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Seerat un Nabi (ﷺ) Series: Part 2
पिछले पोस्ट में हमने देखा नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की आमद पर मक्का में बुतों का मुह्ह के बल गिर जाना, अबरष नाम के काहीन की तरफ से मक्का में तमाम बुतों के रुस्वा होने की खबर देना और इस से बचने के लिए एक लड़की की क़ुरबानी मांगना, अब देखते है आगे।
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माबूदों को खुश करने लड़की की क़ुरबानी
सब डरे हुए और सहमे हुए थे।
अबरश ने कहा, तुम्हारे माबूद कुर्बानी चाहते हैं। कुर्बानी दे कर आने वाले फ़ित्ने से अपने को बचा लो। उमर अबरश के सामने खड़े थे।
उन्हों ने कहा, किस चीज़ की क़ुरबानी दें हम ? अबरश ने कहा, इस का जवाब भी खोपड़ी देगी। लोगों की निगाहें फिर खोपड़ी की तरफ उठ गयीं। उन्हों ने देखा कि यकायक मोटे लफ्जों में लिखा हुआ नजर आया, ‘एक दस साल की खूबसूरत लड़की।’ सब यह देख कर ताज्जुब में पड़ गये।
अबरश ने खोपड़ी को बोसा दिया और आम लोगों को खिताब कर के कहा, मेरे इल्म ने मुझे यह बताया है कि “वह आदमी अपनी लड़की को कुर्बान करे, जो पहले अपनी नौ लडकियों को जिंदा गाड़ चुका हो।”
अरबों में लड़कियों को जिंदा गाड़ देने की रस्म आम थी। संगदिल और बे-दर्द बाप अपनी मासूम बच्चियों को जिंदा गाड़ देते थे और इस पर बड़ा घमंड करते थे। अक्सर लड़कियां तो पैदा होते ही क़त्ल कर डाली जाती या जिंदा दफन कर दी जातीं, पर कभी-कभी ऐसा भी होता कि जब लड़की बड़ी हो जाती, मीठी बातें करने लगतीं, तो बे-दर्द बाप पहले गढ़ा खोद आता और फिर लड़की को अच्छे कपड़े और जेवर पहना कर बस्ती से बाहर ले जाता।
उस को गढ़े के किनारे पर खड़ा कर के धक्का दे देता, लड़की चीखती-चिल्लाती खुशामदें करती, पर जालिम बाप उस की आवाज पर तनिक भी ध्यान न देता, बल्कि ऊपर से ढेले मार-मार कर मिट्टी डाल देता और इस तरह अपने कलेजे को जिंदा गाड़ देता और वापस लौट आता और इस संगदिल रस्म पर बड़ा घमंड करता।
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नौ लडकियों को जिंदा गाड़ने वाला
अबरश की बात सुन कर एक अधेड़ उम्र का आदमी बोला, आज में पूरे फक्र से कहता हूं कि मैं अपनी नौ लड़कियों को जिंदा गाड़ चुका हूँ, खुशकिस्मती से मेरी दसवीं लड़की मौजूद है। उस की उम्र परसों दस साल की हो जाएगी, तब उसे दफ़न,कर दूंगा। क्या वह लड़की कुर्बानी के लिए मुनासिब है ?
