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Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 16
गम का साल
नबी (ﷺ) के जानशीन चच्चा अबू तालिब और बीवी खदीजा रजि० की वफ़ात का गम
काफिले की तस्दीक के बाद कुफ्फारे मक्का का गुस्सा और बढ़ गया। हुजूर (ﷺ) के मकाम ब मंसब को पहचानने के बजाए वे जुल्म करने में और तेजी दिखाने लगे, लेकिन हुजूर (ﷺ) ने न पहले कभी कुरैश के जुल्म सितम की परवाह की और न अब किसी मुसलमान को ही कुछ ख्याल। तमाम मुसलमान खामोशी और सुकून से नमाज पढ़ते, रोजे रखते, तिजारत करते और मौके मौके से अपने पड़ोसियों और रिश्तेदारों को कलामे इलाही सुनाते, तब्लीगे इस्लाम करते और जो मुसलमान होना चाहता उसे इस्लाम की दावत देते।
इस तरह धीरे-धीरे बहुत-से लोग मुसलमान हो गये।
इसी बीच अबू तालिब, जो हुजूर (ﷺ) के चचा थे, बीमार पड़े।
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चच्चा अबू तालिब के इंतेक़ाल का गम
अबू तालिब की उम्र अस्सी साल की थी, बहुत बूढ़े हो चुके थे। शोबे अबी तालिब में वह भी तीन साल तक भूखे-प्यासे कैद रहे थे। मुसलमानों को, उन की औरतों को, उन के बच्चों को भूख से एडियां रगड़ते देखा था। इन तकलीफ़ों और भूख-प्यास की ज्यादती से उन की सेहत पर बुरा असर पड़ा था। वह कमजोर हो कर बिस्तर पर पड़ गये थे। उन पर बीमारी ने अपना पूरा कब्जा कर लिया था।
चूंकि हुजूर (ﷺ) से अबू तालिब को बेहद मुहम्बत थी। वह हुजूर (ﷺ) की हर हालत में मदद फ़रमाते, सरपरस्ती करते और हर तरह से हिमायत करते रहे, इस लिए हुजूर (ﷺ) को आप से बेहद मुहम्बत हो गयी थी और आप ने उन की देखभाल में कोई कमी न की।
अबू तालिब को मक्का वाले भी इज्जत की निगाह से देखते थे। इस लिए उन के बीमार होने की खबर आम हई, तो मक्के के तमाम बड़े भी उन को देखने और उनके पास बैठने के लिए आने लगे।
हजुर (ﷺ) चाहते थे कि अबू तालिब का बाकायदा इलाज करायें, लेकिन कुफ्फार तो काहिनों और आराफों को दिखाने के कायल थे, खुद: अबूतालिब भी यही चाहते थे। चुनांचे उन की ख्वाहिश हई कि अबरश को बुलाया जाए।
अबू जहल ने कहा कि वह मर गया है। अबू तालिब यह सुन कर खामोश हो गये।
दूसरे दिन अबू लहब काहिनों और आराफ़ों की एक बड़ी तायदाद कर ले आया। उन लोगों ने आते ही अबू तालिब को देखा।
