7. मुहर्रम | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा
7 Muharram | Sirf Paanch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
काबील और हाबील
काबील और हाबील हज़रत आदम के दो बेटे थे। दोनों के दर्मियान एक बात को लेकर झगड़ा हो गया। काबील ने हाबील को क़त्ल कर डाला, ज़मीन पर यह पहली मौत थी और इस बारे में अभी तक आदम की शरीअत में कोई हुक्म नहीं मिला था। इस लिये काबील परेशान था के भाई की लाश को क्या किया जाए। अल्लाह तआला ने एक कव्वे के जरिये उस को दफन करने का तरीका सिखाया। यह देख कर काबील कहने लगा : “हाए अफसोस! क्या मैं ऐसा गया गुज़रा हो गया के इस कव्वे जैसा भी न बन सका।”
जानिए : काबिल ने हाबिल को क्यों मारा ?
फिर उसने अपने भाई को दफन कर दिया। यहीं से दफन करने का तरीक़ा चला आ रहा है।
हुजूर (ﷺ) ने काबील के मुतअल्लिक फर्माया :
“दुनिया में जब भी कोई शख्स जुल्मन कत्ल किया जाता है तो उस का गुनाह हज़रत आदम के बेटे (काबील) को जरूर मिलता है, इस लिये के वह पहेला शख्स है जिसने जालिमाना क़त्ल की इब्तेदा की और यह नापाक तरीका जारी किया”
[मस्नदे अहमद: ३६२३]
इसी लिये इन्सान को अपनी ज़िन्दगी में किसी गुनाह की इजाद नही करनी चाहिये ताके बाद में उस गुनाह के करने वालों का वबाल उसके सर न आए।
तफ्सीली जानकारी के लिए पढ़े :
हज़रत आदम अलैहि सलाम ~ क़सस उल अंबिया
2. अल्लाह की कुदरत
सूरज
सूरज अल्लाह तआला की बनाई हुई एक जबरदस्त मखलूक है। उस से हमें रोश्नी और गर्मी हासिल होती है, वह रोजाना (गर्दिश के ऐतबार से) मशरिक से निकलता है और मग्रिब में डुबता है।
लेकिन अल्लाह तआला क़यामत के क़रीब उसे अपनी कुदरत से मशरिक के बजाए मगरिब से निकालेगा यानी उलटी ओर गर्दिश करेगा, उसकी लम्बाई चौड़ाई लाखों मील है और वज़न के एतेबार से जमीन के मुकाबले में लाखों गुना ज्यादा है।
इतने वजनी और बड़े सूरज का मुकर्ररा निजाम के तहत चलाना और करोड़ों मील की दूरी से पूरी दुनिया को रोश्नी और गर्मी अता करना अल्लाह तआला की कुदरत की बड़ी निशानी है।
3. एक फर्ज के बारे में
दीन में नमाज़ की अहमियत
एक आदमी ने रसूलुल्लाह (ﷺ) से अर्ज किया :
“ऐ अल्लाह के रसूल (ﷺ) ! इस्लाम में अल्लाह के नजदीक सबसे ज़्यादा पसन्दीदा अमल क्या है ?”
आप (ﷺ) ने फर्माया :
“नमाज को उस के वक्त पर अदा करना और जो शख्स नमाज़ को (जान बूझ कर छोड़ दे उस का कोई दीन नहीं है और नमाज दीन का सुतून है।”
📕 बैहकी शोअबिल ईमान : २६८३ अन उमर (र.अ)
4. एक सुन्नत के बारे में
वुजू में कानों का मसह करना
हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (र.अ) बयान करते हैं के
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने (वजू) में अपने सरे मुबारक का मसह फर्माया और उसके साथ दोनों कानों का भी, (इस तरीके पर) के कानों के अन्दरूनी हिस्से का तो शहादत की उंगलियों से मसह फर्माया और बाहर के हिस्से का दोनों अंगूठों से।
5. एक अहेम अमल की फजीलत
आशूरा के रोजे का सवाब
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
रसूलुल्लाह (ﷺ) से मुहर्रम की दस्वी तारीख के रोजे के मुतअल्लिक़ पूछा गया, तो आप (ﷺ) ने फर्माया : “यह रोज़ा पिछले साल (के गुनाहों) का कफ्फारा बन जाता है।“
📕 मुस्लिम : २७४७. अन अबी कतादा (र.अ)
6. एक गुनाह के बारे में
बिला ज़रूरत मांगने का वबाल
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“जिस ने सवाल किया (माँगा) हालाँके उस के पास इतना मौजूद था जिससे उस की जरूरत पूरी हो सकती थी, तो वह कयामत के दिन इस हाल में आएगा के उस का चेहरा ऐबदार और (उस पर) खराश होगी।”
📕 अबू दाऊद : १६२६, अन इब्ने मसऊद (र.अ)
7. दुनिया के बारे में
हूजूर (ﷺ) के घर वालों का सब्र
हज़रत इब्ने अब्बास (र.अ) बयान करते है के –
“रसूलुल्लाह (ﷺ) और आपके घर वाले बहुत सी रात भूके रहते थे, उनके पास रात का खाना नहीं होता था, जब के उन का खाना आम तौर से जौ की रोटी होती थी।”
8. आख़िरत के बारे में
परहेजगार लोगों के लिये खुशखबरी
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“बेशक परहेज़गार लोग (जन्नत के) बागों और चश्मों में होंगे।
(उन को कहा जाएगा) के तुम उन बागों में अमन व सलामती के साथ दाखिल हो जाओ
और हम उन के दिलों की आपसी रंजिश को (इस तरह) दूर कर देंगे के वह भाई भाई बन कर रहेंगे और वह तख्तों पर आमने सामने बैठा करेंगे।”
9. तिब्बे नबवी से इलाज
जख्म वगैरह का इलाज
हजरत आयशा (र.अ) फ़र्माती हैं : अगर किसी को कोई ज़ख्म हो जाता या दाना निकल आता, तो । आप (ﷺ) अपनी शहादत की उंगली को (थूक के साथ) मिट्टी में रख कर यह दुआ पढ़ते:
“अल्लाह के नाम से हमारी जमीन की मिट्टी हम में से किसी के थूक के साथ मिली हुई लगाता हूँ, (ताके) हमारे रब के हुक्म से हमारा मरीज़ अच्छा हो जाए।”
10. कुरआन की नसीहत
क्या यह लोग जमीन में चल फिर कर नहीं देखते ?
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“क्या यह लोग जमीन में चल फिर कर नहीं देखते के उनसे पहले लोगों का क्या अन्जाम हुआ, अल्लाह ने उन को हलाक कर डाला और उन काफिरों के लिये भी इसी किस्म के हालात होने वाले हैं, इस लिये के अल्लाह तआला अहले ईमान का दोस्त है और काफिरों का कोई दोस्त नहीं है।”