हजरत उमर फारुक (र.अ) ने अपने जमान-ए-खिलाफत में किसरा को फतह करने के लिए हज़रत सअद बिन अबी वक्कास (र.अ) की इमारत में एक बड़ा लशकर ईरान की तरफ रवाना फर्माया।
रास्ते है उन्हें दर्याए दज्ला मिला उस को पार करने के लिए उनके पास न कोई कश्ती थी और न ही कोई दूसरा रास्ता और दर्या का पानी भी काफी चढ़ा हुआ था।
हजरत सअद (र.अ) ने लोगों को दर्या पार करने की दावत दी। इस पर एक जमात तय्यार हो गई और उस ने अपने घोड़े दर्या में डाल दिए।
फिर हज़रत सअद ने तमाम लोगों को दर्या में कूद जाने का हुक्म दिया। इस पर तमाम लोग दर्याए दज्ला में अपने घोड़ों के साथ कूद पड़े, घोड़े दर्या में इस तरह चल रहे थे जैसे जमीन पर हों और वह लोग दर्या पार करते हुए आपस में इस तरह बातें कर रहे थे जिस तरह जमीन पर चलते हुए किया करते है, हालांके दर्या बहुत जोश में था।
ईरानियों ने जब यह मन्जर देखा तो घबरा गए और अपना साजो सामान छोड़ कर भाग निकले और मुसलमानों को अल्लाह ने फतह दी।
उन की वफ़ात सन ५५ हिजरी में हजरत मुआविया (र.अ) के दौरे खिलाफत में हुई।