रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“कसम है उस जात की जिस के कब्जे में मेरी जान है तुम जरूर बिज जरूर भलाइयों का हुक्म करो और बुराइयों से रोको;
वरना करीब है के अल्लाह तआला गुनहगारों के साथ तुम सब पर अपना अजाब भेज दे,
और उस वक्त तुम अल्लाह तआला से दूआ मांगोगे तो वो भी कबूल ना होगी।”
वजाहत: नेकियों का हुक्म देना और बुराइयों से रोकना उम्मत के हर फर्द पर अपनी हैसियत और ताकत के मुताबिक़ लाज़िम और जरूरी है।