अबरश ने उस बद्दू को देख कर कहा, कैस! तुम वाक़ई खुशकिस्मत हो कि अपनी दस साल की बेटी को जिंदा दफ़न कर के अपने मांबूदों को खुश कर लोगे और तुम्हारे इस कारनामे पर दुनिया रश्क करेगी।
कैस बिन आसिम का बनी तमीम कबीले से ताल्लुक था। वह बड़ा संगदिल था, अपनी नौ लड़कियों को जिन्दा गाड़ देने के बावजूद वह दसवीं लड़की को जिन्दा गाड़ देने पर तैयार हो गया था।
उस ने सीना फुला कर कहा, परसों में अपनी लड़की को गाड़ दूंगा, बस्ती के बाहर लोग जमा हो जाएं। इस क़ुरबानी के बाद कोई डर बाकी न रहेगा।
यह सुन कर लोगों को तसल्ली हुई।
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संगदिल बाप
जिस जमाने का जिक्र हम कर रहे हैं, उस जमाने में अरब के कोने में बुतपरस्ती का चलन था। हर गांव और कस्बे में बूतखाने थे। बुतों की पूजा जोर-शोर से होती थी। बहुतों ने तो ऊंट की खालों के बुतखाने बना रखे थे। जहां जाते, इन बुतखानों को साथ ले जाते और बुतों की पूजा करते।
कैस बिन आसिम बड़ा खुश था। खुशी की वजह यह थी कि बैतुल हराम की भारी भीड़ में एक आदमी भी ऐसा न निकला, जिस ने अपनी नौ लड़कियों को जिंदा दफ़न किया हो। अब हर आदमी उसे इज्जत की निगाहों से देखने पर मजबूर है। खुशी से फूला हुआ वह मकान पर पहुंचा।
मकान पर पहुंचते ही उसकी दस साला लड़की उस से मिलने लपकी। उस ने अपने छोटे-छोटे नाजुक हाथ फैलाते हुए कहा, ‘अच्छे अब्बा! तुम आ गये, मैं तो तुम्हारा इंतिज़ार कर रही थी।’
बाप की मुहब्बत ग्रालिब आ गयी, उस ने लड़की को गोद में उठा लिया, उस से प्यार किया। कैस ने मारे मुहब्बत के उसे उठा कर सीने से लगा लिया। पर तुरन्तं ही चौंका, संभला और जल्दी से लड़की को गोद से उतार दिया। ऐसे फेंक दिया जैसे इंसान किसी चीज के धोखे में सांप को उठा ले और पहचान कर तुरन्त फेंक दे।
लड़की गिरते-गिरते संभली। उस ने अपने बाप को देखा और प्यार भरे लहजे में पूछा, ‘क्या आप मुझ से खफ़ा हो गये ? खफा न हो, आप और अम्मी के अलावा मेरा इस दुनिया में है कौन ?’
कैस की आंखों से रहम और मुरव्वत के बजाए जंगली चमक पैदा हो गयी थी। उस ने कड़क कर कहा, जमीला! क्या तुम भोली-भाली बातों से मेरे दिल को मोम बनाना चाहती हो ? नहीं, मैं मोम नहीं बन सकता।
चली जा! जा, मेरे सामने से दूर हो जा ।
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मासूम लड़की बाप के कड़े तेवर देख कर डर गयी और बाप से लिपट गयी।
कैस ने उस का हाथ पकड़ कर झटक दिया और उसे तेज और गुस्सा भरी हुई नजरों से घूरने लगा। जमीला ने आज तक उस की ऐसी नजरें न देखी थीं। वह कांप कर अलग खड़ी हो गयी।
कैस की बीवी सलमा करीब ही खड़ी थी। जमीला से अपनी नजर फेरते हुए अपनी बीबी से बोला, आज जो हवा का तूफ़ान आया, तूफ़ान के बाद जो रोशनी और चमक हुई, तुम ने देखी? .. हां, देखी! बड़ा सख्त तूफ़ान था। मैं तो समझती थी कि मकानों की छतें उड़ जाएंगी, दीवारें गिर पड़ेंगी, लेकिन हमारे माबूदों ने हम पर मेहरबानी की।
तूफ़ान निकल गया, मगर रोशनी और चमक ! मैं ने अपने होश में न ऐसी रोशनी देखी और न ऐसी चमक। बेशक ! न देखी होगी ! कुछ खबर है कि हम पर क्या बला आने वाली है?
सलमा ने घबरा कर कैस को देखते हए कहा, नहीं ! दुनिया में इन्किलाब आने वाला है क्या ?
कैस ने गौर से सलमा को देखकर कहा, तुम ने तो ठीक समझा सलमा! कोई आदमी हमारे माबूदों के खिलाफ उठने वाला है।
सलमा ने हैरत से कहा, हमारे माबूदों के खिलाफ़……क्या उस का कोई और माबूद है ?
जरूर होगा। अजीब बात है यह तो!