एक ने संगरेजे फेंके और उन को उठा कर सूंघा, गौर से देखा और गरज कर बोला, कुछ नहीं जासेब का काम है। धूनी दो आराम होगा।
दूसरे ने अबूतालिब की पुतलियां गौर से देखीं। पुतलियों में रोशनी थी। पास बैठने वालों की शक्लें साफ़ नजर आ रही थीं। चिल्ला उठा, बड़े-बड़े कहरी जिन्नों का साया है। जब इन जिन्नों को पकड़ कर मारा जाएगा, तब सेहत होगी।
तीसरे ने तश्त में पानी भर कर देखा। देर तक देखते रहे, जब कुछ नजर न आया, तो बोले, कोई बड़ा खबीस जिन्न लिपटा हुआ है, जो कि शक्ल तक नहीं दिखाता। कोई जानता हो तो बताए कि वह कौन सा जिन्न है, हम उसे पकड़ कर मार डालेंगे।
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चौथे ने इन्सानी जिस्म के अंगों की हड्डियां निकाल कर फैला दी। उन को गौर से देखा। एक खोपड़ी को चर्ख दिया। जब वह गिरी, तो उसे उठा कर देखा। उस में एक तस्वीर की झलक नजर आयी। उछल कर बोले, हां-हां, वह जिन्न यह है।
इन्हीं करतबों में शाम हो गयी, इलाज बार कुछ न हुआ और मरीज की हालत और बुरी हो गयी।
हुजूर (ﷺ) इन शैतानी गिरोहों को देख कर कुढ़ रहे थे। वह देख रहे थे कि मरीज का आखिरी वक्त करीब आ गया है। जी में आता था कि खुद ही इलाज शुरू कर दें और कुछ नहीं तो थोड़ा बहुत शहद ही चटा दें, लेकिन इस में भी कुफ्फार रुकावट पैदा कर रहे थे।
अबू तालिब पर गफलत तारी हो गयी, रात बड़ी बेचैनी से गुजरी।
कुफ्फ़ार को यह डर भी था कि कहीं मुहम्मद (ﷺ) मरते वक्त ही अबू तालिब को मुसलमान न कर लें, इस लिए वे हर वक्त अब अबू तालिब के पास ही रहना पसन्द करते थे।
किसी तरह रात गुजरी, सुबह हुई तो अबू तालिब की हालत कुछ बेहतर नजर आयी।
तमाम कुफ्फार उन के गिर्द बैठे थे। सब ने समझ लिया कि अब अबू तालिब बच न सकेंगे। इस लिए जब उन को होश आया, तो अबू जहल ने कहा –
अबू तालिब ! हालात बता रहे हैं कि अब आप की जिंदगी का आखिरी लम्हा आ गया है। आप अपनी जिंदगी में उस झगडे को, जो हमारे और आप के भतीजे मुहम्मद (ﷺ)के बीच है, खत्म कर जाएं, ताकि आप के बाद यह झगड़ा बढ़ कर भयानक लड़ाई की बजह न बने।
अबू तालिब ने उस से पूछा, तुम क्या चाहते हो?
अबू जहल ने कहा, हम सिर्फ यह चाहते हैं कि आप का भतीजा मुहम्मद (ﷺ) हमारे हजार साला माबूदों को बुरा न कहे।
हुजूर (ﷺ) अपने मोहतरम चचा के पास ही बैठे थे। अबू तालिब ने उन से (मुहम्मद सल्ल.) खिताब करते हुए कहा, बेटे! तुम क्या कहते हो ?
