Kunde ki Niyaz : कुंडे के नियाज़ की हकीकत (रजब के कुंडे)

Kunde ki Niyaz : कुंडे के नियाज़ की हकीकत (रजब के कुंडे)

Kunde ki Niyaz: कुंडे की नियाज़ की हकीकत

22 रज्जब को बर्रे सगीर (हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश) में एक दिन मनाया जाता है, जिसे हम “ कुंडे की नियाज ” या “ कुंडे की ईद ” के नाम से जानते हैं।

तो बेहरहाल आईये इसकी शराई हकीकत क्या है जानने की कोशिश करते हैं।

दरहकीकत कुंडे के ईद  की शरीयत में कोई असल या बुनियाद मौजूद नहीं है, इस तालुक से इमाम जाफर सादिक (रहमतुल्लाहि अलैहि) का वाकिया बयान किया जाता है के इन्हे मनसुब या इन्ही के इसाले सवाब के लिए नजरो नियाज इस दिन किया जाता है

आईये अब गौर करते हैं इसकी हकीकत क्या है, क्या वाकय में शरियते इस्लामिया में कुंडे की किसी ईद का तजकीरा पाया जाता है?


Kunde ki Niyaz कुंडे के नियाज़

कुंडे के नियाज की शुरुआत कहा से हुई?

22 रज्जब को एक शख्स का इंतकाल होता है, अब्दुल्ला इब्ने अब्बास (रजीअल्लाहु अन्हु) खाना खा रहे थे, उतने में उनकी गुलाम/बांदी खबर लेकर आती है। वो खबर सुनकर आप खाना चोढकर खड़े हो जाते हैं।

ख़बर ये थी के साहबी-ए-रसूल अमीर मुआविया (रज़ीअल्लाहु अन्हु) का इंतेक़ाल हो गया हैं। अमीर मुआविया (रज़ीअल्लाहु अन्हु) वो शख़्सियत थी जिनहोने मुनाफ़िक़ो और ख़्वारिजियो पर लोहे का हाथ रखा था। आपके दौर-ए-हुकुमत में ये लोग बेबस हो गए। इनकी हर मुनाफिकाना हरकतों को अमीर मुआविया (रज़ीअल्लाहु अन्हु) ने नाकाम कर दिया था।

लेकिन जैसे ही अमीर मुआविया का इंतेकाल हुआ इन मुनाफ़िक़ो और ख्वारीज़ियो में ख़ुशियों की लहर दौड़ती है के अब दुश्मन मर गया हमारा, और ख़ुशी तो मनानी है। अब खुशी मनाये तो कैसे मनाये? हुकुमत को पता चल जाएगा अगर खुशियां मनाएंगे। तो जाहिर सी बात है के- वक्त का खलीफा इंतेकाल कर गया और कोई खुशियां मनाये तो उसके मुनाफीक होने में कोई शुबा ही नहीं होगी।

लिहाजा तय हुआ के खुशियां ख़ुफ़िया मनाई जाएंगी, अहले मुनाफिक और ख्वारिज अपने लोगों को बुलाओ, खामोशी से समान लाओ, परदे की आड़ में वही बनाओ, आम बर्तनो के बजाए मिटटी के बर्तनो (कुंडो) में मिठाइया बनाओ, वही खावो,वही हाथ धो लो, बचा कुचा खाना वही दफना दो, ताकी बाहर मुसलमानो को पता न चले के अंदर किस चीज की खुशियां मनाई जा रही है।


ये नियाज आम आवाम तक कैसे पोहची?