निहायत अजीब ! अबरश ने बतलाया है कि हजरत मुहम्मद सल्ल. नामी कोई आदमी हमारे माबूदों के खिलाफ आवाज उठाने वाला है।
में हजरत मुहम्मद सल्ल० को जानती हूं और मैं ही क्या कौन नहीं जानता, वह मक्के के सरदार के भतीजे हैं, बड़े नेक, बड़े रहमदिल, बड़े सच्चे, बड़े अमीन ! आखिर उन्हें क्या पड़ी है कि हमारे माबूदों की बुराई करें ? लेकिन ऐसा होगा । क्या तुम नहीं जानती कि आज तक उन्होंने किसी बूत के आगे सज्दा नहीं किया ?
सही है, मैं ने भी ऐसा ही सुना है। लेकिन इस से यह कैसे साबित हुआ कि वह बूतों के खिलाफ आवाज उठाने वाले हैं। अबरश कहता है और वह झूठ नहीं बोल सकता।
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मगर वह आबादी में रहते नहीं, सुनती हूं कि हिरा की गुफा में तन्हा पड़े रहते हैं। हां, वह चार-चार, पांच-पांच दिन तक नजर नहीं आते। उसी गुफा में ठहरे रहते हैं, सिर्फ़ जो का सत्तू रखते हैं। खैर यह तो है ही, पर……सलमा! आज मुझे बड़ी खुशी है। बैतुलहराम के हजारों मज्मे में मेरा सिर ऊंचा रहा।
क्या बात हुई ? मेरे सरताज!
अबरश ने आने वाले फ़िल्ने को दूर करने के लिये एक तदबीर बतायी है। उस ने कहा कि जो आदमी अपनी नौ लड़कियों को जिन्दा दफ़न कर चूका हो और उस की दसवीं लड़की और हो, अगर वह उस लड़की को जिंदा दफ़न कर दे, तो आने वाले फ़ित्ने से निजात मिल सकती है। उस वक्त उस तमाम मज्मे में एक आदमी भी ऐसा न मिला, जिस ने नौ लड़कियों को दफन किया हो, सब सिर झुकाए खामोश और शर्मिन्दा थे। तब मैं ने कहा कि मैं ऐसा हूं।
पूरे मज्मे ने हैरत और इज्जत की नजरों से मुझे देखा। क्या फख्र है की बात नहीं सलमा ?
सलमा का चेहरा फीका पड़ गया। वह जमीला से बड़ी मुहब्बत करती थी। कैस की बातों से वह समझ गयी थी कि जिस जमीला को उसने सीने से लगाया, हजारों मुसीबतें उठा कर बड़े लाड-प्यार से पाला, अब उस की कुर्बानी का वक्त आ गया है। इस ख्याल से उस का दिल हिल गया। कलेजा मुहं को आने लगा। आंखों में आंसू आ गये।
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सलमा अब तक तो सब्र किये रही, लेकिन अब सब्र का दामन छुट चुका था, शौहर के सामने दोनों हाथ जोड़े खड़ी हो गयी। बोली, मेरे सरताज! इस इम्तिहान से मुझे बाज रखो। मुझ बद-नसीब के दिल में जमीला की शक्ल ने भोली-भाली बातों ने जगह कर ली है, ऐसा लगता है, मेरी जिंदगी उस की जिंदगी के साथ जुड़ी हुयी है, इसलिए मेरे प्यारे शौहर ! जमीला को मेरे लिए बाक़ी रखो।
कैस की आंखों से चिंगारियां निकलनी लगी। उस ने गजबनाक लहजे में कहा, कमअक्ल औरत ! लड़की की मुहब्बत में डूबी रहने वाली मूर्ख !
क्या जमीला को जिंदा रख उस की शादी करूं ? किसी को अपना दामाद बनाऊं? कसम है लात व उज्जा की ! ऐसा कभी न होगा!
सलमा ने रोते हुए कहा, आप जमीला की शादी ही न करें, वह तमाम उम्र कुंवारी बिता लेगी।
कैस गुस्से से कांपने लगा, बोला, जलील हस्ती! यह तो और जिल्लत की बात है, दुनिया कहेगी, कैस की बेटी को किसी ने कबूला नहीं ! मैं इस जिल्लत को भी सहन नहीं कर सकता !
