तुफाने नूह के बाद हज़रत नूह (अ.) के परपोते इमलाक़ बिन अरफख्शज बिन साम बिन नूह यमन में बस गए थे। अल्लाह तआला ने उन को अरबी जबान इलहाम की, फिर उन की औलाद ने अरबी बोलना शुरू कर दिया, यह अरब के इलाकों में चारों तरफ फैले, इस तरह पूरे जज़ीरतुल अरब में अरबी जबान आम हो गई, उसी जमाने में मदीना की बुनियाद पड़ी, इमलाक़ की औलाद में तुब्बा नामी एक बादशाह था, जिस ने यहूदी उलमा से आखरी नबी की तारीफ और यसरिब (मदीना) में उन की आमद की खबर सुन रखी थी, इस लिये शाह तुब्बा ने यसरिब में एक मकान हुजूर (ﷺ) के लिये तय्यार कर के एक आलिम के हवाले कर दिया और वसिय्यत की के यह मकान नबी ए आखिरुज ज़माँ की आमद पर उन्हें दे देना, अगर तुम जिन्दा न रहो तो अपनी औलाद को इस की वसिय्यत कर देना।
चुनान्चे हुजूर (ﷺ) की ऊँटनी हजरत अबू अय्यूब अन्सारी (र.अ) के मकान पर रुकी थी, हजरत अबू अय्यूब (र.अ) उन आलिम ही की औलाद में से थे, जिन को शाहे तुब्बा ने मकान हवाले किया था, साथ ही शाह तुब्बा ने एक खत भी हुजूर (ﷺ) के नाम लिखा, जिस में आप (ﷺ) से मुहब्बत, ईमान लाने और ज़ियारत के शौक़ को जाहिर किया था। हुजूर (ﷺ) की हिजरत के बाद यसरिब का नाम बदल कर “मदीनतुर रसूल” यानी रसूल का शहर रखा गया।
To be Continued …
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