कुरैश का क़बीला हज़रत इब्राहीम (अ.स) के दीन पर बराबर क़ायम रहा और एक खुदा की इबादत ही करता रहा, यहाँ तक के हुज़ूर (ﷺ) से तीन सौ साल पहले अम्र बिन लुई खुजाई का दौर आया।
अम्र मक्का का बड़ा दौलतमन्द शख्स था, उस के पास बीस हज़ार उँट थे, जो उस ज़माने में बड़े शर्फ की बात थी, एक दफा वह मक्का से मुल्के शाम गया, उसने वहां के लोगों को देखा, के बुतों को पूजते हैं, तो उनसे पूछा इन को क्यों पूजते हो? उन्होंने जवाब दिया “यह हमारे हाजत रवा है, हमारी ज़रूरतों को पूरी करते हैं, लड़ाइयों में फतह दिलाते हैं और पानी बरसाते हैं।
“अम्र बिन लुई को उनकी बुतपरस्ती अच्छी लगी और उस ने वहाँ से कुछ बुत ला कर खान-ए-काबा के आस पास रख दिये।
चूँकि काबा अरब का मरकज़ था, इस लिये तमाम कबाइल में धीरे धीरे बुत परस्ती का रिवाज हो गया, इस तरह मक्का में बुतपरस्ती की शुरूआत अम्र बिन लुहै खुजाई के हाथों हुई, जिसके बारे में रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया : मैंने अम्र बिन लुई को देखा के वह जहन्नम में अपनी ओतें घसीटता हुआ चल रहा है।