हुजूर (ﷺ) खड़े हुए और आप ने फ़रमाया:
चचा ! मैं किसी के माबूद की तौहीन नहीं करता, सिर्फ यह कहता हूं कि एक खुदा की इबादत करो, उस खुदा की, जो कि पालनहार है, जिस ने पैदा किया है, जो मौत पर कादिर है, इस के बाद जिंदा कर के हिसाब लेगा, वह पाक है, बदले के दिन का मालिक है। उस की इबादत ही सही है। निजात उस को मिलेगी, जो निजात देने वाले की इबादत करेगा। अपने हाथों से तराश कर बनाये पत्थर के बुत खुदा नहीं हो सकते।
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यह सुनते ही कुफ्फारे मक्का बहुत बिगड़े और गुस्से से अबू तालिब के मकान से बाहर चले गये।
उन के बाहर जाते ही अबू तालिब ने कहा,
मेरे प्यारे भतीजे ! तुम सीधे रास्ते पर हो। मैं तुम को बचपन से जानता हूं और कभी किसी को सताते या झूठ बोलते और हक़ मारी करते नहीं देखा। तुम ने हमेशा सच कहा, कभी अमानत में खियानत नहीं की। मैं जानता हूं और अच्छी तरह जानता हूं कि न तूम्हे जाह तलब है और न जर-ज़मीन और जन का तलबगार है, न मन्सब का दिलदादा है, न हकूमत व सल्तनत चाहता है, सिर्फ़ इस बात की तमन्ना करता है कि कौम हजारों खुदाओं को छोड़ कर एक खुदा की इबादत करे। कौम को तुझ से ज़िद है। मैं तेरे मजहब को अच्छा जानता हूं। जब तक जिया और जहां तक मुझ से हो सका, तेरी हिमायत की। अब मर रहा हूं। नहीं जानता कि क़ौम तेरे साथ क्या सुलक करेगी? डर यही है कि यह तेरे साथ ज्यादती करेगी। मैं दुआ करता हूं कि खुदा तुझे ज्यादतियों से बचाए और पूरे अरब को मुसलमान होने की तौफ़ीक़ दे।
अबू तालिब की बातों से हुजूर (ﷺ) को उम्मीद हुई कि शायद वह इस आखिरी वक्त में मुसलमान हो जाएं, इस लिए आप (ﷺ) ने फ़रमाया, ऐ चचा ! अगर आप इस्लाम को अच्छा मजहब समझते हैं, तो उसे अपना क्यों नहीं लेते ? आप भी मुसलमान हो जाइए ना!
बेटे ! दिल से उसे मानता हूं, लेकिन जुबान से इक़रार करते हुए शरमाता हूं, क्योंकि जमाना कहेगा कि मौत से डर कर अबू तालिब मुसलमान हो गया, अबू तालिब ने कहा।
हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, इस बात का ख्याल न कीजिए। मरने के बाद कौन आप से कहने जाएगा? ऐ चचा! अगर आप कलिमा पढ लेंगे तो खुदा आप को जन्नत में दाखिल करेगा।
अबू तालिब पर सकराते मौत तारी हो गया।
उन्होंने कहा, नहीं मेरे भतीजे ! मुझे मेरे बाप-दादा के मजहब पर मरने दो। मैं भी वहीं जाना चाहता हूं, जहां मेरे बाप-दादा हैं। यह कहते-कहते अबू तालिब के जिस्म में अकड़न हुई। हुजूर (ﷺ) की आंखों में आंसू आ गये। आप ने फ़रमाया कि अफ़सोस चचा ! तुम मुसलमान न हुए। खुदा का हुक्म है कि वह किसी मुश्रिक को न बख्शेगा,
मगर मैं आप की मगफिरत के लिए हमेशा दुआ करता रहूंगा।
अबू तालिब को एक हिचकी आयी और उस के साथ ही उन की रूह जिस्म से निकल कर परवाज कर गयी। उन के मरने की खबर पूरे मक्का में घर-घर पहुंच गयी। मक्के में आम उदासी छा गयी।
हुजूर (ﷺ) को अबू तालिब से बेहद मुहब्बत थी। उन के मरने का आप को बेहद गम था।
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बीवी हजरत खदीजा रजि० की वफ़ात का ग़म
