आपस में दुश्मनी रखने का गुनाह आपस में दुश्मनी रखने का गुनाह रसलल्लाह (ﷺ) ने फरमाया : "हर पीर व जुमेरात को (अल्लाह की बारगाह में) आमाल पेश किए जाते है, अल्लाह तआला उन दिनों में हर ऐसे आदमी की मगफिरत फर्मा देता है जो अल्लाह के साथ किसी को शरीक नहीं करता मगर ( उन दो आदमियों की मगफिरत नहीं करता ) जिन के दर्मियान दुश्मनी हो। अल्लाह तआला फर्माता है जब तक यह दोनों सुलह व सफाई न कर लें उन को उसी हाल पर छोड़े रखो।" 📕 मुस्लिम: ६५४६
शिर्क और कत्ल करने का गुनाह रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: "अल्लाह तआला हर गुनाह को माफ कर सकता है, मगर उस आदमी को माफ नहीं करेगा, जो शिर्क की हालत में मर जाए, दूसरा वह आदमी जो किसी (बेगुनाह) मुसलमान भाई को जानबूझ कर क़त्ल कर दे।" 📕 अबू दाऊद: ४२७०
वुजू कर के इमाम के साथ नमाज अदा करने की फ़ज़ीलत रसुलल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : "जिस ने अच्छी तरह मुकम्मल वुजू किया, फिर फर्ज नमाज अदा करने के लिये गया और इमाम के साथ नमाज पढी, उसके (सगीरा गुनाह) माफ कर दिये जाते हैं।" 📕 इब्ने खुजैमा १४०९
गुनाह देख कर खामोश ना रहो कुरआन में अल्लाह तआला फ़रमाता है - "तुम ऐसे अज़ाब से बचो, जो सिर्फ गुनाह करने वालों ही पर नहीं आएगा, बल्कि गुनाह देख कर खामोश रहने वालों को भी अपनी पकड़ में लेगा खूब जान लो के अल्लाह सख्त सज़ा देने वाला है।" 📕 सूर-ए-अनफाल: २५
बच्चों को यह दुआ पढ़ कर दम करें रसूलुल्लाह (ﷺ) हजरत हसन व हुसैन (र.अ) को यह दुआ पढ कर दम किया करते थे : أَعُوذُ بِكَلِمَاتِ اللَّهِ التَّامَّةِ مِنْ كُلِّ شَيْطَانٍ وَهَامَّةٍ وَمِنْ كُلِّ عَيْنٍ لامَّةٍ आऊज़ु बिकालिमातिल्लाहीत ताम्माह वा मीन कुल्ली शयतानीव वा हाम्माह वा मीन कुल्ली अयनील आम्माह तर्जमा: मैं पनाह माँगता हूँ अल्लाह की पूरे पूरे कलिमात के ज़रिए, हर शैतान से और हर ज़हरीले जानवर से और हर नुकसान पहुँचने वाली बुरी नज़र से। 📕 सही बुखारी: 3371
दुनिया की ज़िन्दगी खेल तमाशा है कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है : "दुनिया की ज़िन्दगी खेलकूद के सिवा कुछ भी नहीं है और आखिरत की जिन्दगी ही हकीकी जिन्दगी है, काश यह लोग इतनी सी बात समझ लेते।" 📕 सूरह अनकबूत : ६४ कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता: “यह दुनिया की जिंदगी तो सिर्फ़ खेल तमाशा है, अगर तुम अल्लाह पर ईमान लाओ और तक़वा इख्तियार करो तो वह तूम को तूम्हारा अज्र व सवाब अता फरमाएगा और तुम से तुम्हारा माल तलब नहीं करेगा (और) अगर वह तुम से तुम्हारा माल तलब करने लगे और आखरी हद तक तलब करता रहे तो तुम कंजूसी…
बीमारी से बचने की तदबीरें हज़रत जाबिर (र.अ) बयान करते हैं के मैंने रसूलुल्लाह (ﷺ) को फर्माते हुए सुना के : "बर्तनों को ढांक दिया करो और मशकीज़े का मुँह बांध दिया करो क्योंकि साल में एक ऐसी रात आती है जिस में वबा उतरती है पस जिस बर्तन या मशकीजे का मुँह खुला रहेता है वह उस में उतर जाती है।" 📕 मुस्लिम ५२५८
मोमिन को नाहक़ क़त्ल करने की सज़ा रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया : "हर गुनाह के बारे में अल्लाह से उम्मीद है के वह माफ कर देगा, सिवाए उस आदमी के जो अल्लाह तआला के साथ किसी को शरीक करने की हालत में मरा हो या उस ने किसी मोमिन को जान बूझ कर क़त्ल किया हो।" 📕 अबू दाऊद: ४२७०
वालिदैन की नाफरमानी और जुल्म करने का गुनाह रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया : "तुम जुल्म व सितम करने से बचो ! क्योंकि जुल्म व सितम की सज़ा दूसरी सजाओं के मुकाबले में सबसे जल्दी मिलती है। और वालिदैन की नाफर्मानी से बचो! अल्लाह की कसम वालिदैन का नाफ़र्मान जन्नत की खुश्बू भी नहीं पाएगा। जब के जन्नत की खुश्बू एक हजार साल की दूरी से महसूस होती है।" 📕 तबरानी औसत: ५८२५
हमेशा सच बोलो क्योंकि सच नेकी का रास्ता बताता है रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया: "हमेशा सच बोलो क्योंकि सच नेकी का रास्ता बताता है और सच और नेकी जन्नत में दाखिल करने वाले हैं। तुम झूट से बचो क्योंकि वह गुनाह का रास्ता बताता है और झूट और गुनाह जहन्नम में दाखिल करने वाले हैं।" 📕 तबरानी कबीर :१६२५१, अन मुआविया बिन अबी सुफियान (र.अ)
माँ बाप पर लानत भेजने का गुनाह रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया: “(शिर्क के बाद) सब से बड़ा गुनाह यह है के आदमी अपने माँ बाप पर लानत करे।" अर्ज किया गया: ऐ अल्लाह के रसूल ! कोई अपने माँ बाप पर लानत कैसे भेज सकता है? फर्माया : इस तरह के जब किसी के माँ बाप को बुरा भला कहेगा तो वह भी उसके माँ बाप को बुरा भला कहेगा।” 📕 मुस्लिम : २६३
बुरी मौत से हिफाज़त का जरिया रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : “सदका अल्लाह तआला के गुस्से को ठंडा करता है और इन्सान को बुरी मौत से महफूज रखता है।” 📕 तिर्मिजी: ६६४
सूरह इख्लास तिहाई कुरआन के बराबर है रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया: “क्या तुम में से कोई यह नहीं कर सकता के एक रात में तिहाई कुरआन पढ़ ले ?” सहाब-ए-किराम ने अर्ज किया: भला कोई कैसे तिहाई कुरआन पढ़ लेगा? आपने फर्माया: – सूरह इखलास तिहाई कुरआन के बराबर है।” 📕 मुस्लिम: १८८६, अन अबी दरदा (र.अ)
अल्लाह तआला के साथ शिर्क करने का गुनाह अल्लाह तआला के साथ शिर्क करने का गुनाह कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है : "बिलाशुबा अल्लाह तआला शिर्क को मुआफ नहीं करेगा। शिर्क के अलावा जिस गुनाह को चाहेगा, माफ कर देगा और जिसने अल्लाह तआला के साथ किसी को शरीक किया, तो उसने अल्लाह के खिलाफ बहुत बड़ा झूट बोला।" 📕 सूरह निसा: ४४
MD. Salim Shaikh
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