सलमा ने आंसू बहाते हुए कहा, मुकद्दस माबूदों के लिए भोली भाली जमीला पर रहम करो, उसे बचा लो!
कैस ने कड़क कर कहा, नहीं, हरगिज नहीं ! यह नादानी छोड़ो! उठो, देखो जमीला सामने खड़ी सब कुछ देख रही है। परसों वह जिन्दा दफ़न की जाएगी। आज ही से उसे सजाना शुरू कर दो। यह कहते ही कैस वहां से चला गया।
सलमा उठ खड़ी हुई। वह गम से बोझल हो रही थी। जब कैस चला गया, तो जमीला सलमा के पास आयी। उसने आते ही कहा, अम्मी ! तुम खामोश क्यों हो ? अब्बा के सामने हाथ क्यों जोड़ रही थीं? आज अब्बा खफ़ा क्यों हैं ? वह मुझ से भी खफ़ा लगते हैं, क्यों?
जमीला की बातें सुन कर सलमा बेचैन हो उठी। उस ने उसे सीने से लगा लिया, खूब भींचा!
सलमा रोती जा रही थी और जमीला को भींचती जा रही थी। उसे इस तरह रोते देख जमीला तड़प उठी, बोली, रोओ नहीं, नहीं तो में भी रोऊंगी।
सलमा जमीला की बात सुनते ही चुप हो गयी और ठंडी आह भर कर कहा, मेरी आंखों की ठंडक ! तू न दुखी हो, मैं अब न रोऊंगी।
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कुछ देर बाद सलमा घर के काम-काज में लग गयी और जमीला खेलने लगी।
आज सलमा का दिल किसी काम में नहीं लग रहा था। जब वह जमीला को देखती या जमीला का विचार आता, तो उस के दिल में हक उठती, जमीला अब सिर्फ दो दिन और जिन्दा रहेगी। आंसू जारी हो जाते। बड़ी बेचैनी से उस ने वह दिन और दूसरा दिन बिताया।
तीसरे दिन दोपहर के वक्त जमीला को नहलाया गया, नहला कर बाल सुखाये गये, सर में तेल डाला गया, कंघी की गयी, चोटी गंथी गयी। मासूम ज़मीला खुश हो रही थी। उसे क्या मालूम कि उसे मौत की गोद में देने की तैयारियां हो रही हैं। उस वक्त बहुत सी औरतें घर में जमा हो गयी थीं। सभी हंस-बोल रही थीं, लेकिन सलमा का चेहरा उतरा हुआ था और ग़म से निढाल हो रही थी।
जब सूरज ढल गया तो कैस और उस के पीछे बहुत से आदमी उस के मकान पर आये। कैस के साथ जो लोग आये थे, वे सब के सब शहर के जाने-माने लोग थे। उन के साथ अबरश भी था। ये सभी सीधे जमीला के पास पहुंचे।
जमीला को घेरे हुये औरतें एक ओर खड़ी हो गयीं। अबरश ने आगे बढ़कर जमीला को देखा। जमीला उस वक्त बेहद खूबसूरत लग रही थी। बूढ़ा काहिन उसे देख कर हैरान रह गया। कुछ देर उसे टकटकी लगाये देखता रहा । जमीला ने शर्मा कर सर झुका लिया।
अबरश बोला, कैस ! ऐसी ही बच्ची की कुर्बानी की जरूरत थी। पाक हुबल तुम पर अपनी बरकतें नाजिल करेंगे, फिर जमीला के सर पर हाथ रखते हुए उस ने कहा, बेटा ! तेरी कुर्बानी हमारी मुसीबतों का खात्मा कर देगी।
जमीला उसकी बात समझ न सकी। भोला चेहरा और मासूम आंखें उठा कर उसे देखने लगी। अबरश ने कैस से कहा, चलो, जमीला को ले चलो!
कैस ने कहा, जमीला चलो। जमीला ने पूछा, कहां चलें अब्बा! कैस ने कहा, हमारे साथ !
