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चाँद के दो टुकड़े — आस्था या ऐतिहासिक सत्य?
“चाँद के दो टुकड़े” की घटना को मुसलमान एक मोजज़ा (चमत्कार) मानते हैं, जिसे पैग़म्बर मोहम्मद (स.अ.) ने अल्लाह के हुक्म से अंजाम दिया था। यह वाकया ना केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैज्ञानिक चर्चा का विषय भी बन चुका है।
क्यों उठते हैं सवाल?
गैर-मुस्लिम आलोचक अक्सर इस चमत्कार पर प्रश्न करते हैं। उनका तर्क होता है कि यह घटना विज्ञान के सिद्धांतों के विरुद्ध जाती है। वे इसे अंधविश्वास करार देते हैं।
लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है?
कुरान और हदीस में चाँद के दो टुकड़े होने का वर्णन
हदीसों और इस्लामी ग्रंथों में यह उल्लेखित है कि कुफ्फार-ए-मक्का (उस समय के विरोधी) ने नबी (स.अ.) से चमत्कार दिखाने को कहा था — “अगर आप सच्चे नबी हैं तो चाँद को दो भागों में बाँट दीजिए।”
नबी (स.अ.) ने अल्लाह से इजाज़त लेकर उंगली के इशारे से चाँद को दो टुकड़ों में बाँट दिया। यह दृश्य उपस्थित सभी लोगों ने देखा, परंतु कुछ लोग इसे ‘जादू’ कहकर इंकार करने लगे।
विज्ञान और इस ऐतिहासिक घटना का संबंध
1. क्या चाँद को तोड़ा जा सकता है?
आज विज्ञान मानता है कि चाँद एक ठोस खगोलीय पिंड है, जो चट्टानों और मिट्टी से बना है।
इस्लाम ने यह बात 1400 साल पहले ही बता दी थी कि चाँद कोई प्रकाश पुंज नहीं, बल्कि एक मूर्त, ठोस वस्तु है।
यानी, नबी (स.अ.) द्वारा चाँद को दो भागों में बाँटने की घटना ने यह स्थापित कर दिया कि चाँद को छुआ या प्रभावित किया जा सकता है।
2. NASA की पुष्टि
NASA द्वारा चाँद की सतह पर कुछ ऐसे क्रैक (दरारें) देखी गई हैं जो “Linear Rilles” कहलाती हैं। कुछ इस्लामी विद्वान मानते हैं कि ये दरारें उस घटना से जुड़ी हो सकती हैं — हालांकि यह सिद्ध नहीं हुआ है।
क्या यह घटना आज भी प्रेरणा देती है?
चाँद के दो टुकड़े होने का किस्सा हमें ये सिखाता है कि आस्था और विज्ञान एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि सह-अस्तित्व में रह सकते हैं। इस्लाम केवल विश्वास पर नहीं, ज्ञान, सोच और तर्क पर भी आधारित है।
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