नुबुव्वत मिलने के बाद रसूलुल्लाह (ﷺ) तीन साल तक पोशीदा तौर पर दीन की दावत देते रहे, फिर अल्लाह तआला की तरफ से हुजूर (ﷺ) को खुल्लमखुल्ला इस्लाम की दावत देने का हुक्म हुआ, इस हुक्म के बाद रसूलुल्लाह (ﷺ) ने सफा पहाड़ की चोटी पर चढ़ कर मक्का के तमाम खानदान वालों को आवाज़ दी, जब सब लोग जमा हो गए, तो आपने फ़रमाया : “ऐ लोगो ! अगर मैं तुमसे यह कहूँ के इस पहाड़ के पीछे एक लश्कर आ रहा है जो अनकरीब तुम पर हमला करने वाला है, तो क्या तुम इस बात का यकीन करोगे?”
सब एक ज़बान हो कर बोले: “क्यों नहीं! आप तो सादिक और अमीन हैं।” फिर आप ने फ़र्माया: “लोगो! एक अल्लाह पर ईमान लाओ और बुतों की इबादत छोड़ दो, मैं तुम को एक सख्त अज़ाब से डराने और आगाह करने आया हूँ, जो बिल्कुल तुम्हारे सामने है।”
यह सुन कर सभी लोग सख्त नाराज हए. उनमें आपका सगा चचा अबू लहब आपके साथ सख्त कलामी से पेश आया, जिस के जवाब में अल्लाह तआला ने अबू लहब और उस की बीवी उम्मे जमील की तबाही के बारे में सूर-ए-लहब नाजिल फरमाई।
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