जमीला उठ खड़ी हुयी, वह चली, उस के पीछे सब चल पड़े, पर ग़म से निढाल सलमा के एक कदम भी न उठ सके। वह चकरायी, संभलना चाहा, न संभल सकी, गश खा कर गिर पड़ी।
सब जा चुके थे, मकान के भीतर कोई न था जो उस औरत को संभाल पाता।
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भयानक कुर्बानी
कैस के मकान के सामने सैकड़ों आदमी खड़े थे। बहुत सी औरतें डफ लिए खड़ी थीं। इन औरतों और मदों में हर तबके के लोग थे। जिस वक्त जमीला को उन्होंने देखा, तूरन्त ‘हबल की जय, लात की जय’ के नारे बूलन्द करने लगे। औरतों ने दफ़ बजा-बजा कर गीत गाना शुरू किये। इन गीतों में बूतों की तारीफ़ थी, अरब और अरब के कबीलों की तारीफ़ थी।
अब इस मज्मे ने जुलूस का रूप ले लिया। सबसे आगे अबरश एक हाथ में खोपड़ी और एक हाथ में हड्डी लिए, हड्डियों की माला पहने, सीना और कंधे पर बाल बिखेरे हुए जा रहा था। उस के पीछे काहिनों और आराफ़ की एक जमाअत थी। ये सभी लम्बे ऊनी जुब्बे पहने हुए थे, जो इतने लम्बे थे कि धरती पर घसिट रहे थे। उनके हाथों में भी इंसानी हड्डियां थीं। इन के पीछे पुजारियों का गिरोह था, जो घड़ियाल, शंख, और तालियां बजा रहे थे। पुजारियों के पीछे औरतें थीं, सभी तड़क-भड़क कपड़े पहने हुए थीं। अक्सर नव जवान औरतें दफ़ बजा बजा कर गा रही थीं।
इन्हीं औरतों के घेरे में मासूम जमीला थी, जिसे कुछ नहीं मालूम कि, क्या होने जा रहा है। औरतों के पीछे कुछ बा-असर और दौलतमन्द आराबी थे। ये सब लोग बिल्कुल खामोश थे। कैस बिन आसिम भी उन के साथ था। उन के पीछे आम लोग थे, जो थोड़ी-थोड़ी देर से बूतों का नाम ले-लेकर उन की जय पुकारते थे।
इस तरह यह जुलूस आबे जमजम के सामने पहुंचा। जमजम के दोनों तरफ़ नायला, असाफ़ दो बुत थे। तमाम मज्मा उन बूतों के सामने सज्दे में गिर पड़ा। थोड़ी देर के बाद जब उन्होंने सर उठाया तो सब के माथे धूल में सने थे।
अब ये लोग शहर से बाहर की ओर चले। इसी तर्तीब से यहां तक माए भी थे। यहां आ कर मज्मा बहत कुछ बढ़ गया था। अब इस मज्मे में ऐसे-ऐसे लोग शामिल हो गये थे, जिन की गोदों में दूध पीती बच्चियां थीं। बुतपरस्तों का एक गिरोह मक्का से निकल कर बाहर एक खुले मैदान में पहुंचा। यह तमाम रेगिस्तान था। सफ़ेद-सफ़ेद रेत चमक रही थी।
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अभी ये लोग मक्का से थोड़ी दूर चले थे कि सामने से एक चालीस साला खूबसूरत शख्स आते हुए नजर आए। यह अरब के बहुत ही खूबसूरत थे। चेहरे से रोब व जलाल जाहिर था कि खुली आंख से न देखा जाता था जब वह उस मज्मे के करीब आये तो अबरश ने उन्हें देखा, मगर चेहरे पर छाये रौब की वजह से न देख सका और नजरें झुक गय।
बह अरब बढ़ते रहे। जब वह अबू तालिब के करीब पहुंचे, अबू तालिब ने मुहम्बत भरी नजरों से देख कर कहा… ‘आंखों की ठंडक! तुम इस धूपमें ऐसी गर्मी के वक्त कहां से आ रहे? वह शख्स रुक गये। उन्होंने जबाब दिया, ऐ चचा ! मैं हिरा की गुफा से आ रहा हूं।
अबू तालिब ने कहा, प्यारे मुहम्मद ! चचा की जान! तुमने क्यों अपनी जान पर इतनी मशक्कत डाल रखी है, क्या तुम्हें अपनी सेहत का भी ख्याल नहीं ? जाओ किसी साएदार जगह में जा कर आराम करो।
यह शख्स हजरत मुहम्मद सल्ल. थे। वह अपने चचा अब तालिब को सलाम कर के चले गये। उन्हों ने न मज्मे की तरफ़ देखा, न यह मालूम किया कि यह मज्मा कहां और क्या करने जा रहा है ?
