गुनाहों से माफी की दुआ | रब्बना ज़लमना अन्फुसना वईल लम तग्फिर लना वतर हमना लनकूनन्ना मिनल खासिरीन “अपने गुनाहों से माफी मांगने और अल्लाह तआला से रहम व करम तलब करने के लिए यह दुआ करनी चाहिए”– رَبَّنَا ظَلَمْنَا أَنفُسَنَا وَإِن لَّمْ تَغْفِرْ لَنَا وَتَرْحَمْنَا لَنَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ रब्बना ज़लमना अन्फुसना वईल लम तग्फिर लना वतर हमना लनकूनन्ना मिनल खासिरीन तर्जमा: ऐ हमारे रब ! हम ने अपनी जानों पर बड़ा जुल्म किया (अब) अगर आप हमारी मगफिरत नहीं फर्माएंगे और रहम नहीं करेंगे तो हमारा बड़ा नुकसान हो जाएगा। 📕 सूरह आराफ़ : 23 वजाहत: यह हज़रत आदम व हव्वा (अ.स) की दुआ है, जो उन्होंने अपनी माफी के लिए अल्लाह तआला से की थी।
गम के वक्त यह दुआ पढ़े रसूलुल्लाह (ﷺ) ने ग़म व मुसीबत के वक्त इस दुआ को पढ़ने के लिये फर्मायाः إِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ اللَّهُمَّ أْجُرْنِي فِي مُصِيبَتِي وَأَخْلِفْ لِي خَيْرًا مِنْهَا ( inna Lillahi Wa inna ilaihi rajeuun , Allahumma Ajurni fi Musibati Wa Akhlifli Khairam Minha ) तर्जमा : हम सब अल्लाह की मिलकियत में हैं और उसी की तरफ जाने वाले हैं, या अल्लाह ! तू मुझे मेरी इस मुसीबत में सवाब दे और मुझे इससे बेहतर बदला इनायत फ़र्मा। 📕 मुस्लिम २१२६
सामान ऐब बताए बगैर फरोख्त करने का गुनाह रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "मुसलमान मुसलमान का भाई है और किसी मुसलमान के लिये अपने भाई से ऐब वाले सामान को ऐब बयान किए बगैर फरोख्त करना जाइज नहीं।" 📕 इब्ने माजा : २२४६, अन उकबा बिन आमिर (र.अ)
सबसे अच्छा मुसलमान कौन है ? अबू मूसा (र.अ) से रिवायत है के, कुछ सहाबा ने पूछा, या रसूल अल्लाह ﷺ ! कौन सा इस्लाम अफज़ल है (यानि सबसे अच्छा मुसलमान कौन है) तो नबी-ऐ-करीम ﷺ ने फ़रमाया: "वह शख्स जिस की जबान और हाथ से दूसरे मुसलमान महफूज रहें।" 📕 बुखारी : ११
नफ़्स की बुराई से पनाह माँगने की दुआ रसूलल्लाह (ﷺ) ने हजरत इमरान बिन हुसैन (र.अ) के वालिद को यह दुआ सिखाई: तर्जमा: ऐ अल्लाह! मेरे दिल में भलाई डाल दे और मेरे नफ़्स की बुराई से मुझे बचा दे। 📕 तिर्मिज़ी: ३४८३
मेहर अदा ना करने का गुनाह रसूलल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया : "जिस आदमी ने किसी औरत से मेहर के बदले निकाह किया और उस का महेर अदा करने का इरादा न हो, तो वह जानी (जीना करने) के हुक्म में है और जिस आदमी ने किसी से क़र्ज़ लिया। फिर उस का क़र्ज़ अदा करने की निय्यत न हो, तो वह चोर के हुक्म में है।" 📕 तरग़ीब २६०२, अन अबी हुरैरह (र.अ)
अजान और इक़ामत के बिच में दुआ रद्द नहीं की जाती अजान और इक़ामत के बिच में दुआ ۞ हदीस : अल्लाह के नबी (ﷺ) ने फ़रमाया : “अजान और इक़ामत के बिच में दुआ रद्द नहीं की जाती, इसीलिए तुम दुआ करो।” 📕 मुसनदे अहमद, 13357
