रसूलुल्लाह (ﷺ) से पहले अरबों की अखलाकी हालत बहुत ज़्यादा बिगड़ चुकी थी। जुल्म व सितम, चोरी व डाका जनी, ज़िनाकारी और बदकारी बिल्कुल आम थी। जुआ खेलने और शराब पीने का रिवाज बहुत ज़्यादा था। बेहयाई और बेशर्मी इस हद तक बढ़ गई थी के खुले आम बुराइयों करके उस पर फ़ख्र किया जाता था।
मामूली मामूली बातों पर लड़ाइयाँ हो जाती और फिर बरसों तक जारी रहती थीं, सूद की नहूसत में पूरा मुआशरा जकड़ा हुआ था। औरतों के साथ इन्तेहाई बेरहमाना सुलूक किया जाता था, उन्हें मीरास में हिस्सा नहीं दिया जाता था और लड़कियों की पैदाइश को अपने लिये ज़िल्लत व रुसवाई का सबब समझ कर बाज़ कबीले वाले अपने ही हाथों ज़िन्दा दफन कर दिया करते थे, कमज़ोरों, यतीमों और बेकसों के साथ बड़ी ना इन्साफी बरती जाती थी और उन के हुकूक को पामाल किया जाता था।
इस तरह की और भी बहुत सी दूसरी बुराइयाँ उनमें रिवाज पा चुकी थीं।
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