जब आप दूर निकल गये, तो अबरश ने कहा, कितना शानदार, खबसूरत और शरीफ़ इन्सान है। हुबल की कसम ! मैंने पहले कभी ऐसा कोई इन्सान नहीं देखा; लेकिन उसकी तरफ़ से खानदानों के जलील होने का डर है।
एक बूढ़ा आदमी अबरश के पीछे था। उसका नाम वरका बिन नौफ़ल था। वरका अरबी भाषा के माहिर थे। तोरात और इंजील का पूरा इल्म रखते थे। उन्हों ने कहा, अबरश, अन्देशा न करो। अगर हमारे खुदाओं में यह ताकत है कि वे अपनी रुसवाई पर रुसवा करने वाले को सजा दे सकें, तो वे खुद सजा दे लेंगे, हम क्यों चिन्ता करें। अबरश ने कहा, तुम सच कहते हो वरका ! मगर मुझे डर है कि शायद वे सजा न दे सकें।
वरका ने किसी कदर जोश में आकर कहा, अगर वे सजा नहीं दे सकते तो फिर खुदा कैसे ?
अबरश ने हैरान हो कर वरका की ओर देखते हुए कहा, यह तुम कहते हो ? वरका तुम भी, मुर्तद (विधर्मी) हो गये क्या ! मुर्तद नहीं हूं। तुम सब मक्का वाले सारे अरब के बाशिंदे अच्छी तरह जानते हो कि मैं अरबी जानता हूं, तोरात और इन्जील का माहिर हूं, पर अपने मजहब पर कायम हूँ…पर यह मेरा एतकाद है कि खुदाओं में इतनी तो ताकत जरूर होनी चाहिये कि वे अपने इन्कारियों को सजा दे सकें और पुजारियों को इनाम दे सकें।
तुम सच कहते हो, वरका!
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यह तमाम मज्मा अभी तक बढ़ा चला जा रहा था, यहां तक कि वह मक्का से एक मील दूर निकल आया। चूंकि वह धीरे-धीरे चल रहा था, इसलिए बड़ी देर में वहां पहुंचा। उस वक्त सुरज तीन चौथाई मंजिलें तै कर चुका था। धूप में अब वह चमक और तेजी भी न रही थी, जो अब से तीन घंटे पहले थी।
तमाम मज्मा रेत के एक बड़े ढेर के पास रुका। पुजारियों ने यहां पहुंच कर घंटे और शंख बजाने शुरू किए। कुछ देर के बाद एक आदमी बढ़ा। उसने कहा, ऐ गैरतमन्द अरब ! मैं अपनी बड़ाई बाक़ी रखने के लिए अपनी बेटी को जिंदा दफ़न करता हूं।
उस आदमी। की गोद में तीन साल की एक मासूम लड़की थी। उस ने लड़की को जमीन पर बिठा दिया और दोनों हाथ से रेत हटाकर गढ़ा ! खोदने लगा, यहां तक कि देखते-देखते उस संगदिल बाप ने लड़की को गढ़े में फेंक, जल्दी-जल्दी उस पर रेत डालना शुरू कर दिया। लड़की चीखती-चिल्लाती रह गयी। रेगिस्तान का एक-एक जर्रा तो उस चीख से कांप उठा, लेकिन न पसीजे तो वे इन्सान न पसीजे, जो भेडिये की शक्ल में वहां मौजूद थे।
फिर क्या था, इस के बाद जो लोग लड़कियां लेकर आये थे, सब ने मासूम लड़कियों को गढ़े खोद-खोद कर दफ़न करना शुरू कर दिया। अब कई आदमियों ने मिल कर एक बड़ा और गहरा गढ़ा खोदा। जब गढ़ा तैयार हो गया, तो कैस जमीला को लेकर आगे बढ़ा और गढ़े के किनारे जा खड़ा हुआ। जमीला देख चुकी थी कि गढ़ों में लड़कियां दफ़न की गयी हैं । उसे इस का एहसास हो चला था कि जिस गढ़े के किनारे वह खड़ी है, उसमें वह दफ़न की जाएगी। उस ने हसरत भरी नजरों से अपने बाप कैस की तरफ़ देखा, कहा, प्यारे अब्बा ! क्या तुम मुझे इस गढ़े में दफ़न करने के लिए लाये हो?
