“बशर अल असद की ख़ूनी तानाशाही तो वजह है ही…. साथ ही मुसलमानों के दीन से दूरी रखने का नतीजा भी है हलब की बर्बादी….”
शाम (सीरिया) में लोगों ने जिस वक़्त हुकूमत को बदलने के लिए हथियार उठा लिए उस मौके पर उलेमा की यह ज़िम्मेदारी थी के वह लोगों को तलकीन करते,..
… बहरहाल, आप क्या समझते हैं कि सीरिया में इस खून ख़राबे में शिया या सुन्नी में से एक की फतह होगी जो शिया और सुन्नी फेसबुकिये अपने अपने फ़िरके की साइड लेने में जुट गए हैं….. ???
जी नही इन दोनों में से किसी की फतह नही होगी, खून ये ही दोनों एक दूसरे का बहाएंगे, लेकिन जीत होगी ग्रेटर इज़राइल का सपना देखने वाले इज़राइल और अरब के तेल के कुवों पर कब्ज़े की चाहत रखने वाले अमेरिका की….. !!!! 2003 में जैसे इराक़ में अमेरिका घुसा था, अब वैसे ही असद के खिलाफ अमेरिकी मीडिया माहौल बना रहा है…. जब तक असद सुन्नियों को मार रहा है, मौत का ये तमशा अमेरिका चलते रहने देगा, और जब सीरिया में गृहयुद्ध ख़त्म हो जाएगा और आपसी खून ख़राबा बन्द हो जाएगा, तब अमेरिका वहाँ खून ख़राबा करने पहुचेगा….!!!
इस आने वाली तबाही से बचने के लिये रास्ता यही है कि शिया और सुन्नी आपस में कड़वाहट न फैलाएं, ये कड़वाहट फैलाकर आप अमेरिका और मोसाद की मदद ही करोगे, बल्कि आपको चाहिये कि अपने अपनों को गलतियां करने से रोकें…. फ़साद अगर सुन्नी फैलाना चाहें तो सुन्नी अवाम ही डटकर उनके ख़िलाफ़ खड़ी हो जाए, और अगर शिया फैलाना चाहें तो शिया अवाम उन्हें रोकें,
…. और अगर ऐसा न किया तो आज जो “अपनों” की जीत पे खुश होकर दूसरों के ख़िलाफ़ बातें कर के नाइत्तेफ़ाक़ी पैदा कर रहे हैं, कल को उन्हें अपनों की दर्दनाक मौतों का भी मंज़र देखना पड़ सकता है, क्योंकि बुराई का अंजाम कभी अच्छा नही निकलता…!!
– जिया इम्तियाज़ भाई की कलम से