Contents
- 1. इस्लामी तारीख
- हज़रत याकूब (अ.स)
- 2. हुजूर (ﷺ) का मुअजिजा
- सुराका के घोड़े का ज़मीन में धंस जाना
- 3. एक फर्ज के बारे में
- बाजमात नमाज़ पढ़ने की निय्यत से मस्जिद जाना
- 4. एक सुन्नत के बारे में
- दुश्मन की हँसी से बचने की दुआ
- 5. एक अहेम अमल की फजीलत
- खुशू व खुजू से नमाज़ अदा करना
- 6. एक गुनाह के बारे में
- मुसलमानों को तकलीफ पहुँचाने का गुनाह
- 7. दुनिया के बारे में
- माल जमा करके खुश होना
- 8. आख़िरत के बारे में
- जहन्नम की वादी
- 9. तिब्बे नबवी से इलाज
- शहद के फवाइद
- 10. नबी (ﷺ) की नसीहत
- इस तरह नमाज़ पढ़ो गोया तुम अल्लाह को देख रहे हो
30. मुहर्रम | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा
30 Muharram | Sirf Paanch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
हज़रत याकूब (अ.स)
हज़रत याकूब बिन इस्हाक़ बिन इब्राहीम (अ.स) अल्लाह के नबी और अहले कन्आन (फलस्तीन) के हादी व पैगम्बर थे।
कुरआन करीम में दस से जाइद मर्तबा उन का जिक्र आया है और जगह जगह उनके औसाफ का तजकेरा कर के उन के जलीलुलकद्र नबी और साहिबे सब्र व कनाअत होने की तरफ इशारा किया है।
हज़रत याकूब (अ.स) को इबरानी ज़बान में इस्राईल भी कहा जाता है। हज़रत इब्राहीम (अ.स) की जो नस्ल आगे चल कर बनी इस्राईल कहलाई वह उन्हीं की तरफ मन्सूब है। उन्होंने चार शादियों की थीं। अल्लाह तआला ने हर एक से औलाद अता फर्माई, उन को बारा लड़के और एक लड़की थी।
बिनयामीन के अलावा सारे लडके इराक़ के शहर “फहान इरम” में पैदा हुए थे। एक सौ की तीस साल की उम्र में वह अपने महबूब बेटे हजरत यूसुफ (अ.स) की ख्वाईश पर अपने पूरे खान्दान के साथ मिस्र चले गए थे, वहाँ १७ साल क़याम रहा और वहीं १४७ साल की उम्र में वफात पाई।
हजरत यूसुफ (अ.स) ने उन्हें फलस्तीन लाकर हज़रत इब्राहीम और हजरत इस्हाक (अ.स) के साथ दफन किया।
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2. हुजूर (ﷺ) का मुअजिजा
सुराका के घोड़े का ज़मीन में धंस जाना
सुराका ने हिजरत के वक्त रसूलुल्लाह (ﷺ) का पीछा किया और रसूलुल्लाह (ﷺ) के करीब पहुँच गया, रसूलुल्लाह (ﷺ) ने बददुआ की, तो उसी वक्त उस का घोड़ा घुटनों तक जमीन में धंस गया, फिर उस ने दुआ की दरख्वास्त की और वादा किया के जो भी आप की तलाश में आएगा; उस को मैं वापस कर दूंगा, तो आप (ﷺ) ने दुआ की, चुनान्चे घोडा जमीन से निकल आया।
📕 बुखारी : ३६१५, अन अबी बक्र (र.अ)
3. एक फर्ज के बारे में
बाजमात नमाज़ पढ़ने की निय्यत से मस्जिद जाना
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:
“जो शख्स अच्छी तरह वुजू करे, फिर मस्जिद में नमाज के लिये जाये और वहाँ पहुँच कर मालूम हो के जमात हो चुकी, तो उस को जमात की नमाज का सवाब होगा और उस सवाब की वजह से उन लोगों के सवाब में कुछ कमी नहीं होगी, जिन्होंने जमात से नमाज पढ़ी।”
📕 अबू दाऊद : ५६४. अन अबी हुरैरह (र.अ)
4. एक सुन्नत के बारे में
दुश्मन की हँसी से बचने की दुआ
रसूलुल्लाह (ﷺ) यह दुआ पढ़ा करते थेः
तर्जमा: मैं बलाओं की सख्ती और बदबख्ती के लाहिक़ होने और बुरी तकदीर और दुश्मनों के हँसने से अल्लाह की पनाह चाहता हूँ।
📕 बूखारी : ६३४७. अन अबी हुरैरह (र.अ)
5. एक अहेम अमल की फजीलत
खुशू व खुजू से नमाज़ अदा करना
रसलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:
“जो कोई खूब अच्छी तरह वुजू करे और दो रकात नमाज खुशू खुजू के साथ पड़े तो उस के लिये जन्नत वाजिब हो गई।”
6. एक गुनाह के बारे में
मुसलमानों को तकलीफ पहुँचाने का गुनाह
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“जिन लोगों ने मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतों को तकलीफ पहुँचाई फिर तौबा भी नहीं की, तो उनके लिये दोज़ख और सख्त जलने का अज़ाब है।”
7. दुनिया के बारे में
माल जमा करके खुश होना
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है:
“जो शख्स (इन्तेहाई हिर्स व लालच से) माल जमा करता है और (फिर वह खुशी से) उस को बार बार गिनता है और समझता है के उस का यह माल उस के पास हमेशा रहेगा, हरगिज़ नहीं रहेगा बल्के अल्लाह तआला उस को ऐसी आग में डालेगा, जो हर चीज़ को तोड़फोड़ कर रख देगी।”
8. आख़िरत के बारे में
जहन्नम की वादी
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:
“वैल” जहन्नम में एक गहरी वादी है, जिस में काफिर को डाला जाएगा, तो उस की तह तक पहुँचने से पहले चालीस साल लग जाएंगे।”
📕 तिर्मिजी : ३१६४, अन अबी सईद खुदरी (र.अ)
9. तिब्बे नबवी से इलाज
शहद के फवाइद
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है:
तर्जमा: उन मक्खियों के पेट से पीने की चीज़ निकलती है जिस के रंग मुख्तलिफ होते हैं उस में लोगों के लिये शिफा है।
फायदा: शहद एक ऐसी कुदरती नेअमत है, जो मुकम्मल दवा और भरपूर गिजा भी है, जो हर शख्स और हर उम्र वाले के लिये बेहद मुफीद है, ख़ुसूसियत से सुबह निहार मुँह उस का इस्तेमाल बड़ी बड़ी बीमारियों से हिफाज़त का जरिया है।
10. नबी (ﷺ) की नसीहत
इस तरह नमाज़ पढ़ो गोया तुम अल्लाह को देख रहे हो
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“उस शख्स की तरह नमाज़ पढ़ो, जो सब से रूख्सत होने वाला हो। और इस तरह नमाज़ पढ़ो गोया तुम अल्लाह को देख रहे हो, अगर यह हालत पैदा नहो सके, तो कम अज़ कम यह कैफियत जरूर हो के अल्लाह तुम्हें देख रहे हैं और लोगों के पास जो कुछ है उस से बेपरवाह हो जाओ, तुम ग़नी हो जाओगे।”
📕 मुअजमे कबीर लित्तबरानी : ५२४, अन इब्ने उमर (र.अ)
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