1. एक फर्ज के बारे में
नमाज छोड़ने का नुकसान
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“जिस शख्स की एक नमाज़ भी फ़ौत हो गई वह ऐसा है के
गोया उस के घर के लोग और माल व दौलत सब छीन लिया गया हो।”
📕 इब्ने हिबान : १४९०, अन नौफल बिन मुआविया (र.अ)
2. एक सुन्नत के बारे में
मुसीबत या खतरे को टालने की दुआ
जब किसी मुसीबत या बला का अंदेशा हो, तो इस दुआ को कसरत से पढ़े:
“हमारे लिए अल्लाह काफ़ी है और वह बेहतरीन काम बनाने वाला है, हम उसी पर भरोसा करते हैं।”
📕 तिर्मिज़ी : २४३१, अन अबी सईद खुदरी (र.अ)
3. एक अहेम अमल की फजीलत
मस्जिदे नबवी में चालीस नमाज़ों का सवाब
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“जिस ने मेरी मस्जिद में चालीस नमाज़े अदा की और कोई नमाज़ कजा नहीं की, तो उस के लिए जहन्नम से बरात और अज़ाब से नजात लिख दी जाती है और निफ़ाक से बरी कर दिया जाता है।”
📕 मुसनदे अहमद : १२९४१, अन अनस (र.अ)
4. एक गुनाह के बारे में
तकब्बुर से दिल पर मुहर लग जाती है
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“जो लोग बगैर किसी दलील के अल्लाह तआला की आयात में झगड़े निकाला करते है, अल्लाह तआला और अहले ईमान के नज़दीक यह बात बड़ी काबिले नफरत है, इसी तरह अल्लाह तआला हर मुतकब्बिर सरकश के दिल पर मुहर लगा देता है।”
5. दुनिया के बारे में
आखिरत के मुकाबले में दुनिया से राजी होने से बचना
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :
“क्या तुम लोग आखिरत की ज़िन्दगी के मुकाबले में दुनिया की ज़िन्दगी पर राज़ी हो गए?
दुनिया का माल व मताअ तो आखिरत के मुकाबले में कुछ भी नहीं।”“
(लिहाज़ा किसी इन्सान के लिए मुनासिब नहीं है, के वह आखिरत को भूल कर ज़िन्दगी गुजारे या दुनिया के थोड़े से साज़ व सामान की खातिर अपनी आखिरत को बरबाद करे)।
6. आख़िरत के बारे में
मोमिनों का पुल सिरात पर गुजर
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“पुलसिरात पर मोमिनीन “रबि सल्लिम सल्लिम” ऐ रब! सलामती अता फ़र्मा, कहते हुए गुजरेंगे।”
📕 तिर्मिज़ी : २४३२, अन मुगीरा बिन शोअबा (र.अ)
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