10 Rabi-ul-Akhir | Sirf Panch Minute ka Madarsa
1. इस्लामी तारीख
मुसलमानों पर कुफ्फार का जुल्म व सितम
कुफ्फार व मुशरिकीन मुसलमानों पर बहुत ज्यादा जुल्म व सितम ढाते थे और दीने हक कबूल करने की वजह से उन के साथ इन्तेहाई बे रहमाना सुलूक करते थे। चुनान्चे उमय्या बिन खल्फ अपने गुलाम हज़रत बिलाल हबशी (र.अ) को तपती हुई रेत पर कभी पीठ के बल लिटा कर तो कभी पेट के बल लिटा कर भारी पत्थर रख देता और उन्हें मारते हुए इस्लाम छोड़ने को कहता, मगर इस हालत में भी हज़रत बिलाल (र.अ) “अहद अहद” कहते रहते यानी एक ही ख़ुदा(अल्लाह) को पुकारते।
इसी तरह हज़रत अम्मार बिन यासिर (र.अ) और उनके वालिदैन जब मुसलमान हए तो कूफ्फार उन्हें बेपनाह तकलीफें पहुंचाते थे। जब हुजूर (ﷺ) , उन के पास से गुजरते, तो उनकी हालते ज़ार को देख कर फरमाते :
“यासिर के खानदान वालो! सब्र करो, तुम्हारा ठिकाना जन्नत है।”
हजरत अम्मार बिन यासिर के वालिद और वालिदा को मुशरिकीन ने तकलीफ पहुँचाते हुए शहीद कर डाला था। अलग़र्ज़ कुफ्फार ने मुसलमानों को तकलीफ पहुंचाने में कोई कमी नहीं छोड़ी, गुलामों से ले कर मुअज़्ज़ज़ लोगों तक को सताया गया, दरख्तों पर लटकाया गया, पैरों में रस्सियाँ बांधकर घसीटा गया, पेट और पीठ पर पत्थर की तपती हुई सिलें भी रखी गई। ग़र्ज़ हर तरह मुसलमानों को ज़ुल्म व सितम का निशाना बनाया गया। मगर सहाबा-ए-किराम को ईमान से नहीं हटा सके। सहाबा ने तमाम मुसीबतों को बर्दाश्त करके दीने हक़ को सीने से लगाए रखा।
2. हुजूर (ﷺ) का मुअजीजा
दरख्त का आप (ﷺ) की खिदमत में आना
हज़रत बुरैदा (र.अ) फ़र्माते हैं के एक देहाती रसूलुल्लाह (ﷺ) के पास आकर कहने लगा: मैं इस्लाम कबूल कर चुका हुँ। अब मुझे कोई चीज़ दिखाइए जिस से मेरा ईमान बढे,
तो रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया: उस दरख्त के पास जा कर कहो रसूलुल्लाह (ﷺ) बुला रहे हैं, उस ने जा कर कहा, तो वह दरख्त दाए बाएं जानिब झुका और फिर जड़ों से अलग हो कर रसूलुल्लाह (ﷺ) के पास आया और सलाम किया, उस देहाती ने कहा : बस या रसूलल्लाह! फिर वह दरख्त आप (ﷺ) के कहने पर वापस अपनी जगह चला गया और जड़ों से मिल गया।
📕 दलाइलुन्गुबुव्वहलिअबी नएम : २८१
3. एक फर्ज के बारे में
अमानत का वापस करना
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:
“अल्लाह तआला तुम को हुक्म देता है के जिन की अमानतें हैं उनको लौटा दो।”
फायदा : अगर किसी ने किसी शख्स के पास कोई चीज़ अमानत के तौर पर रखी हो तो मुतालबे के वक़्त उसका अदा करना जरूरी है।
4. एक सुन्नत के बारे में
मोहताजगी व जिल्लत से पनाह माँगना
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
फक्र व मोहताजगी और जिल्लत से इस तरह पनाह माँगा करो :
“हम अल्लाह की पनाह चाहते हैं, फक्र व फाका और जिल्लत से और इससे के हम किसी पर जुल्म करें, या हम पर कोई जुल्म करे।“
5. एक अहेम अमल की फजीलत
हलाल रोज़ी हासिल करना
रसुलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:
“जिस ने हलाल रोज़ी खाई और सुन्नत के मुताबिक अमल किया और लोग उस के जुल्म से महफूज रहे, तो वह जन्नत में दाखिल होगा।”
6. एक गुनाह के बारे में
किसी के वालिदैन को बुरा भला कहने का गुनाह
रसूलुल्लाह (ﷺ) फरमाते है :
“(शिर्क के बाद) कबीरा गुनाहों में सबसे बड़ा गुनाह यह है के आदमी अपने वालिदैन पर लानत करें”
पूछा गया : ऐ अल्लाह के रसूल! आदमी अपने वालिदैन पर कैसे लानत करेगा?
इर्शाद फ़रमाया :
“वह दूसरे के वालिदैन को बुरा भला कहे फिर वह आदमी उस के वालिदैन को बुरा भला कहे।”
7. दुनिया के बारे में
दुनियावी ज़िन्दगी धोका है
कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है :
“ऐ लोगो! बेशक अल्लाह तआला का वादा सच्चा है, फिर कहीं तुम को दुनियावी जिन्दगी धोके में न डाल दे और तुम को धोके बाज़ शैतान किसी धोके में न डाल दे, यकीनन शैतान तुम्हारा दुश्मन है। तुम भी उसे अपना दुश्मन ही समझो। वह तो अपने गिरोह (के लोगों) को इस लिये बुलाता है के वह भी दोज़ख वालों में शामिल हो जाएँ।”
8. आख़िरत के बारे में
कयामत किस दिन कायम होगी
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“तुम्हारे दिनों में अफजल दिन जुमा का दिन है,
इसी रोज़ हज़रत आदम (अ.) को पैदा किया गया,
इसी रोज़ उन का इन्तेक़ाल हुआ,
इसी रोज सूर फूंका जाएगा और
इसी दिन क़यामत कायम होगी।”
9. तिब्बे नबवी से इलाज
नज़रे बद का इलाज
أَعُوذُ بِكَلِمَاتِ اللَّهِ التَّامَّةِ مِنْ كُلِّ شَيْطَانٍ وَهَامَّةٍ وَمِنْ كُلِّ عَيْنٍ لامَّةٍ
अ-ऊज़ू बिकलिमा तिल्लाहित ताम्मति मिनकुल्लि शैतानिन
व हाममतिन व मिनकुल्लि ऐनिन लाममतिन।
तर्जुमा : मैं पनाह मांगता हु अल्लाह की पुरे पुरे कलिमात के जरिए, हर शैतान से और हर ज़हरीले जानवर से और हर नुकसान पहुँचाने वाली नज़र-ए-बद्द से।
10. क़ुरान की नसीहत
अल्लाह से मदद चाहो और हिम्मत मत हारो
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :
“अपने नफे की चीज को कोशिश से हासिल करो और अल्लाह से मदद चाहो और हिम्मत मत हारो और अगर तुम्हें कोई हादसा पेश आजाए तो यू मत कहो के अगर मैं यू करता तो एसा हो जाता बल्के यू कहो के अल्लाह तआला ने यही मुकद्दर फर्माया था और जो उसको मंजूर था उसने वही किया।”