किसी बुराई को देखे तो उसे रोकने की कोशिश करे रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया : "तुम में से जो शख्स किसी बुराई को देखे तो उसे अपने हाथ से रोके अगर इस की ताकत न हो तो अपनी ज़बान से रोके, फिर अगर इस की भी ताकत न हो तो दिल से उस जाने और यह ईमान का सब से कमजोर दर्जा है।" 📕 मुस्लिमः १७७
अच्छी तरह वुजू कर के नमाज़ के लिये मस्जिद जाने की फ़ज़ीलत रसूलल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "तुम में से जो शख्स अच्छी तरह मुकम्मल वुजू करता है, फिर नमाज ही के इरादे से मस्जिद में आता है, तो अल्लाह तआला उस बंदे से ऐसे खुश होता हैं जैसे के किसी दूर गए हुए रिश्तेदार के अचानक आने से उसके घर वाले खुश होते हैं।" 📕 इब्ने खुजैमा : १४११
मुसीबत या खतरे को टालने की दुआ जब किसी मुसीबत या बला का अंदेशा हो, तो इस दुआ को कसरत से पढ़े: “हमारे लिए अल्लाह काफ़ी है और वह बेहतरीन काम बनाने वाला है, हम उसी पर भरोसा करते हैं।” 📕 तिर्मिज़ी : २४३१, अन अबी सईद खुदरी (र.अ)
दुआ के कलिमात को तीन बार कहना रसूलल्लाह (ﷺ) दुआ व इस्तिगफार के कलिमात को तीन तीन मर्तबा दोहराना पसन्द फ़र्माते थे। 📕 अबू दाऊद: १५२४ यह भी पढ़े: Astaghfar ka Taruf, Ahmiyat, Fazilat aur Dua
सफर में गाने सुनना कैसा | Safar me Gaane Sunna Kaisa ? सफर में गाने सुनना कैसा ? हदीस: नबी ए करीम ﷺ ने फरमाया: "जो शख़्स सफ़र की हालत में अल्लाह की याद और ज़िक्र में लगा रहता है तो फ़रिश्ता उसका हमसफ़र हो जाता है। और अगर मौसिकी (गाने या म्यूजिक) में मशगुल रहता है तो शैतान उसके सफर का साथी बन जाता है।" 📕 सहिह अल जामे, हदीस 5706 और भी पढ़े : Safar ki Dua | सफर की दुआ: जानिए कैसे करें अपने सफर को मेहफ़ूज़ ! सवारी पर बैठने के बाद की दुआ कश्ती (स्टीमर) के या पानी से सफर की दुआ सवारी परेशान करे तब की…
मुसीबत के वक्त की दुआ जब कोई मुसीबत पहुँचे या उसकी खबर आए, तो यह दुआ पढ़ेः “इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलाही राजिऊन” तर्जमा : हम सब (मअ माल व औलाद हकीक़त में) अल्लाह तआला ही की मिल्कियत में है और मरने के बाद) हम सब को उसी के पास लौट कर जाना है। 📕 सूर-ए-बकरह: १५६
जिस्म के दर्द का इलाज हजरत उस्मान बिन अबिल आस (र.अ) ने रसूलुल्लाह (ﷺ) की खिदमत में हाजिर हो कर अपने जिस्म के दर्द को बताया तो रसूलल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : जहां दर्द होता हो वहां हाथ रख कर तीन बार “बिस्मिल्लाह” और सात मर्तबा यह दुआ पढ़ो: ( أَعُوذُ بِاللَّهِ وَقُدْرَتِهِ مِنْ شَرِّ مَا أَجِدُ وَأُحَاذِرُ ) “A’udhu Billahi Wa Qudratihi Min Sharri Ma Ajidu Wa Uhadhiru” तर्जमा: मैं अल्लाह और उस की कुदरत की पनाह चाहता हुँ उस तकलीफ़ से जो मुझे पहुँची है और जिस से मैं डरता हुँ। चुनान्चे उन सहाबी ने जब यह कलिमात कहे तो उन का दर्द…