हज़रत नोमान बिन बशीर (अ.स) की बहन बयान करती हैं के, खन्दक की खुदाई के मौक़े पर मेरी वालिदा अमरा बिन्ते रवाहा ने मुझे बुलाया और मेरे दामन में एक लब (दोनों हथेली) भर कर खजूर दी और फ़रमाया “यह अपने वालिद और मामू अब्दुल्लाह बिन रवाहा को दे आओ, चुनान्चे मैं चली, वहाँ पहुँच कर अपने वालिद और मामू को तलाश करने लगी, इतने में रसूलुल्लाह (ﷺ) ने मुझे देख लिया, तो फ़रमाया ऐ बेटी इधर आओ ! मैं आप (ﷺ) के पास पहुँची, तो आप ने पूछा यह क्या है? मैंने कहा यह थोड़ी सी खजूर है मेरी वालिदा ने मेरे वालिद और मेरे मामू के वास्ते भेजी है।
तो हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया मेरे पास लाओ, मैंने सारी खजूर हुजूर की हथेली मुबारक में रख दी और फिर एक कपड़ा बिछवाकर उस पर बिखेर दी और एक आदमी को फ़रमाया के आवाज़ लगाओ! चुनान्चे इस आवाज़ पर सब लोग जमा हो गए और खाना शुरू किया और खजूर बढ़ती गई हत्ता के सब लोगों ने पेट भरकर खाई फिर भी इतना ज़्यादा बच गई के कपड़े पर से खजूर ज़मीन पर गिर रहीं थीं |
📕 हुजूर (ﷺ) का मुअजिजा
📕 दलाइलुन्नुबवह लिल्असफहानी:495
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