कैस ने कहा, हां, जमीला! तुमने ठीक समझा। अरब में लड़कियों के रहने-सहने और पलने-बढ़ने की गुंजाइश नहीं है।
जमीला घबरा गयी। उस ने पूछा, मेरा कसूर क्या है? तुम मुझे क्यों बफन करना चाहते हो।
कैस ने कहा, हमारी खानदानी बड़ाई और निजी गैरत हम को ऐसा करने पर मजबूर करती है।
जमीला रोने लगी। ..
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उस ने हाथ जोड़ कर कहा, अब्बा ! प्यारे अब्बा, अगर तुम मुझे खाना और कपड़ा नहीं दे सकते, मत दो। मैं नंगी और भूखी रह लूंगी… आह अब्बा ! अभी मुझे दफ़न न करो। यह कहते ही जमीला कस से लिपट गयी और उसकी नगिसी आंखों से आंसू की धार बहने लगी।
कैस की दरिंदगी ने जोश मारा, उस ने कड़क कर कहा, अभी दफ़न न करू, तो क्या तुझे इसलिए जिंदा रखू कि तू बड़ी होकर ब्याही जाए। कोई आदमी मेरा दामाद बने, तमाम अरब में मेरा सर जिल्लत से झुक जाए। कभी नहीं, हमारे खानदान में कोई लड़की जिंदा नहीं रखी गयी। जमीला का खूबसूरत चेहरा उतर गया। मौत की तस्वीर उसकी आंखों में घूम गयी। वह जल्दी से अपने बाप के पांवों पर गिर पड़ी। उस ने कहा प्यारे अब्बा! मुझे बचा लो।
बेरहम बाप ने जमीला को उठा कर गढ़े में फेंक दिया। गढ़ा गहरा मगर तंग था। जमीला औंधे मुंह गिर पड़ी। कैस ने जल्दी-जल्दी गढ़े में रेत गिराना शुरू कर दिया। जमीला उठने की कोशिश कर रही थी लेकिन रेत इस तेजी से उस के ऊपर गिर रही थी कि उसे उठ कर खडी होने की मोहलत न मिलती थी।
लड़की चीख-चीख कर रो रही थी, लेकिन कैस पर उस के रोने का कोई असर न था। वह बराबर रेत डालने में लगा हुआ था। जमीला का दम घुटने लगा, वह और जोर से चीखने लगी। बेरहम बाप ने और तेजी से रेत डालना शुरू किया। इन्सानों की उस भीड़ में एक आदमी भी ऐसा न था, जिस ने जरा भी रहम दिखाया हो और उस मासूम बच्ची को बचाने की कोशिश की हो। धीरे-धीरे लड़की की आवाज बन्द होने लगी। रेत बराबर डाली जाती रही, यहां तक कि बच्ची की आवाज पूरी तरह बन्द हो गयी।
घंटे और शंख के आवाज में तेजी आ गयी। कैस उठ कर खड़ा हो गया। वह अब बहत खुश था, जैसे उस ने कोई बहुत बड़ा और अहम काम अन्जाम दिया हो। सूरज इन्सानों की संगदिली पर मातम करता हुआ डूब चुका था। जब
रात हो गयी तो सब मक्का वापस हो गये।
To be continued …
इंशा अल्लाह सीरीज का अगला हिस्सा कल पोस्ट किया जायेगा ….
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