रसूलुल्लाह (ﷺ) जब किसी बीमार की इयादत के लिये जाते या आप (ﷺ) की खिदमत में बीमार को हाज़िर किया जाता तो आप यह दुआ पढ़ते:
اَللَّهُمَّ رَبَّ النَّاسِ مُذْهِبَ الْبَاسِ اشْفِ أَنْتَ الشَّافِيْ لَا شَافِيَ إِلَّا أَنْتَ شِفَاءً لَا يُغَادِرُ سَقَمًا
ALLAHumma Rabbannasi Muzhibal-baasi-shfee Antashhaafi La Shaafi Illa Anta Shifa-an La Yughaadiru Saqama
तर्जमा : “ऐ अल्लाह! लोगों के रब्ब! बीमारी को दूर करने वाले! शिफ़ा ‘अता फरमाए| तू ही शिफ़ा देने वाला है। तेरे सिवा कोई शिफ़ा देने वाला नहीं। ऐसी शिफ़ा ‘अता फरमा के जिसके बाद बीमारी बाक़ी न बचे।”
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