अभी यह गम बाकी ही था कि आप की महबूब बीवी हजरत खदीजा रजि० भी बीमार पड़ गयीं। आप को उन से भी बे इतिहा मुहब्बत थी, इस लिए आप को बड़ी चिन्ता हो गयी और फ़ौरन दवा शुरू कर दी।
हकीम बिन हिजाम हजरत खदीजा के भतीजे थे। उन्होंने चाहा कि काहिनों और आराफ़ों को बुलाया जाए, जैसा कि अरब का दस्तूर था, लेकिन हजरत खदीजा ने सख्ती से मना कर दिया।
दवा दी जाती रही, लेकिन उस से कोई फायदा नजर न आया।
सन् १० नबवी का रमजान शुरू हो गया था। मरीज की हालत देख कर हुजूर (ﷺ) गमगीन रहा करते थे। हजरत खदीजा भी इस गम को महसूस कर रही थीं, इस लिए वह बराबर कोशिश करतीं कि अपनी तक्लीफ़ और बेचैनी हुजूर (ﷺ) पर जाहिर न होने दें।
बहरहाल मरज बढ़ता गया और हजरत खदीजा का आखिरी वक्त आ गया।
हजूर (ﷺ) ने सोच लिया कि अब जिंदगी का रिश्ता कटने वाला है,इस लिए वह हजरत खदीजा के सिरहाने बैठ गये। चारों लड़कियां भी आ गयीं। हजरत फातमा रजि० सब से छोटी थीं। अपनी मां की बिगड़ी हालत को देख कर रोने लगीं। मां ने आंखें खोलीं, देखा, लेकिन इतनी ताक़त न थी कि मासूम बच्ची को समझा सकतीं। हजरत रुक्कैया, जैनब, उम्मे कुलसूम भी नजरें बचा कर रो रही थीं।
हजूर (ﷺ) की आंखों में भी आंसू थे। बैठे कुछ पढ़ रहे थे।
हजरत खदीजा रजि० ने एक संभाला लिया और उन्होंने हुजूर सल्ल० को देखते हुए फ़रमाया मेरे सरताज! मैं आप की खिदमत उतनी न कर सकी, जितनी करनी चाहिए थी। मुझे अफ़सोस है। आप बड़े खलीक़ और मेहरबान हैं, मेरी
कोताहियों को एक औरत समझ कर माफ़ कर देंगे।
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हुजूर (ﷺ) ने फ़रमाया, खुदा की कसम ! तुम ने इतनी खिदमत की है कि शायद ही किसी बीवी ने अपने पति की की हो। तुम ने हर वक्त और हर मौके पर मेरी मदद की और मेरे आराम और खुशी को ध्यान में रखा। मुझे अफ़सोस है कि तुम मुझ से रुखसत हो रही हो। अपने गम को में बयान नहीं कर सकता, लेकिन क्या किया जाए, यह निजामे कुदरत है।
हजरत खदीजा रजि० ने कहा,
मुझे इस का एहसास है ! इस एहसास ने अब तक मुझे बेचैनी और बेकरारी के जाहिर करने से मना किये रखा। अच्छा प्यारे शौहर ! रुख्सत, मेरी प्यारी बच्चियो ! अल-विदा।
हुजूर (ﷺ) ने झुक कर देखा, हज़रत खदीजा की रूह जिस्म छोड़ चुकी थी।
हुजूर (ﷺ) की आंखों में बे-अख्तियार आंसू छलक पड़े, गम से आप का चेहरा सफ़ेद हो गया। मां के मरने का असर तो चारों बच्चियों ने लिया था, लेकिन सब से ज्यादा हजरत फातमा रजि० बेकरार हो रही थीं। हजूर रजि० ने अपनी गोद में ले कर तसल्ली दी।
मौत की खबर ने सारे घर में जलजला पैदा कर दिया था। थोड़ी देर के बाद नहला-धुला कर जनाजा तैयार हुआ।
लोगों की भीड़ लगी हुई थी। वे जनाजा मकान से बाहर लाये और निहायत शान और एजाज के साथ कबीला बनी असद के कब्रस्तान में दफ्न किया।
हजरत खदीजा रजि० के इन्तिकाल से हज़र (ﷺ) को बेहद रंज हुआ और आप (ﷺ) ने फ़रमाया, यह साल ग़म का साल है। इसी साल अबू तालिब की भी वफ़ात हुई है।
ये दोनों हस्तियां हुजूर (ﷺ) के लिए ढाल की हैसियत रखती और अब इन दोनों से हजूर (ﷺ) महरूम थे।
To be continued …
इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा ….
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