जानिए: रसूलअल्लाह (ﷺ) रोज़े क़यामत क्यों और किसके खिलाफ गवाही देंगे कि “ए मेरे रब! मेरी कौम ने कुरान को छोड़ दिया।”
आज अल्लाह की किताब (कुरआन-ए-मजीद) से उम्मते मुस्लिमा को दूर करने के लिए ना जाने क्या-क्या हथकंडे इस्तेमाल किए जाते हैं, बाज़ पेड उलेमाओ के जरीए फतावे तक दिए जा रहे हैं के “कुरान पढ़े तौ गुमराह हो जाओगे” नौउजुबील्लाह!
जबकी कुरान से दूरी इख्तियार करने वाले रसूलअल्लाह (ﷺ) की नाराजगी के मुस्तहिक होंगे! बल्की रसूलअल्लाह इनके खिलाफ बात करेंगे जिसके तालुक से अल्लाह रब्बुल इज्जत क़ुरआन में बयान फरमाया –
(अल्लाह के रसूल तुम्हारे ख़िलाफ़ गवाही देंगे और कहेंगे) “ऐ मेरे रब इस क़ौम ने कुरआन को छोड़ दिया” [सूरह फुरकान: 25:30]
तो यहाँ नबी-ए-करीम (ﷺ) देखिये ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ बात करेंगे और कहेंगे के “ऐ अल्लाह! मेरी क़ौम ने कुरआन को छोड़ दिया।”
अंदाज़ा लगाइए जिस नबी-ए-रहमत के तालुक से हम उम्मीद रखते हैं के आप हमारी सिफ़ारिश करेंगे, अल्लाह से शफ़ाअत करेंगे हमारी रोज़े महशर के मुकाम में, (यकीनन करेंगे) लेकिन यही नबी खिलाफ खड़े हो जाएंगे ऐसे लोगों के जो क़ुरान की हिदायत पर गौर नहीं करते, और नहीं इसपर अमल करते थे।
तौ बहरहाल अगर हम चाहते हैं कि सच में नबी-ए-करीम (ﷺ) की शफा-अत नसीब हो तो हमें चाहिए के अल्लाह की हिदायत कुरान-ए-मजीद से अपना रिश्ता जोड़ ले।
इसके माने मफहूम को समझने की, इसके पैगाम पर गौर करने की तलब हम इख्तियार करे।
फ़िर इंशाअल्लाह-उल-अज़ीज़! ये किताब सरापा हमें अल्लाह की हिदायत से जोड़ देगी।
और अगर हमने ऐसा ना किया, तौ बेहरहाल ला-इल्मी किस हद तक हमें नुक्सान पहुंचाती है हम देख ही रहे हैं। (अल्लाह बचाए हमें जहालत के फितनो से!)
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से दुआ है के –
۞ अल्लाह हमें कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,
۞ हम तमाम के लिए कुराने मजीद को पढ़ना, समझना और उसपर अमल करना आसान फरमाये।
۞ जब तक हमने जिंदा रखे इस्लाम और ईमान पर जिंदा रखे।
۞ खात्मा हमारा ईमान पर हो।
۞ वा आख़िरु दावाना अनिलहम्दुलिल्लाहे रब्बिल आ’लमीन !!!
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