अब ये चलन काफी जमाने तक ख़वारिज चलाते रहे, उसके बाद अब सुन्नियो को इसमें कैसे शामिल किया जाए इसके लिए नया अकीदा दिया गया के ये नियाज इमाम जफर सादिक (रहमतुल्लाहि अलैहि) की है, अल्लाह रहम करे, जबकी इमाम जाफर सादिक (रहमतुल्लाहि अलैही) एक ताबेईन में से है, और क्योंकि आम अवाम हनफी होती है तो कहा गया के इमाम जाफर सादिक (रहमतुल्लाहि अलैहि) इमाम अबू हनीफा (रहमतुल्लाहि अलैहि) के उस्ताद है, जबकी उनका मिलना और सुन्ना सबित नहीं।

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और फिर अकीदे दिए गए के जो ये नियाज करता है उसका बेड़ा पार हो जाता है, वो कामयाब हो जाता है, उसकी नैया पार हो जाती है, और यह साबित करने के लिए इंडिया के किसी लकड़हारे की कहानी भी बयान की जाती है जो मनगढ़त है। फिर बस लग गए हमारे मुसलमान भाई कुंडे भरने। अल्लाह रहम करे।

» मुस्तफा द्वारा जवाहिरुल मनाकिब 
» तारीख-ए-इस्लाम (शाह मोईन-उद-दीन नदवी) सफा नंबर 371
»तारीख इब्न खलदुन खंड-2, सफा-60


लम्हा-ए-फ़िक्र

अब सवाल ये आया के चलो अगर मान भी ले के (नौजूबिल्लाह) अल्लाह के अलावा किसी के लिए नजरो नियाज करना जायज है तो रसूलअल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बाद उम्मत में सबसे ऊंचा मकाम तो सहाबा का है, उनके नाम से तो कभी हम कोई नियाज कोई ईद नहीं मनाते। नाहीं उनको मनसुब करने वाला कोई दीन मनाने का शरीयत ने हमें हुक्म दिया।

तो फिर ताबेईन में से एक इमाम के लिए खास तौर पर नजरो नियाज करना ये कहा का इंसाफ हुआ, गौर करने वाली बात है मेरे भइयो, कोई आम बात नहीं। याद रखिए इस कुंडे की ईद के अकीदे का शरीयत-ए-इस्लामिया में कोई वजूद ही नहीं। इस कुंडे के ईद की शरियत में ना कोई फजीलत पाई जाती है ना कोई अहमियत, हत्ता के इस ईद का कोई अरबी नाम भी नहीं पाया जाता।

सहाबी-ए-रसूल के इंतेक़ाल पर मुनाफ़िक़ो ने ख़ुशियाँ मनाई बस यही इसकी हकीकत है।


कुंडे की नियाज / कुंडे की ईद एक शराई बिद्दत :

ये नियाज़/ईद शरीयत में एक बिद्दत  है और बिद्दत के तालुक से रसूलअल्लाह (ﷺ) ने सख़्त वईद की अपनी उम्मत को “के बिद्दत मत करना इस दीन में।”

और बिद्दतियो का क्या अंजाम होगा इसके तलुक से सूरह घसिया की आयत 3 और 4 में अल्लाह ताला फरमाता है –

❝ आमिलतुन नासीबा, तसला नारन हामिया ❞

कुछ लोग क़यामत के रोज़ तुम देखेंगे के अमल कर-कर के थके हुए आएंगे, लेकिन हुकम होगा उठा कर फेंक दो इनहे जहन्नुम में।

अल कुरान; सूरा घसिया 88:3-4

इस्लीए क्यूंकी वो अमल वो अकिदा रसूलअल्लाह (ﷺ) के बताए हुए दिन से सबित न था। तो लिहाजा हमें चाहिए के ऐसे मुआमलो में तहकीक करें और ऐसे अमल से बचे जो न शरीयत से सबित हो और न ही सहाबा की जिंदगी में कभी पाया गया हो।

नोट: अगर इस आर्टिकल पर यकिन करना मुश्किल होता है तो बराये मेहरबानी अपने घरों में उर्दू/अरबी कैलेंडर की तवारीख में देख लीजिए 22 रज्जब की तारीख में कौंनसा दिन बयान किया गया है।)

अल्लाह रब्बुल इज्ज़त से दुआ है के:

– अल्लाह हमें हक सुनने की तौफीक दे,
– जब तक हमें जिंदा रखे इस्लाम और ईमान पर जिंदा रखे,
– खात्मा हमारा ईमान पर हो।

!!! वा अखिरू दवाना अनिलहम्दुलिल्लाहे रब्बिल आलमीन!!!

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