर्दाश्त करना, रंज व गम के मौके पर आप (ﷺ) को तसल्ली देना, यह उन की वह सिफ़ात हैं, जो उन्हें दीगर उम्महातुल मोमिनीन से मुमताज कर देती हैं।
अल्लाह तआला ने (फ़रिश्ते) जिब्रईले अमीन के जरिए उन्हें सलाम भेजा। खुद पैगंबर (ﷺ) ने फ़रमाया “अल्लाह की कसम! मुझे खदीजा से अच्छी बीवी नहीं मिली”, वह उस वक्त मुझ पर ईमान लाई जब लोगों ने इन्कार किया। उस ने उस वक्त मेरी नुबुव्वत की तसदीक की जब लोगों ने मुझे झुटलाया, उसने मुझे अपना माल व दौलत अता किया जब के दूसरे लोगों ने महरूम रखा। हकीकत यह है के इब्तिदाए इस्लाम में उन्होंने दीन की इशाअत व तबलीग में अपनी जानी व माली खिदमात अंजाम देकर पूरी उम्मत पर बड़ा एहसान किया है।
अल्लाह तआला उन्हें इस का बेहतरीन बदला अता फरमाए। (आमीन), सन १० नब्वी में ६५ साल की उम्र में (वफ़ात पाई और मक्का के हुजून नामी कब्रस्तान (यानी जन्नतुल माला) में दफन की गई।